रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने गुरुवार को कहा कि रूसी महिलाएं फुटबॉल वर्ल्ड कप के दौरान आने वाले फुटबॉल प्रशंसकों के साथ यौन संबंध बना सकती हैं। राष्ट्रपति के प्रवक्ता ने इस बात की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ‘रूसी महिलाओं को इस बारे में सबकुछ खुद ही तय करना है, वह इस दुनिया की सबसे बेहतरीन महिलाएं हैं।’
इससे पहले एक महिला सांसद ने बुधवार को कहा था कि ‘रूसी महिलाएं फुटबॉल प्रशंसकों के साथ यौन संबंध बना और मिश्रित-प्रजाति के बच्चों की एकल मां बनने से दूर रहें।’ 70 वर्षीय कम्युनिस्ट तमारा पलेनेवा निचले सदन में परिवार, महिलाओं और बच्चों के समिति की प्रमुख हैं।
उन्होंने गोविरिट मोस्कवा रेडियो स्टेशन को बताया था कि वे उम्मीद करती हैं कि महिलाएं दौरे पर आए प्रशंसकों के साथ डेट (विशेष मुलाकात) पर नहीं जाएंगी और गर्भवती नहीं होंगी। उन्होंने कहा, रूस द्वारा आयोजित विश्व कप का मतलब यह हो सकता है कि “युवा महिलाएं किसी से मिलेंगी और फिर बच्चे पैदा करेंगी… मैं उम्मीद करती हूं ऐसा नहीं हो।”
उन्होंने मॉस्को में साल 1980 में आयोजित ओलंपिक से स्थिति की तुलना की, जब कुछ स्थानीय महिलाएं के विदेशियों के साथ असामान्य रिश्ते बने और वे गर्भवती हो गईं।
यह पूछे जाने पर कि क्या विश्व कप रूस की जन्म दर को बढ़ावा दे सकता है, जो राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, पलेनेवा ने जवाब दिया, “हमें अपने बच्चों को जन्म देना चाहिए।” उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी संभावना है कि मिश्रित नस्ल वाले बच्चों की परवरिश अकेले माता-पिता के परिवारों में होती है।
“वे बच्चे हैं जो पीड़ित होते हैं… और सोवियत युग से पीड़ित हैं। यह अच्छा होगा अगर वे समान (मां की) नस्ल के हों, लेकिन यदि वे अन्य प्रजाति के हो गए, तो और भी बुरा होगा। साथ ही उन्होंने कहा,”मैं राष्ट्रवादी नहीं हूं।”
उन्होंने कहा कि ये खतरा बना रहता है कि इन बच्चों को “त्याग दिया जाए और बस अपनी मां के साथ छोड़ दिए जाएं।” या फिर एक अन्य परिस्थिति यह है कि उनके पिता उन्हें अपने साथ विदेश लेकर चले जाएं। जिसके बाद इन महिलाओं की “रूसी नागरिकों” से शादी करने की इच्छा हो जाए। उनकी टिप्पणियों की आलोचना हुई और लोग उनकी बातों की हंसी उड़ा रहे हैं।
फीफा के लंबे समय से चल रहे नस्लवाद विरोधी अभियान की पृष्ठभूमि में ट्विटर पर रेडियो पत्रकार तात्याना फेलगेनहाउर ने लिखा, “मुझे आश्चर्य है कि पलेनेवा क्या कहेंगी जब उन्हें ‘नस्लवाद को ना कहें’ की याद दिलाई जाएगी।”