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पुनर्जन्म सच या भ्रम? आइए जाने कुछ रहस्य

नई दिल्ली : हिंदू धर्म के अनुसार मनुष्य का केवल शरीर मरता है उसकी आत्मा नहीं। बल्कि आत्मा एक शरीर का त्याग कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है| इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं। हालांकि नया जन्म लेने के बाद पिछले जन्म की याद बहुत ही कम लोगों को रह पाती है|इसलिए ऐसी घटनाएं कभी कभार ही सामने आती हैं। पुनर्जन्म की घटनाएं भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में सुनने को मिलती हैं| आइए जानते है, उन घटनाओं के बारे में।

पहली घटना: यह घटना सन् 1950 अप्रैल की है। कोसीकलां गांव के निवासी भोलानाथ जैन के पुत्र निर्मल की जिनकी मृत्यु चेचक के कारण हो गई थी। इस घटना के अगले साल यानी सन 1951 में छत्ता गांव के निवासी बीएल वाष्णेय के घर पुत्र का जन्म हुआ। उस बालक का नाम प्रकाश रखा गया। वहीं प्रकाश जब साढ़े चार साल का हुआ तो एक दिन वह अचानक बोलने लगा- मैं कोसीकलां में रहता हूं। मेरा नाम निर्मल है। मैं अपने पुराने घर जाना चाहता हूं। ऐसा वह कई दिनों तक कहता रहा। प्रकाश को समझाने के लिए एक दिन उसके चाचा उसे कोसीकलां ले गए। यह सन् 1956 की बात है। कोसीकलां जाकर प्रकाश को पुरानी बातें याद आनें लगीं। संयोगवश उस दिन प्रकाश की मुलाकात अपने पूर्व जन्म के पिता भोलानाथ जैन से नहीं हो पाई। प्रकाश के इस जन्म के परिजन चाहते थे कि वह पुरानी बातें भूल जाए। बहुत समझाने पर प्रकाश पुरानी बातें भूलने लगा लेकिन उसकी पूर्व जन्म की स्मृति पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई।
दूसरी घटना: यह घटना आगरा की है। यहां किसी समय पोस्ट मास्टर पी.एन. भार्गव रहा करते थे। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम मंजु था। मंजु ने ढाई साल की उम्र में ही यह कहना शुरू कर दिया कि उसके दो घर हैं। मंजु ने उस घर के बारे में अपने परिवार वालों को भी बताया। पहले तो किसी ने मंजु की उन बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब कभी मंजु धुलियागंज, आगरा के एक विशेष मकान के सामने से निकलती तो कहा करती थी- यही मेरा घर है। एक दिन मंजु को उस घर में ले जाया गया। उस मकान के मालिक प्रताप सिंह चतुर्वेदी थे। वहां मंजु ने कई ऐसी बातें बताईं जो उस घर में रहने वाले लोग ही जानते थे।
तीसरी घटना: सन् 1960 में प्रवीणचंद्र शाह के यहां पुत्री का जन्म हुआ। इसका नाम राजूल रखा गया। राजूल जब 3 साल की हुई तो वह उसी जिले के जूनागढ़ में अपने पिछले जन्म की बातें बताने लगी। उसने बताया कि पिछले जन्म में मेरा नाम राजूल नहीं गीता था। पहले तो माता-पिता ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब राजूल के दादा वजुभाई शाह को इन बातों का पता चला तो उन्होंने इसकी जांच-पड़ताल की, जो बिल्कुल सही था।
चौथी घटना: सन् 1956 की बात है। दिल्ली में रहने वाले गुप्ता जी के घर पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम गोपाल रखा गया। गोपाल जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसने बताया कि पूर्व जन्म में उसका नाम शक्तिपाल था और वह मथुरा में रहता था, मेरे तीन भाई थे उनमें से एक ने मुझे गोली मार दी थी। मथुरा में सुख संचारक कंपनी के नाम से मेरी एक दवाओं की दुकान भी थी। गोपाल के माता-पिता ने पहले तो उसकी बातों को कोरी बकवास समझा, लेकिन बार-बार एक ही बात दोहराने पर गुप्ताजी ने अपने कुछ मित्रों से पूछताछ की। जानकारी निकालने पर पता कि मथुरा में सुख संचारक कंपनी के मालिक शक्तिपाल शर्मा की हत्या उनके भाई ने गोली मारकर कर दी थी। जब शक्तिपाल के परिवार को यह पता चला कि दिल्ली में एक लड़का पिछले जन्म में शक्तिपाल होने का दावा कर रहा है तो शक्तिपाल की पत्नी और भाभी दिल्ली आईं।
पांचवीं घटना: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में एमएल मिश्र रहते थे। उनकी एक लड़की थी, जिसका नाम स्वर्णलता था। बचपन से ही स्वर्णलता यह बताती थी कि उसका असली घर कटनी में है और उसके दो बेटे हैं। पहले तो घर वालों ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब वह बार-बार यही बात बोलने लगी तो घर वाले स्वर्णलता को कटनी ले गए। कटनी जाकर स्वर्णलता ने पूर्वजन्म के अपने दोनों बेटों को पहचान लिया। उसने दूसरे लोगों, जगहों, चीजों को भी पहचान लिया। कुछ घटनाएं है जो पूर्वजन्म को सही साबित करती है |

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