पूर्व सीजेआई आरएम लोढ़ा ने पूछा- बिना स्वतंत्रता के तोता कैसे उड़ेगा
केंद्र सरकार ने सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा को उनके पद से हटाकर उन्हें फायर सर्विस का निदेशक बना दिया था। जिसके बाद उन्होंने डीजी फायर सर्विस का चार्ज लेने से इनकार करते हुए सेवा से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने कहा था कि उनके मामले में प्राकृतिक न्याय को समाप्त कर दिया है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा ने टिप्पणी की है।
जस्टिस लोढ़ा ही वह शख्स है जिन्होंने सीबीआई के लिए ‘पिंजरे में कैद तोता’ शब्द को गढ़ा था क्योंकि जांच एजेंसी को सरकार की इच्छाओं की गुलाम है। शुक्रवार को जस्टिस लोढ़ा ने कहा, ‘तोता तब तक आसमान में पूरी तरह से नहीं उड़ सकता जब तक उसे खुला नहीं छोड़ा जाएगा। समय आ गया है जब कुछ किया जाना चाहिए और होनो चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सीबीआई उच्चस्तरीय जांच एजेंसी बन सके।’
इस स्वतंत्रता को कैसे सुरक्षित किया जाए इसपर उन्होंने कहा, ‘ऐसी विधियां और तरीके हैं जिनके द्वारा यह किया जा सकता है। हर सरकार सीबीआई का प्रयोग करती है और उसे प्रभावित करती हैं। लेकिन मुझे लगता है कि यह मामला न्यायालय के अधीन है। यह कोयला घोटाले के दौरान सामने आया था और इसके बाद यह जारी रहा। कोर्ट के जरिए या फिर किसी और माध्यम से सीबीआई की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।’
वर्मा के ट्रांसफर पर जस्टिस लोढ़ा ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने इस बात की तरफ इंगित किया था कि समिति से सलाह नहीं ली गई। केंद्र सरकार ने सीबीआई के मुखिया का तबादला करने के लिए इसका प्रयोग किया।’ मई 2013 में कोल आवंटन मामले की सिनवाई करते हुए तत्कालीन जज रहे जस्टिस लोढ़ा ने सरकार के वकील से पूछा था कि उन्हें पिंजरे में कैद तोते को खुला छोड़ने में कितना समय लगेगा और इसके लिए उसकी आवाज को दबाना बंद करें।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा, ‘जांच एजेंसी को स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। समय आ गया है कि इसे राजनीतिक कार्यकारिणी से अलग किया जाए। जब तक इसपर राजनीतिक कार्यकारिणी नियंत्रण करती रहेंगी, चाहे जो भी सत्ता में हो तबतक इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी।’