नई दिल्ली : पेट्रोलियम मुनाफे में अपनी हिस्सेदारी को बरकरार रखने के लिए 2018-19 के वर्क प्रोग्राम में एक नए उपबंध पर सरकार जोर दे रही है। मौजूदा समय में अगर कंपनियां ज्यादा निवेश करती हैं तो उन्हें ज्यादा मुनाफा मिलता है, लेकिन नए उपबंध के मुताबिक सरकार की हिस्सेदारी को पहले के स्तर पर बरकरार रखा जाना चाहिए। इससे रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और वेदांत केयर्न जैसी कंपनियों के निवेश फैसलों पर असर पड़ सकता है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय जिस नए उपबंध पर जोर दे रहा है, उसके बारे में निजी कंपनियों को हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय के जरिये बता दिया गया था। नए उपबंध के मुताबिक प्रस्तावित वर्क प्रोग्राम और बजट के संबंध में लागत वसूली उत्पादन हिस्सेदारी अनुबंध (पीएससी) के प्रावधानों के मुताबिक होगी।
नए उपबंध का एक अन्य असर यह हुआ है कि न्यूनतम वर्क प्रोग्राम को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है, जिससे कंपनियों को आयातित उपकरणों पर सीमा शुल्क में छूट नहीं मिली है। एक बड़ी निजी कंपनी ने तो इस वित्त वर्ष के कामों के लिए 1.6 अरब डॉलर का ऑर्डर भी दे दिया था। चूंकि आरआईएल और वेदांत केयर्न इस वर्ष के लिए अपना पूंजी निवेश बढ़ाने की योजना बना रही थीं, इसलिए नए उपबंध से उन पर असर पड़ सकता है। वर्ष 2018-19 के अंत में इनवेस्टमेंट मल्टीपल (आईएम) वर्क प्रोग्राम और बजट के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप कम नहीं किया जाएगा। पीएससी से करीब से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि इस नई शर्त से मंत्रालय ने तेल एवं गैस कंपनियों की पेट्रोलियम मुनाफे में हिस्सेदारी पर सीमा तय कर दी है। आईएम किसी कॉन्ट्रेक्टर द्वारा किए गए कुल निवेश में कुल शुद्घ आय का अनुपात है। इसके कम रहने का मतलब है कि मुनाफे में सरकार की कम हिस्सेदारी होगी। कई वर्षों के दौरान जब कंपनियां तेल क्षेत्र में और निवेश करती हैं तो आईएम अनुपात घटता है और सरकार की हिस्सेदारी कम होती है। इसका मकसद कंपनियों को तेल क्षेत्रों में और निवेश करने, नए तेल क्षेत्रों की खोज करने और विकास एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना है।