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पॉक्सो एक्ट के मामलों की सुनवाई तेज कराएं उच्च न्यायालय

नई दिल्ली : सर्वोच्च न्यायालय ने आज बच्चों से जुड़े यौन अपराध के मामलों में सुनवाई के संबंध में देश की सभी उच्च न्यायालयों को कई दिशानिर्देश जारी किए। जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने सभी उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया कि बच्चों से जुड़े यौन हमले के मामलों को फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा तेजी से निपटाया जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों से ये भी कहा कि वे ट्रायल कोर्ट को निर्देश दें कि पॉक्सो एक्ट के मामलों के मुकदमे के दौरान अनावश्यक स्थगन न दिया जाए। बेंच में शामिल जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि उच्च न्यायालय तीन न्यायाधीशों की एक समिति का गठन कर सकते हैं ताकि वे बच्चों के यौन हमले के मामलों का नियमन और निगरानी कर सकें। उच्च न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि पॉक्सो कानून के तहत पंजीकृत मामलों की सुनवाई विशेष अदालत करे तथा मामले का निपटारा संबंधित कानून के प्रावधानों के तहत किया जाए। मंगलवार को वकील अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा दायर पीआईएल पर उच्चतम न्यायालय सुनवाई कर रहा था। इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) पिंकी आनंद ने बेंच को बताया कि 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के साथ बलात्कार मामलों में फांसी की सजा के प्रावधान को लेकर अध्यादेश लाया गया है। मुख्य न्यायाधीश ने सुश्री आनंद से पूछा, क्या इस अध्यादेश में मुकदमे के निपटारे के लिए भी कोई समय सीमा तय की गई है? इस पर एएसजी ने कहा कि अध्यादेश में सजा के बारे में ही संशोधन किया गया है, जबकि सुनवाई पूरी करने के संबंध में दंड विधान संहिता (सीआरपीसी) में पहले से प्रावधान किए गए हैं। अपील के लिए यह अवधि छह माह है और जांच पूरी करने के लिए यह समय सीमा दो माह है। वहीँ सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय में यह प्रयास करेगा कि पॉक्सो कानून की भावनाओं के तहत बच्चों के अनुकूल अदालतें गठित हों। बैंच ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही विशेष अदालतें बेवजह सुनवाई स्थगित नहीं करेंगी तथा 2012 के पॉक्सो कानून के तहत मामले का त्वरित निपटारा करेंगी।

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