नई दिल्ली : आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दो साल सरकारी तेल कंपनियों ने पहले जिस उत्साह से पेट्रोल और डीजल की कीमतों की रोजाना समीक्षा करने की परंपरा शुरू की थी, उससे शायद उसने खुद अपने पैर पीछे खींच लिए हैं। यह हम नहीं, बल्कि इससे जुड़े आंकड़े बता रहे हैं। यहीं नहीं, चुनाव के वक्त तो कई दिनों तक तेल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया।
जून से लेकर अगस्त तक की तीन महीने की अवधि में कंपनियों ने पेट्रोल की कीमत में 43 दिन तथा डीजल की कीमत में 47 दिनों तक कोई बदलाव नहीं किया। बड़ी बात यह है कि जून से अगस्त की ही अवधि में डीजल की कीमत में लगातार 13 दिनों तक कोई बदलाव नहीं किया गया, जबकि पेट्रोल की कीमत में लगातार आठ दिनों तक कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके अलावा, नौ बार डीजल की कीमतों में लगातार चार दिन या उससे अधिक दिनों तक कोई बदलाव नहीं हुआ। वहीं, आठ बार पेट्रोल की कीमत में लगातार चार दिन या उससे अधिक दिनों तक कोई बदलाव नहीं आया। तेल कंपनियों ने जून 2017 से तेल की कीमतों की रोजाना समीक्षा की शुरुआत की थी। इससे पहले लगभग तीन वर्षों तक वह 15 दिनों पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों की समीक्षा करती थी। 18 अक्टूबर, 2014 को केंद्र सरकार ने डीजल की कीमतों पर से अपना नियंत्रण समाप्त कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप इसकी कीमत बाजार से नियंत्रित (पेट्रोल की कीमतों पर से अपना नियंत्रण सरकार ने 2010 में खत्म कर दिया था) होने लगीं।
जून 2017 से लेकर अब तक इन दो सालों के दौरान तेल कंपनियों ने चुनावों को छोड़कर रोजाना आधार पर तेल की कीमतों में परिवर्तन किया। चुनावों के दौरान कंपनियों ने तेल की कीमतें स्थिर रखीं। पिछले साल कर्नाटक चुनाव से पहले पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों में लगातार 20 दिनों तक कोई बदलाव नहीं हुआ। 12 मई को मतदान समाप्त होने के बाद 15 दिनों के भीतर पेट्रोल की कीमत में चार रुपये की बढ़ोतरी की गई। इसके बाद, अगले दौर के विधानसभा चुनाव (छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान एवं मिजोरम) से पहले तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण सरकार को पेट्रोल तथा डीजल पर उत्पाद शुल्क में 1.5 रुपये की कटौती करनी पड़ी और उसने तेल कंपनियों को लागत में प्रति लीटर एक रुपये का नुकसान सहने को कहा। साल 2017 में 16 जनवरी से लेकर एक अप्रैल तक तेल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ। इस समय पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश तथा मणिपुर में चुनाव होने थे।