लोकसभा चुनाव 2014 में आडवाणी जी के इस सीट से चुनाव लड़ने को लेकर संशय की स्थिति पैदा हुई थी। इसको लेकर पार्टी के भीतर अंदरूनी राजनीति भी जोर पकड़ने लगी थी। ऐसी अटकलें थी कि गांधी नगर के बजाय आडवाणी लोकसभा की सदस्यता के लिए म.प्र. जा सकते हैं। लेकिन अंत में वह गांधी नगर से ही चुनाव लड़े और जीते भी। सूत्र बताते हैं कि इस बार पहले ही प्रधानमंत्री ने आडवाणी जी से अपनी इच्छा व्यक्त कर दी है। आडवाणी के पास प्रधानमंत्री का यह संदेश भी पहुंच चुका है। आगे आडवाणी जी को करना है कि वह अपनी राजनीति की पारी को कैसे आरंभ करते हैं।
75 साल का फार्मूला
भाजपा के एक उच्चपदस्थ सूत्र का कहना है कि पार्टी किसे टिकट देगी या नहीं देगी, अभी इसका समय नहीं है। यह स्थिति आने में अभी वक्त है। उन्होंने 100 के करीब सांसदों के टिकट कटने को भी मीडिया का कयास बताया। पार्टी के वरिष्ठ सांसद मुरली मनोहर जोशी या अन्य के टिकट को लेकर भी उन्होंने कहा कि यह कयासबाजी है। जब टिकट वितरण की स्थिति आएगी तो भाजपा खुद मीडिया को इसकी जानकारी देती रही है और देगी। यह पूछे जाने पर आडवाणी जी उम्रदराज हैं। पार्टी ने 75 साल से ऊपर के लोगों को सक्रिय राजनीति से अलग रखने की परंपरा शुरू की है तो सूत्र का कहना है कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा पर यह लागू नहीं हुआ। इसी तरह से आडवाणी जी पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं। उन्हें लगता कि वह इस तरह के किसी मानदंड के दायरे में आते हैं।
आडवाणी की इच्छा
लाल कृष्ण आडवाणी काफी शरीर से स्वस्थ हैं। सूत्र बताते हैं कि आडवाणी यशवंत सिन्हा की राह पर चलने के इच्छुक हैं। जैसे यशवंत सिन्हा ने पुत्र जयंत सिन्हा को अपनी सीट दे दी थी, उसी तरह आडवाणी अपनी बेटी प्रतिभा को राजनीति में लाना चाहते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार आडवाणी के बेटे जयंत भी राजनीति में आने के इच्छुक हैं। लेकिन सामाजिक मामलों में आडवाणी की बेटी अधिक सक्रिय रहती हैं। वह वरिष्ठ नेता की राजनीतिक मामलों में सहायता भी करती हैं। ऐसे में काफी कुछ आने वाले समय पर निर्भर है।
प्रधानमंत्री और शाह के लिए 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए 2019 जीवन मरण जैसा अहम चुनाव है। लोकसभा चुनाव 2014 के बाद हुए उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए काफी निराशाजनक रहे हैं। वहीं राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी सफलता के झंडे गाड़ती चली गई है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को आगामी लोकसभा चुनाव में सरकार विरोधी लहर का कुछ खतरा दिखाई पड़ रहा है। वह प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में कुछ गिरावट आने के संकेत हैं। 2014 के आम चुनाव में वैसे भी उत्तर भारत में विपक्ष के सभी दल सिकुड़ गए थे। काफी कम सीटें मिली थी। भाजपा के सहयोगी दल भी नखरे दिखा रहे हैं और उन्हें मनाने की कवायद करनी पड़ रही है। ऐसे में भाजपा के लिए एक-एक सीट का खासा महत्व है। पार्टी ने इसके लिए अभी से तैयारी तेज कर दी है।