प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावक अन्नपूर्णा शुक्ला ने मशहूर बेबी फूड इंडस्ट्री को दिया था बड़ा झटका
वाराणसी : नवजात के लिए मां का दूध बेहद जरूरी है क्योंकि यह बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है। यह जरूरी सलाह बच्चों के लिए बनाए जाने वाले तकरीबन हर खाद्य उत्पादों और पाउडर वाले दूध के डिब्बों में लिखी होती है। खास बात यह है कि दुनिया की मांओं को इस अहम जानकारी के लिए अन्नपूर्णा शुक्ला को धन्यवाद देना चाहिए। अन्नपूर्णा शुक्ला ने कड़ी मेहनत से शोध में यह पता लगाया कि मां का दूध बच्चों के लिए बहुत जरूरी है, जिसके बाद ब्रिटेन की एक बेबी फूड कंपनी ने इस खास मेसेज को पैकेजिंग के साथ प्रकाशित करना शुरू किया। बहरहाल, अब इस मेसेज को दुनिया की कंपनियों द्वारा प्रकाशित किया जाता है। 91 वर्ष की डॉक्टर अन्नपूर्णा शुक्ला हाल ही में तब चर्चा में आईं जब उन्हें वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार प्रस्तावकों में से एक प्रस्तावक घोषित किया गया। डॉ. शुक्ला ने बताया कि मोदी जी ने मेरे पैर छुए और मैंने उनसे कहा कि तुम ऊंचे शिखर पर जाओगे। बच्चों के लिए डॉ. शुक्ला के इस महत्वपूर्ण योगदान के बारे में कुछ लोग ही जानते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने अब नवजात के लिए छह महीनों तक मां का दूध अनिवार्य कर दिया है ताकि शिशुओं का समुचित विकास हो सके। हालांकि, वर्ष 1969-1972 तक, जब डॉ. अन्नपूर्णा ने ब्रिटेन में शोध कार्य किया और यह ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ तब इसे बमुश्किल ही पश्चिम में कुछ लोग जानते थे। डॉ. शुक्ला का शोध, उनकी पीएचडी के लिए था, जो कि नवजात के खान-पान के संदर्भ में वॉरसेस्टर शायर, डुडले में तीन अन्य प्रफेसरों एचए फॉरसिथ, चरलॉट्टे एम एंडरसन और एसएम मारवाह के साथ किया जा रहा था। शोधकर्ताओं ने शरीर के कुल वजन, कैलरी की मात्रा, दूध पिलाने के तरीके आदि के बादे में अध्ययन किया। डॉ. शुक्ला कहती हैं, ‘हमने पाया कि जिन बच्चों को ठोस आहार दिया जा रहा था और स्तनपान नहीं कराया जा रहा था, वे स्थूल और ज्यादा वजन के थे। जब यह रिसर्च प्रकाशित हुई तो सरकार ने तुरंत बच्चों के लिए खाद्य सामग्री बनाने वाली कंपनियों के लिए निर्देश जारी किए कि वह इस चेतावनी को जरूर उत्पादों की पैकेजिंग में दर्शाएं कि मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है। इससे कई कंपनियों को परेशानी हुई। लेकिन आज हम इस जानकारी के जरिए बच्चों को बचा पा रहे हैं।’ डॉ. शुक्ला कहती हैं कि उनकी शोध पूरी तरह से वैदिक परंपरा पर आधारित थी। जैसे कि बच्चे के छह माह का होने पर उसका अन्नप्राशन कराया जाता है तब उसे दूध और चावल की खीर यानी ठोस आहार दिया जाता है। इस परंपरा के होने से पूर्व बच्चे को सिर्फ मां का दूध ही देना है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने डॉ. शुक्ला को काफी प्रभावित किया। डॉ. अन्नपूर्णा शुक्ला कहती हैं, तब मैं सिर्फ पांच वर्ष की थी जब महामनाजी (जिन्हें सब मालवीय साहिब कहते थे) ने मुझे बुलाकर पूछा कि मैं क्या बनना चाहती हूं। मैंने कहा कि मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं। उन दिनों परिवार महिलाओं को पढ़ाने के पक्षधर नहीं होते थे। मेरी मां डेप्युटी कलेक्टर की बेटी थीं लेकिन फिर भी वह अपने सिर पर कुएं से पानी लाती थीं। आज बीएचयू जाने माने मेडिकल कॉलेजों में गिना जाता है लेकिन उन दिनों चिकित्सा संबंधी कोर्स यहां उपलब्ध नहीं थे। तब डॉ. अन्नपूर्णा शुक्ला 1945 में पटना आकर प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज (अब पटना मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल) से एमबीबीएस की पढ़ाई की। डॉ. शुक्ला बताती हैं, महामनाजी ने कहा था कि एक दिन जब मैं डॉक्टर बनूं तो वापस लौटकर बीएचयू आऊं और वह मुझे जॉब देंगे। एमबीबीएस पूरा करने के बाद उनकी शादी हो गई और वह महिला महाविद्यालय में बतौर मेडिकल ऑफिसर काम करने लगीं। उन दिनों वह वाराणसी की चार महिला डॉक्टरों में से एक थीं। पंडित मालवीय के बेटे गोविंद मालवीय के आग्रह पर वह उन दिनों गृह विज्ञान का लेक्चर भी बीएचयू में देती थीं, तब यूनिवर्सिटी में मेडिकल कॉलेज नहीं था। डॉ. अन्नपूर्णा शुक्ला एक पढ़े लिखे परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता बीएचयू के प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थे और मदन मोहन मालवीय के करीबी थे। उनके पति बीएम शुक्ला गोरखपुर विश्वविद्यालय के वीसी पद से रिटायर हुए हैं। वहीं, चर्चित लेखक अमीश उनके भतीजे हैं।