प्रोमो रिलीज होते ही विवादों में घिरी फिल्म ‘केदारनाथ’
मुंबई: पांच बरस पहले केदारनाथ में आई प्रलंयकारी बाढ़ की घटना की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म ‘केदारनाथ’ अपने टीजर और प्रोमो सामने आते ही विवादों में घिर गयी है। फिल्म अगले महीने रिलीज होने वाली है। उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ क्षेत्र में वर्ष 2013 में आई प्रलयंकारी भीषण बाढ़ से जुड़े घटनाक्रम पर आधारित इस फिल्म का केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों से लेकर राजनीतिक दलों ने विरोध शुरू कर दिया है।
फिल्म के विरोध में उतरे लोगों ने फिल्म के नायक और नायिका के बीच दर्शाए गए अंतरंग सीन को धार्मिक आस्था से छेड़छाड़ बताते हुए आपत्तिजनक करार दिया है । विरोध कर रहे लोगों ने फिल्म की कथा पर आपत्ति जताई है और उनका मानना है कि यह फिल्म लव जेहाद का समर्थन कर रही है। सात दिसंबर को रिलीज हो रही अभिषेक कपूर निर्देशित यह फिल्म बाढ़ में फंसी एक हिंदू श्रद्धालु को एक मुस्लिम द्वारा बचाए जाने के बाद दोनों के बीच पनपे प्यार की कहानी है। इस फिल्म में सारा अली खान और सुशांत सिंह राजपूत की जोड़ी है।
बता दें सारा, सैफ अली खान और अमृता सिंह की बेटी हैं और यह उनकी पहली फिल्म है। उत्तराखंड में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी, हालांकि, इस फिल्म को लेकर फिलहाल खुलकर कुछ नहीं बोल रही है लेकिन उसका भी मानना है कि सैद्धांतिक तौर पर धार्मिक स्थलों से जुडी परंपराओं और आस्थाओं का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इससे किसी की भावनायें आहत न हों। पिछले कुछ दिनों में फिल्म के टीजर और प्रोमो जारी होने के बाद से केदारनाथ के सतेराखाल और आस पास के अन्य क्षेत्रों में स्थानीय लोगों ने फिल्म के विरोध में प्रदर्शन शुरू कर दिए और उन्होंने फिल्म के पोस्टर, निर्देशक, नायक और नायिकाओं के पुतले जलाए।
प्रदर्शनकारियों का कहना है कि फिल्म के टीजर में दिखाए जाने वाले सीन देवभूमि और केदारनाथ की आस्था के साथ खिलवाड़ हैं और फिल्म देवभूमि तथा केदारनाथ की रीति एवं नीति के बिल्कुल उलट है। विरोध में शामिल सामाजिक कार्यकर्ता गंभीर बिष्ट ने कहा कि ऐसा मालूम होता है कि फिल्म बनाने वालों ने हिंदू धर्म की आस्था पर चोट की है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में अगर ऐसे सीन नहीं हटाए गए तो प्रदेश व्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा। इस बाबत उत्तराखंड प्रदेश भाजपा प्रवक्ता डॉ देवेंद्र भसीन ने कहा कि सैद्धांतिक द्रष्टि से धार्मिक स्थलों से जुडी आस्थाओं और परंपराओं का ध्यान रखा जाना चाहिए और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि लोगों की भावनायें आहत न हों। उन्होंने कहा कि वैसे भी धार्मिक स्थलों के फिल्मांकन के मामले में फिल्मी मसालों का कोई औचित्य नहीं है।