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लखनऊ। दूसरे राज्यों से ट्रकों के जरिए आने वाले टैक्स चोरी के माल को लाने में ट्रांसपोर्टर बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। बाहर से लाए जा रहे माल को यदि वाणिज्यकर विभाग की टीम पकड़ती है, तो ट्रांसपोर्टर या ड्राइवर खुद ही माल के मालिक बन जाते हैं। फर्जी आईडी दिखाकर वह मामले का निपटारा कर लेते हैं। इससे असली मालिक को चिन्हित करने में विभाग को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। टैक्स चोरी के खेल में शामिल व्यापारी हर रोज विभाग की जांच टीम से बचने के पैंतरें इजाद कर रहे है। फॉर्म-38 के जरिए टैक्स चोरी के बाद अब इन्होंने माल लाने वाले ट्रांसपोर्टरों को अपना साथी बना लिया है। इससे विभाग की कार्रवाई सिर्फ ट्रांसपोर्टर तक सिमट कर रह गई है। माल पकड़ा जाता है, तो ट्रांसपोर्टर 15 फीसदी बतौर जुर्माना देकर माल को बड़ी आसानी से छुड़ा लेते हैं। टैक्स चोरी का माल पकड़े जाने पर आमतौर पर व्यापारी से माल के एवज में निर्धारित टैक्स और जुर्माना वसूला जाता था। इसके बाद माल को छोड़ा जाता था, लेकिन बीते कुछ समय से व्यापारी सामने नहीं आ रहे हैं। उनकी जगह ट्रक ड्राइवर या ट्रांसपोर्टर खुद ही मालिक बन माल छुड़ा लेते हैं। जब व्यापारी के बजाय वाहन मालिक या चालक ही माल छड़ाने लगे, तो विभाग ने एसआईबी की एक टीम को इसकी जांच में लगाया। पता चला कि टैक्स चोरी का माल पकड़े जाने के बाद व्यापारी विभाग के निशाने पर आ जाते थे। इसके चलते उनकी हर गतिविधि विभाग की नजर में रहती थी। इससे बचने के लिए ड्राइवर और ट्रांसपोर्टर को सामने लाने का खेल शुरू हुआ, ताकि वे विभाग के निशाने पर आने से बच सकें। दरअसल, यह माल जिन व्यापारियों का होता है, वह पर्दे के पीछे रहते हैं। वे माल को छुड़ाने के लिए रुपए खर्च करते हैं। इसके अलावा वे ट्रांसपोर्टर और ड्राइवर को भी पैसे देते हैं। कुछ मामलों में यह भी सामने आया है कि ट्रांसपोर्टर और ड्राइवर पकड़े गए माल को छुड़ाने के लिए जुर्माने की रकम भी पहले से तय कर लेते है। ट्रांसपोर्टरों पर कार्रवाई करने का वाणिज्य कर विभाग को कोई अधिकार नहीं है। इसका लाभ उठाते हुए माल की बिल्टी ट्रक चालक के नाम से ही बना दी जाती है। यदि माल बिना जांच के पहुंच गया तो ठीक है। वरना ट्रक चालक खुद को गैर-पंजीकृत व्यापारी बताकर जर्माना देकर आसानी से माल छुड़ा लेता है। कई मामलों व्यापारी की आईडी फर्जी निकलती है। ऐसे में विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर पाता।