फादर्स डेः थैंक्यू पापा, मुझे हौंसलों के पर देने के लिये…
मेरे प्यारे पापा, कैसे लिखूं, क्या लिखूं, समझ नहीं आ रहा। इससे पहले कभी कोई पत्र लिखा भी तो नहीं है। पहले सोचा आपको फोन करूं। और अपने दिल की वो सारी बातें आपसे कह डालूं जो अब तक नहीं कहीं। सबसे पहले कहूं थैंक्यू पापा मुझे ये सिखाने के लिये कि सबसे जरूरी है, खुद पर भरोसा करना। थैंक्यू पापा ये बताने के लिये कि हर परिस्थिति में आप मेरे साथ हैं। थैंक्यू पापा कि मुझे इस दुनिया में जीने का सलीका सिखाने के लिये।
लेकिन न जाने कौन सा संकोच है जो मेरे दिल के एहसास जुबान पर आ ही नहीं पाते। इसलिये आज ये पत्र मैं आपको लिख रहीं हूं।
सच कहूं तो पापा आपका होना मेरे वजूद का होने जैसा है। दुनिया को लगता है मैं एक आत्मविश्वास से भरी लड़की हूं। पर ये किसी को नहीं पता कि मेरा आत्मविश्वास दरअसल आपका दिया हुआ भरोस है।
आज बचपन की बहुत सारी बातें याद आ रही हैं। मुझे आज भी याद है रविवार के दिन जब खाली सड़क के लालच में मैं भरी दोपहरी मैं साइकिल सीखने निकल पड़ती थी। आप पहले तो धूप खत्म होने का इंतजार करने के लिये कहते, लेकिन जब मैं जिद करती तो आप भी निकल पड़ते, मेरे पीछे-पीछे। कैरियर पकड़े मेरे पीछे पीछे आप भी भागते। मुझे हौंसला देते, डरो मत मैं हूं। गिरोगी नहीं। मारो पैडल मारो। गिरने लगोगी तो संभाल लूंगा। सच बताऊं तो आज भी जब मैं कभी गिरने लगती हूं तो आपकी आवाज आती है, डरो मत आगे बढ़ो मैं संभाल लूंगा। गिरने नहीं दूंगा। और मैं जिंदगी के पैडल मारने लगती हूं पूरी ताकत से।
और एक दिन मुझे बिना बताये धीरे से आपने मेरा कैरियर छोड़ दिया था। और मैं पैडल मारती हुई आगे निकल गई थी। आप बिल्कुल बच्चों की तरह उछल पड़े थे। अपने दोनों हाथों को उठाकर आप जोर से चिल्लाये थे। देखा मैं कह रहा था न कि डरो मत पैडल मारो। मैंने गुस्से में कहा था अगर मैं गिर जाती तो, आपने कहा था, गिरती कैसे भागकर पकड़ लेता।
थैंक्यू पापा मुझे हौंसला देने के लिये। मुझे यकीन दिलाने के लिये कि मैं जब भी गिरूंगी आप मुझे संभाल लेंगे।
और वो पढ़ते पढ़ते मेरा सो जाना और आपका कमरे के भीतर चुपके से आकर मेरा माथा सहलाना कैसे भूल सकती हूं। आज एक राज खोलूं। जब आप मेरी बिखरी किताबें बेड से हटा रहे होते थे। मुझे चादर उढ़ा रहे होते थे। मैं सोने का बहाना बना रही होती थी। एक इंतजार सा रहता था कि अब आप कमरे में आएंगे और चादर उढ़ाते उढ़ाते मेरा माथा सहलायेंगे। कितना सुकून होता था, आपकी उस छुअन में।
पापा सच कहूं, तो आज भी कई बार जब मैं थककर चूर हो जाती हूं। रात को सोने बेड पर जाती हूं तो लगता आप अभी आयेंगे और चादर उढ़ायेंगे। पापा वो सुकून की नींद अब नहीं आती।
पापा पता है, कब से मुझे बुखार नहीं चढ़ा। या शायद चढ़ा भी तो महसूस नहीं किया। पता है क्यों क्योंकि मुझे पता है अब कोई पूरी रात मेरे माथे को नहीं सहलायेगा। मेरे पैरों और हाथों को नहीं दबायेगा। पूरी रात आप मेरे सिरहाने बैठकर काट देते थे। मां बार बार आकर कहतीं, अब सो जाओ कल दफ्तर भी तो जाना है। बुखार भी उतर गया है। लेकिन आप वहां से हिलते नहीं थे। और पूरी रात जागकर मेरे जगने से पहले सुबह- सुबह दफ्तर निकल जाते। उन सारी जागकर काटी हुई रातों के लिये थैंक्यू पापा।
अरे हां, आपको ध्यान है पापा मैंने पहली बार जब रोटी बनाई थी। आपने क्या चटखारे लेकर खाई थी। आपने कहा था मां से ज्यादा अच्छी रोटी मेरी बनी है। और मैं मां को चिढ़ाने लगी थी। देखा, आपसे भी अच्छी रोटी बनाना सीख गई हूं। मुझे बाद में पता चला कि वह कच्ची पक्की रोटी कितनी बेस्वाद थी। थैंक्यू पापा मेरी कमियों को छिपाने के लिये।
आपने पहली बार जब मुझे स्कूटी लाकर दी थी, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था। आपने कहा था अब मेरी परी पर लगाकर उड़ेगी। हां, पापा आपने ही तो पर दिये हैं उड़ने के लिये मुझे। हौंसलों के पर।
और सबसे ज्यादा दुनिया के उलट ये बताने के लिये कि बेटी की शादी भले ही हो जाये पर उसका घर कभी नहीं छूटता। आपने मेरी विदाई के वक्त कहा था। बेटा याद रखना ये घर जितना पहले तुम्हारा था, उतना ही आज भी है। जब भी कभी कुछ कहना हो, मांगना हो बेहिचक मांगना। पापा थैंक्यू मुझे मेरे घर से पराया न करने के लिये।
आज भी फोन पर मेरी आवाज सुनकर मेरी हर कही अनकही बात जान लेते हैं। मेरी उदासी भांप लेते हैं। और गंभीर होकर पूछते हैं बिटिया कोई बात तो नहीं। खुश हो न। जब मैं कहती हूं कुछ नहीं बस दफ्तर से लौटीं हूं थकी हुई हूं, तो आप कहते हैं, बेटिया मेहनत आदमी को आत्मविश्वास देती है। मुझे पता है तुम एक दिन बहुत सफल इंसान बनोगी। पर बिटिया पूरी तरह से सफल इंसान वही होता है जो एक बेहतर इंसान भी होता है।
बिटिया अपनी जरूरतें मुझसे बेझिझक कहना। जब भी बुलाओगी तुरंत आ जाऊंगा।
आपकी ये बात सुनकर मैं हंस देती हूं पापा अब अब आपकी उम्र दौड़भाग करने की नहीं है। कब तक जवान रहेंगे। तो आप हंसकर कहते हैं। जब तक तुम बड़ी नहीं हो जाती।
आपकी ये बात सुनकर याद आती है, मेराज फैजाबादी की वो लाइन-मुझको थकने नहीं देता ये जरूरतों का पहाड़ मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा होने नहीं देते…।
आपकी प्यारी बिटिया