फिसली जुबान मचा घमासान
दानवे के एक बयान ने उन्हें नायक से खलनायक बना दिया, अब देखने वाली बात यह होगी
कि राव साहब दानवे को अपनी पूर्व स्थिति में वापस आने में अभी कितना और वक्त लगता है।
दानवे की फिसली जुबान से जो घमासान मचा है, वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा लेकिन अगर दानवे का बयान किसानों के मन में स्थायी रूप से बना रहा तो दानवे के लिए आने वाला वक्त बुरे दिन की तरह ही होगा। हालांकि दानवे ने अपने बयान के लिए माफी मांग ली है लेकिन वह माफी उतनी गंभीर नहीं जितना खेदजनक उनका बयान था।
-सुधीर जोशी
सूचना तथा तकनीकी के समृद्घ युग में किसी बड़े नेता को किस मुद्दे पर क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं, ऐसे दौर में अगर सत्ता पार्टी का प्रदेशाध्यक्ष किसानों के लिए अपशब्द कह दे तो बात दूर तलक तो जाएगी ही। कुछ ऐसी ही बात गत दिनों महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष राव साहब दादाराव दानवे पाटिल के लिए भी लागू होती है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस की ओर से भले ही दानवे को अभयदान दे दिया गया हो लेकिन दानवे के गृहनगर भोकरदन के किसान तथा जनता दानवे के बयान को किस अर्थ में लेते हैं, यह तो समय ही तय करेगा।
महाराष्ट्र के शीर्ष भाजपा नेताओं में शुमार राव साहब दानवे के नेतृत्व में मुंबई मनपा चुनाव में भारी जीत प्राप्त करने के बाद राव साहब दानवे को कहीं इस बात का घमंड तो नहीं हो गया कि वे जो चाहे बोल सकते हैं। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष राव साहब दानवे के बारे में अब तक जो यह कहा जाता था कि वे जमीन से जुड़े नेता रहे हैं और वे बड़े सरल तथा सहज हैं, लेकिन उनकी सहजता उस समय असहज हो गई, जब उन्होंने अपना पसीना बहाकर राज्य की जनता का उदर भरने वाले किसानों के लिए अपशब्द कहे तो किसान संगठनों के साथ-साथ दानवे के गृहनगर भोकरदन के लोगों का माथा भी भड़क उठा। यहां का किसान संगठन इतना नाराज हुआ कि उसने मुख्यमंत्री को चेतावनी दे डाली कि अगर उन्होंने दानवे के खिलाफ कार्रवाई नहीं की तो उन्हें जालना में पैर नहीं रखने दिया जाएगा, मुख्यमंत्री ने जालना के किसानों की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए दानवे को क्लीन चिट दे दी। दानवे के किसान विरोधी बयान को सत्ता में शामिल शिवसेना के साथ-साथ राज्य के विपक्षी दलों ने दवानल की तरह भड़का दिया। कहीं राव साहब दानवे की फोटो पर चप्पलों की माला पहनाई गई तो कहीं उनके पुतले फूंके गए। इन सबके बावजूद मुख्यमंत्री ने उन्हें क्लीन चिट दे दी और भाजपा की संवाद रैली का सूत्रधार भी उन्हें ही बना दिया। किसानों को अपशब्द कहने के संबंध में जब मुख्यमंत्री से उस्मानाबाद दौरे पर पत्रकारों ने पूछा तो वे मौन रहे।
दानवे के इस बयान पर जहां एक ओर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने दानवे को दानव करार दे दिया तो दूसरी ओर कांग्रेस के महाराष्ट्र प्रवक्ता डॉ. सुधीर ढोणे ने कहा कि दानवे के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष राज्य के किसानों के प्रति किस तरह का भाव रखते हैं। 1973 से सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाले राव साहब दानवे का जन्म जालना जिले की भोकरदन तहसील के राजूर के जावखेड़ा नामक छोटे से गांव में 18 मार्च, 1956 में हुआ। सन् 1980 में भोकरदन पंचायत समिति के चुनाव में विजय प्राप्त करने के पश्चात राव साहब दानवे की भोकरदन पंचायत समिति के सभापति पद पर ताजपोशी की गई। इसके बाद सन् 1989 में जब राव साहब दानवे भोकरदन विधानसभा क्षेत्र के विधायक बने तो गांव की माटी के इस सपूत की इस सफलता को सभी ने सराहा, लेकिन कहते हैं न कि पद मिलते ही लोगों के अंदर की विनम्रता, समाज को देखने का नजरिया, नेता तथा किसान के बीच का अंतर स्पष्ट दिखायी देने लगता है। सरपंच पद से लेकर प्रदेशाध्यक्ष पद तक पहुंचने के लिए दानवे ने जो कुछ किया यह तो दानवे ही बेहतर तरीके से बता पाएंगे लेकिन इतना तो तय है कि दानवे ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है, उससे प्रदेशाध्यक्ष जैसे पद की गरिमा पर आघात जरूर पहुंचा है।
जीभ लाओ पांच लाख पाओ जो जीभ बचपन से किसानों के हितों की बात बोलती थी, जिस जीभ से किसानों के गुण गाए जाते थे, उसी जीभ से किसानों को अपशब्द कहे जा रहे हैं, यह बेहद दुखद है। जिस जीभ का इस्तेमाल सत्संग तथा अच्छे शब्द बोलने के लिए किया जाना चाहिए उस जीभ से अभद्र भाषा का प्रयोग करना ठीक नहीं है। ऐसे वक्त में सत्ता में सहयोगी शिवसेना के साथ-साथ राज्य के सभी प्रमुख विरोधी दलों की ओर से किसानों को ऋण माफी देने के लिए सरकार विरोधी वातावरण बनाया जा रहा हो, उस दौर में राव साहब दानवे के किसान विरोधी बयान ने आग में घी डालने का काम किया है, ऐसे में दानवे को मुख्यमंत्री की ओर से क्लीन चिट देने से किसानों का मुख्यमंत्री से भरोसा टूट गया है। शेतकरी संगठन दानवे के बयान से इतना खफा है कि उसने राव साहब दानवे की जीभ काटकर लाने वाले को 5 लाख रूपए का पुरस्कार देने का ऐलान किया है। जालना के किसान संगठन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को पत्र लिखकर उनसे अपील की थी कि अगर दानवे के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो मुख्यमंत्री को भविष्य में कभी भी जालना में पैर नहीं रखने दिया जाएगा।
किसानों की अगली रणनीति पर नजर
मुख्यमंत्री के समक्ष दानवे ने अपना पक्ष किस तरह से रखा और मुख्यमंत्री ने उन्हें क्लीन चिट देकर राज्य की जनता को बता दिया कि राव साहब पूरी तरह से क्लीन है, अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या दानवे पर किसी भी तरह की कार्रवाई न होने से राज्य के किसानों की अगली रणनीति क्या होती है। आगामी 1 जून से नासिक के किसान अपनी कुछ मांगों को लेकर आंदोलन करने वाले हैं, क्या किसानों के इस आंदोलन में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस तथा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राव साहब दानवे के खिलाफ स्वर बुलंद होता है या नहीं, अगर इस आंदोलन में किसानों ने राज्य सरकार के विरोध में स्वर मुखर नहीं किया तो माना यही जाएगा कि दानवे के बयान को किसान भूल गए हैं और उन्होंने दानवे को माफ कर दिया और अगर इस आंदोलन में मुख्यमंत्री तथा प्रदेशाध्यक्ष किसानों के निशाने पर रहे तो उसके दूरगामी परिणाम होंगे, संभव है कि अगले चुनाव के बाद महाराष्ट्र की सत्ता भी परिवर्तित हो जाए।
बदल गई राजनीतिक छवि
दानवे की जुबान फिसली या उन्होंने जानबूझकर किसानों के लिए इस तरह से शब्द का इस्तेमाल किया यह तो समय ही तय करेगा, लेकिन इतना तो तय है कि दानवे द्वारा किसानों के लिए प्रयुक्त एक अप्रिय शब्द से राज्य में दानवे की राजनीतिक छवि को ही बदल दिया है। पद, प्रतिष्ठा, मान-सम्मान से ऊपर उठकर मानवता को अपनी आंखों के सामने रखकर दानवे को ठंडे दिमाग के यह भी सोचना होगा कि दानवे को पहचान उनके गांव की माटी ने दी है, इस पहचान को भुलाकर वे ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकते। नेता की ताकत कार्यकर्ता के कारण ही होती है, इसलिए नेता को सदैव इस बात का ध्यान रखना होता है कि मेरे किसी व्यवहार से मेरे कार्यकर्ता का दिल तो नहीं दुख रहा।
बयान के हिसाब से माफी नहीं
दानवे को मुख्यमंत्री की ओर से मिली क्लीन चिट पर गर्व न करके दानवे को इस बात का गंभीरता से चिंतन करना होगा कि उन्होंने किसानों के लिए जो कुछ कहा वह कितना उचित था। दानवे के एक बयान ने उन्हें नायक से खलनायक बना दिया, अब देखने वाली बात यह होगी कि राव साहब दानवे को अपनी पूर्व स्थिति में वापस आने में अभी कितना और वक्त लगता है। दानवे की फिसली जुबान से जो घमासान मचा है, वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा लेकिन अगर दानवे का बयान किसानों के मन में स्थायी रूप से बना रहा तो दानवे के लिए आने वाला वक्त बुरे दिन की तरह ही होगा। हालांकि दानवे ने अपने बयान के लिए माफी मांग ली है लेकिन वह माफी उतनी गंभीर नहीं जितना खेदजनक उनका बयान था।