नई दिल्ली : मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने बताया है कि उन्हें इंटरनेट पर बादशाहत रखने वाली गूगल और सोशल मीडिया मुगल ट्विटर और फेसबुक “एफबी” ने आश्वासन दिया है कि वह चुनाव प्रचार के दौरान अपने प्लेटफार्म से चुनाव को प्रभावित नहीं होने देंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त रावत ने रविवार को बताया कि इन कंपनियों ने कर्नाटक चुनाव के दौरान रोकथाम की अपनी तकनीकों का परीक्षण किया था। यह छोटा सा पायलट प्रोजेक्ट एक की शुरुआत थी। लोकसभा चुनाव से पहले चार राज्यों “मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम” में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान अपेक्षाकृत बड़े पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत होगी। इन राज्यों में विधानसभा चुनाव इसी साल के अंत में होने हैं। रावत ने बताया कि वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा के नेतृत्व वाली कमेटी ने गूगल, फेसबुक और ट्विटर के क्षेत्रीय और स्थानीय प्रमुखों को बुलाकर पूछा था कि वह भारतीय चुनावों की शुद्धता को बरकरार रखने के लिए क्या कर सकते हैं। वह नहीं चाहते कि फेक न्यूज और मतदाताओं को प्रभावित करने वाली सामग्री सोशल मीडिया के इन मंचों पर प्रसारित हो। मुख्य चुनाव आयुक्त रावत ने बताया कि सभी कंपनियों ने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान इंटरनेट और सोशल मीडिया मंचों पर मतदाताओं को भ्रमित या प्रभावित करने वाली विषय सामग्री को प्रसारित न होने देने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है। विशेषकर मतदान से पहले के 48 घंटे अहम होते हैं, जब मतदाता को बाहरी किसी व्यक्ति या सामग्री से प्रभावित हुए बगैर खुद से मंथन का समय मिलना चाहिए। गूगल का कहना है कि वह अपने यहां एक ऐसी प्रणाली स्थापित करेगा जिससे उनके मंचों या कंपनियों में किए गए अतिरिक्त खर्च का ब्योरा खुद ब खुद चुनाव आयोग के पास चला जाएगा। यानी लाइक्स खरीदने या एकाएक लाखों फालोवर्स बढ़ाने जैसे आरोपों को गहराई से समझा जा सकेगा। सिन्हा के अधीन कमेटी इस बात पर भी विचार करेगी कि जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 126 में क्या संभावित बदलाव किए जा सकते हैं। इस धारा के तहत टेलीविजन या अन्य ऐसे उपकरण पर चुनाव क्षेत्र में मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव से संबंधित कोई विषय सामग्री प्रसारित करने पर रोक है।