बजट: जल संरक्षण को बनाना होगा जन अभियान, राष्ट्रीय नीति भी जरूरी
बजट में जल के लिए प्रावधान का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन जल संकट से निकलने के लिए राष्ट्रीय नीति भी बनाई जानी चाहिए। जल संरक्षण को भौतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक लगाव के साथ सोचना होगा, तभी जन भागीदारी हो पाएगी। हमारे देश का इतिहास रहा है कि जब भी देश में जल संकट होता था, तब राजा-महाराजा खुद सीधे समस्या के समाधान से जुड़ जाते थे।
पिछले दशकों में हमने यही खो दिया, जिसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं। जल को लेकर लोगों में केवल भौतिक लगाव रह गया। इससे जन भागीदारी घटी और संकट गहराने लगा। अब मोदी सरकार कह रही है कि जल सुरक्षा और नागरिकों को स्वच्छ जल उपलब्ध कराना उसकी प्राथमिकता है, तो इसे पौधरोपण की तरह मुहिम बनाना होगा। 50 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं, जो संरक्षण तो करते नहीं, दोहन लगातार करते हैं।
गांव के लोग तो फिर भी किसी तरह पानी की बचत में सहयोग करते हैं, लेकिन शहरों में कैसे किया जाए? इसके लिए या तो शहर के लोगों को बाहर जाकर योगदान करना होगा, या फिर उन्हें अपने इस्तेमाल के पानी को बचाने के लिए आर्थिक सहायता करनी चाहिए। इसका सफल प्रयोग हमने झाबुआ में किया है।
सरकार को योजना बनाकर लोगों को जल संरक्षण और स्वेच्छा से पानी बचाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। घरों और अन्य इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया जाना चाहिए। हम अभी करीब 8 फीसदी वर्षा जल ही संचित कर पा रहे हैं। यदि इसे इसे हम 15 फीसदी पर ले आते हैं तो इस्तेमाल के लिए पानी भी रहेगा, भूजल स्तर भी बढ़ेगा। बिजली की तरह ही पानी के खर्च और बचाने के प्रावधान हों तो स्थिति जल्द सुधर जाएगी।