अभी आठवीं तक के बच्चों को सतत मूल्यांकन (बाल मैत्री परीक्षा) के आधार पर अगली कक्षा के लिए पास कर दिया जाता है। शिक्षा विभाग का मानना है कि इस तरह बच्चे पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रहे हैं और नवीं के बाद दबाव पड़ने पर स्कूल छोड़ दे रहे हैं।
शिक्षामंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी के मुताबिक प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया है कि पांचवीं और आठवीं की बोर्ड परीक्षाएं कराई जाएं। नैथानी का कहना है कि उत्तराखंड की पहल पर अन्य राज्य भी सहमत हैं।शिक्षा का अधिकार (आरटीई) लागू होने के बाद से कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों को फेल नहीं किया जा सकता और न ही उनकी परीक्षाएं ली जाती हैं। परीक्षा की जगह बच्चों का मूल्यांकन किया जा रहा है। शिक्षा विभाग का मानना है कि इससे सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
आठवीं पास करने के बाद कुछ बच्चे ऐसे हैं जो ठीक से पढ़ना-लिखना तक नहीं जानते और नवीं कक्षा में पढ़ाई का दबाव पढ़ने पर स्कूल छोड़ दे रहे हैं। दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की बैठक में भाग लेकर दून लौटे शिक्षामंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने बताया कि इक्का-दुक्का प्रदेशों को छोड़कर आठवीं तक बोर्ड परीक्षा के लिए सभी राज्य सहमत हैं।
इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर समिति गठित की गई है। इस संबंध में बेसिक शिक्षा निदेशक सीमा जौनसारी का कहना है कि न्यूनतम फीस और परीक्षा होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि परीक्षा के संबंध में हम अपनी राय केंद्र को भेज चुके हैं।
प्रदेश में कुल विद्यालय
प्राथमिक विद्यालय – 12,511
उच्च प्राथमिक – 2,957
शिक्षा में सुधार के लिए सरकार हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की तरह पांचवीं और आठवीं कक्षाओं की बोर्ड परीक्षाएं कराना चाहती है। हो यह रहा है कि बच्चे बगैर परीक्षाओं के पास होकर नवीं में पहुंच रहे हैं और फिर पढ़ाई का दबाव पढ़ने पर स्कूल छोड़ रहे हैं।