लखनऊ : ज्योतिष के अनुसार आज ज्येष्ठ माह का पहला मंगलवार है, जिसे बड़ा मंगलवार कहा जाता है। उत्तर प्रदेश की राजधानी समेत देश के हिस्सों में बड़े मंगल पर हनुमान की आराधान की जाती है, लेकिन इस बार लॉकडाउन और कोरोना महामारी को लेकर मंदिर सूने—सूने से लग रहे हैं। वहीं बड़े मंगल पर श्रद्धालुओं की आस्था कम नहीं हुई, अधिकतर लोगों ने घरों में ही हनुमान चालीसा व सुंदरकांड का वाचन किया।
आज यानि एक जून 2021 को ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि है। बड़े मंगल के दिन विशेष रुप से हनुमान जी की पूजा की जाती है। वे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। उनको लाल लंगोट, चमेली का तेल और सिंदूर का चोला तथा लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। आज के दिन रवि योग और द्विपुष्कर योग बना हुआ है। हनुमान जी के बारे में यह कथा बहुत प्रचलित है कि जब रावण को युद्ध में अपनी हार दिखने लगी थी और वह परेशान हो गया था। रावण का महा प्रतापी पुत्र मेघनाथ और अत्यंत बलशाली भाई कुंभकर्ण युद्ध भूमि में मारे जा चुके थे। ऐसी स्थिति में रावण ने, पाताल लोक के स्वामी अहिरावण को मजबूर किया कि वह श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करे।
अहिरावण अत्यंत मायावी राक्षस राजा था। वह हनुमान का रूप धारण करके, अपनी माया से, श्री राम और लक्ष्मण का अपहरण करके पताल लोक ले जाने में सफल भी हो गया। एक बार पुनः बजरंगबली श्रीराम और लक्ष्मण को ढूंढते हुए पताल में जाने लगे। चूंकि पाताल लोक के सात द्वार थे, और हर एक द्वार पर एक पहरेदार था। परन्तु सभी पहरेदारों को हनुमान जी ने अपने बल से परास्त कर दिया, किंतु अंतिम द्वार पर उन्हीं के समान बलशाली, स्वयं एक बानर पहरा दे रहा था। अपने समान रूप देखकर हनुमान जी को आश्चर्य हुआ और उस बानर से हनुमान जी ने परिचय पूछा, तो उसने अपना नाम मकरध्वज बताया और अपने पिता का नाम हनुमान बताया। जैसे ही मकरध्वज ने अपने पिता का नाम हनुमान बताया, तो बजरंगबली अत्यंत क्रोधित हो गए, और बोले, कि यह असंभव है, क्योंकि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहा हूं, तुम ऐसा झूठ क्यों बोल रहे हो? फिर मकरध्वज ने बताया कि जब हनुमान जी लंका जला कर समुद्र में आग बुझाने को कूदे थे, तब उनके शरीर का तापमान अत्यंत बढ़ा हुआ था। ऐसे में जब वह सागर के ऊपर थे, तब उनके शरीर के पसीने की एक बूंद सागर में गिर गई थी, जिसे एक मकर ने पी लिया था और उसी पसीने की बूंद से वह गर्भावस्था को प्राप्त हो गयी।
शास्त्रों के अनुसार वह मकर पूर्व जन्म में कोई अप्सरा थी, जो श्राप के कारण मकर बन गई थी। बाद में उसी मकर को अहिरावण के मछुआरों ने पकड़ लिया और मार दिया, और उसी के गर्भ से मकरध्वज का जन्म हुआ। यह कथा जानकर हनुमान जी ने मकरध्वज को अपने गले से लगा लिया। हालाँकि अपने पिता के रूप में हनुमान जी को पहचानने के बाद भी मकरध्वज हनुमान जी को अंदर जाने देने को तैयार नहीं हुआ। अपने पुत्र को स्वामी भक्ति पर अटल देखकर हनुमान जी उससे और प्रसन्न हुए और पुनः दोनों में भयंकर युद्ध हुआ, किंतु अंत में हनुमान जी ने अपनी पूंछ से उसे बांधकर दरवाजे से हटा दिया, और हनुमान जी ने राम और लक्ष्मण को अंततः मुक्त कराने में सफलता प्राप्त कर ली। बाद में मकरध्वज को ही पताल का नया राजा, स्वयं श्रीराम ने घोषित किया।