देहरादून: बुधवार को उत्तराखंड में भूकंप के झटकों से धरा कांप उठी। दून के लिए चिंता इस लिहाज से भी अधिक है कि यहां की जमीन की ऊपरी परत बेहद कमजोर है। गंभीर यह कि जिस हिस्से में सबसे अधिक बहुमंजिला इमारतें खड़ी हैं, वहीं की सतह सबसे कमजोर है। यह जगह है राजधानी का केंद्र बिंदु घंटाघर व टॉप कमर्शियल व वीवीआपी क्षेत्र राजपुर रोड। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के शोध में इस बात का खुलासा हो चुका है। यह बात और है कि सरकारी तंत्र ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया।
भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील व संवेदनशील दोनों ही जोन में बसे दून में जिस तरह से बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो रही हैं, उससे भू-वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ती जा रही है। राजधानी की जमीन इन इमारतों का बोझ सहने में कितनी सक्षम है, यह पता लगाने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने दून के विभिन्न हिस्सों का अलग-अलग अध्ययन किया था।
सिस्मिक माइक्रोजोनेशन ऑफ देहरादून सिटी के इस अध्ययन में राजधानी को 50 छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा गया। शोध में जो नतीजे सामने आए वह भविष्य में बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं। घंटाघर व राजपुर रोड आदि क्षेत्र की जमीन की ऊपरी सतह काफी कमजोर पाई गई। जबकि इन इलाकों में सबसे अधिक मल्टीस्टोरी बल्डिंग्स हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि यहां बन रहे भवनों के डिजाइन भूमि की क्षमता के अनुसार नहीं है।
कमजोर सतह के इलाके
घंटाघर के आसपास का बाजार, राजपुर का व्यवसायिक क्षेत्र, हाथीबड़कला, जाखन, राजपुर, करनपुर, राजपुर रोड की ऑफिसर कॉलोनी, खुड़बुड़ा मोहल्ला आदि।
क्लेमेनटाउन की जमीन मजबूत
शोध में राजधानी के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम भाग की जमीन की ऊपरी सतह काफी कठोर पाई गई। इस दिशा में क्लेमेनटाउन, मोरोवाला, आइएसबीटी, वसंत विहार, पित्थूवाला, शिमला बाईपास, जीएमएस रोड आदि क्षेत्र आते हैं।
भूमि के अनुसार बनाएं भवन का डिजाइन
यदि जमीन की क्षमता के अनुसार भवनों का डिजाइन तैयार किया जाए तो बहुमंजिला इमारतें भी आसानी से भूकंप झेल जाएंगी। पुरानी इमारतों को भी इस तकनीक से मजबूत बनाया जा सकता है। इसमें पूरी लागत का दो-तीन फीसदी ही अधिक खर्च आता है। वाडिया के भू-वैज्ञानिक डॉ. एके महाजन ने बताया जमीन की क्षमता मापने के लिए शेयर वेव वेलोसिटी तकनीक संस्थान के पास उपलब्ध है। वैज्ञानिक साइटवार भूमि की क्षमता मापते हैं। इच्छुक बिल्डर, आर्किटेक्ट या अन्य लोग इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।
वरिष्ठ वैज्ञानिक (वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान) डॉ. सुशील कुमार का कहना है कि उत्तर दिशा के भाग की जमीन के नीचे हार्ड रॉक्स तो हैं, मगर ऊपरी सतह जलोड़ी मिट्टी से बनी है। यह भूकंप आने पर जल्दी बिखर जाती है। यहां बड़े भवन सिर्फ शेयर वेव वेलोसिटी तकनीक के अनुसार बनने चाहिए।
भूकंप आया तो इतना होगा नुकसान
समय——जन हानि————-घायल———————नुकसान
रात्रि——-555 से 1090——10931 से 16895——-1894 करोड़ रु.
दिन——-360 से 750——–7338 से 11411——–1894 करोड़ रु.