राजनीति

बदलाव नहीं यह 2017 की बिसात है!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमण्डल का छठां विस्तार किया। इसमें 11 नए चेहरे मंत्री बनाए गए हैं और नौ मंत्रियों का कद बढ़ाया गया। संभवत: इस नई टीम के साथ ही अखिलेश 2017 के चुनावी जंग में उतरेंगे।

Captureउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव करके एक बार फिर अपनी टीम को मजबूती प्रदान की है। संभवत: अखिलेश सरकार का यह आखिरी बड़ा बदलाव साबित होगा। इसी टीम के साथ समाजवादी 2017 को फतह करने निकलेंगे। अखिलेश ने अपने मंत्रिमडंल में नौ नये चेहरे शामिल किये गये तो उन मंत्रियों का कद बढ़ाया गया जिनके कामकाज से नेताजी और अखिलेश खुश थे। अच्छा काम करने वालों को तरक्की मिली तो इस गुणा-भाग में आठ मंत्रियों की कुर्सी जाती रही। मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही मंथन का भी दौर शुरू हो गया है। मीडिया, राजनैतिक पंडितों और राजनैतिक दलों द्वारा अपने-अपने हिसाब से इस बदलाव का आकलन किया जा रहा है। किसी को यह बदलाव जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाये जाने का प्रयास लगता है। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि विस्तार में पार्टी के प्रति वफादार और ईमानदार नेताओं को महत्व मिला है। इसके उलट सच यह भी है कि इस बदलाव में कुछ और दागी-दबंग भी ‘सरकार’ बन गये हैं। मंत्रिमंडल विस्तार से एक संकेत और साफ निकल कर आया कि अखिलेश यादव पार्टी के भीतर मुसलमानों की एक नई लीडरशीप भी तैयार करना चाहते हैं ताकि एक-दो मुस्लिम चेहरों के सहारे सपा की नैया को आगे बढ़ाने की परम्परा को विराम दिया जा सके, जो अक्सर सपा के लिये घातक सिद्ध होती रही है। इसी के चलते खान साहब की नाराजगी की परवाह न करते हुए उनके विरोधी रियाज अहमद को लाल बत्ती मिल गई वहीं कमाल साहब को कैबिनेट का दर्जा प्राप्त हो गया। अखिलेश सरकार का विस्तार अमर छाया से भी अछूता नहीं रहा। अमर सिंह के साथ बगावत का झंडा लेकर घूमने वाले एक नेताजी को भी अमर के पुन: सपा के करीब आते ही लालबत्ती का सुख मिल गया। सबसे हैरान करने वाला चयन सरदार जी का रहा, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह न तो किसी सदन के सदस्य हैं और न ही उसका यूपी से कभी कोई नाता ही नहीं रहा। मगर बताया यह भी जाता है कि वर्षों पूर्व ‘मिले मुलायम-कांशीराम, उड़ गये हवा में राम’ नारे को सरदार जी ने ही गढ़ा था। विस्तार में क्षत्रियों, ब्राह्मणों, मुसलमानों, पिछड़ों और दलितों सब पर अखिलेश की नजर रही। दलितों को लुभाने के लिये बहराइच के बंशीधर बौद्ध को सरकार में जगह दी गई। बौद्ध कुछ समय पूर्व चर्चा में आये थे। वह आज भी एक झोपड़ी में रहकर अपना जीवनयापन कर रहे हैं। ईमानदारी की इससे बड़ी मिसाल शायद ही कोई और मिल सकती है। बौद्ध की पहचान मायावती विरोधी नेता के रूप में की जाती है। वहीं वफादारी का इनाम बलवंत सिंह उर्फ रामू वालिया को मिला। भले ही वालिया यूपी के नहीं हैं लेकिन पुराने समाजवादी जरूर हैं। परिर्वतन से यह भी साफ हो गया कि बदलाव में मुलायम, अखिलेश और शिवपाल यादव की ही चली। कुछ चेहरे जिनके शपथ ग्रहण करने की बेहद उम्मीद थी, अंत समय में उनका नाम कहीं नहीं दिखाई दिया। इसमें सबसे खास नाम अशोक बाजपेयी का है। अशोक वाजपेयी 2014 में लखनऊ से लोकसभा के प्रत्याशी थे, लेकिन ऐन मौके पर इनका टिकट काट कर युवा नेता अभिषेक मिश्रा को उतार दिया गया था। अशोक वाजेपयी की जगह ब्राह्मण चेहरा समझे जाने वाले तेज नारायन पांडेय को मंत्रिमंडल में जगह मिलना भले ही कुछ लोगों के गले नहीं उतरा हो, लेकिन अखिलेश, पवन पांडेय के सहारे अयोध्या-फैजाबाद में अपनी जड़ें मजबूत करना चाहते हैं। मित्रसेन यादव की मौत के बाद यहां एक खालीपन आ गया था। फायदे की बात की जाये तो अखिलेश मंत्रिमंडल में गाजीपुर से चार नेता विजय मिश्रा, कैलाश नाथ, ओम प्रकाश और शादाब फातिमा मंत्री बन गये हैं। अखिलेश मंत्रिमंडल में शामिल होने वाली फातिमा दूसरी महिला नेत्री हैं।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मंत्रिमंडल में बदलाव करके जाते हुए 2015 में एक नया रंग भर दिया। मंत्रिमंडल का विस्तार करते समय उन्होंने इस बात की जरा भी परवाह नहीं की कि सियासत और सत्ता के रंग ‘निराले’ होते हैं। यहां कुछ करो तो हलचल और न करों तो परेशानी। सोचो कुछ, होता कुछ और है। चुप रहो तो मुश्किल और मुंह खोलो तो आफत। कहो कुछ, मतलब उसका कुछ और निकाला जाता है। इमेज बनाने के चक्कर में डैमेज होती चली जाती है। गैरों से क्या गिला, यहां अपने भी जख्म देने में पीछे नहीं रहते हैं। मौकापरस्ती तो सियासत की रग-रग में बसी है। इस बात को देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बेहतर कौन समझ सकता है। जब से अखिलेश ने सत्ता संभाली है, वह ऐसी तमाम बातों के भुक्तभोगी हैं। वह जब सबको साथ लेकर चलते हैं तो कहा जाता है कि ‘चाचाओं’ के आगे उनकी (अखिलेश) चलती ही नहीं है। सपा सुप्रीमो, पिता मुलायम उन्हें नसीहत देते हैं तो विरोधियों को यह समझने में देर नहीं लगती है कि पर्दे के पीछे से मुलायम सत्ता की बागडोर संभाले हुए हैं। सरकार को घेरने के लिये विरोधियों के पास अपने-अपने तर्क हैं, जिनको काटना मुश्किल है। ताज्जुब है, अखिलेश मंत्रिमंडल में बदलाव हुआ, क्यों हुआ, यह बताने को कोई तैयार ही नहीं है। मीडिया से लेकर राजनैतिक पंडित तक हवा में तीर चला रहे हैं। आखिर उन्हें भी तो अपनी ‘दुकान’ चलानी है।
सबसे बड़ा सवाल तो सीएम अखिलेश पर ही उठाया जा रहा है जिनके पास गृह विभाग भी है और कानून व्यवस्था का मसला गृह विभाग से ही जुड़ा हुआ है। प्रदेश की जनता सपा राज में सबसे अधिक त्रस्त प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था से ही रहती है। सबसे पहले तो अखिलेश को अपने आप आईना देखना चाहिए था। ऐसे लोगों की भी लम्बी-चौड़ी लिस्ट है जिनका मानना है कि सीएम अखिलेश ने अपने मंत्रिमंडल के आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी के खेल में कुछ अच्छों को बुरा और कुछ बुरो को अच्छा साबित कर दिया। वर्ना प्रजापति जैसे विवादित मंत्री नहीं बचते और चेयरमैन तोताराम के बोगस वोटिंग कराने वाले वीडियों के वायरल होने के शक में आलोक शाक्य को अपनी कुर्सी नहीं गंवाना पड़ती। कोई कहता है कि अखिलेश सरकार 2017 के लिये मेकओवर कर रही है। किसी को लगता है कि अब ऐसे कदम उठाने से सपा को कोई फायदा होने वाला नहीं हैं। उसकी स्थिति ‘एक तरफ कुंआ और दूसरी तरफ खाई, निगलो तो अंधा, उगलो तो कोढ़ी जैसी है। इस सबसे इतर चर्चा इस बात की भी चल रही है कि आखिर ऐसे कौन से कारण थे जो इन मंत्रियों से इस्तीफा मांगने की बजाये उन्हें बर्खास्त करना जरूरी हो गया। आठ मंत्रियों की बर्खास्तगी की नौबत आ गई लेकिन सरकार ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि इनको क्यों बर्खास्त किया गया। आखिर मतदाताओं को इस बात का अधिकार मिलना ही चाहिए कि उसे यह पता चले कि उसके द्वारा चुने गये नुमांइदों ने ऐसा क्या किया जो उसे बर्खास्त करने की नौबत आ गई। सवाल कई हैं, लेकिन राजनीति की दुनिया में जबाव देने की परम्परा ही नहीं रही है। कभी जबाव दिया भी जाता है तो उसे पूरी तरह से राजनीति की चासनी में लपेट दिया जाता है। कमोवेश यह स्थिति सत्तारूढ़ होने वाले तमाम दलों में देखी जाती रही है।
बात अखिलेश मंत्रिमंडल के फेरबदल की कि जाये तो इस बदलाव से सपा के चाल-चरित्र और चेहरे में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है। अब इतना समय नहीं बचा है कि जो बदलाव करीब पौने चार वर्षों में नहीं हो पाया वह बाकी बचे सवा साल में इस बदलाव से हो जायेगा। जो नये मंत्री बनेंगे उनके पास काम करने का तो मौका बहुत कम रहेगा, लेकिन इस बदलाव के सहारे सपा जातीय गणित जरूर मजबूत करना चाहेगी। वहीं भाजपा इस बात से खुश है कि समाजवादी पार्टी नेतृत्व ही 2017 के विधान सभा चुनाव के लिये उसके पक्ष में माहौल बना रही है। अखिलेश ने अपने कुछ मंत्रियों को सिर्फ इसी लिये मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिखाया है क्योंकि यह मंत्री भाजपा नेताओं से नजदीकी बना रहे थे और चुनाव आते-आते यह सपा से नाता तोेड़कर भाजपा का दामन थाम सकते थे। ऐसे में यह चर्चा उठना लाजिमी है कि क्या अखिलेश के कद्दावर नेताओं और मंत्रियों को भी इस बात का भरोसा नहीं है कि 2017 में प्रदेश में समाजवादी पार्टी की वापसी होगी। कुल मिलाकर यह बदलाव नहीं 2017 के लिये बिसात बिछायी गई है। 2=

काम आया नेताजी व अखिलेश पर भरोसा
अखिलेश यादव सरकार में अभी तक राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रहे अरविन्द सिंह गोप का कद मंत्रिमण्डल के ताजा उलटफेर में बढ़ गया है। मुख्यमंत्री के साथ ही सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के नजदीकियों में शुमार होने वाले गोप को अब तरक्की देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इससे पूर्व भी गोप का पार्टी स्तर पर भी कद ऊंचा किया गया था। छात्र राजनीति से निकले गोप को मुलायम सिंह यादव ने भी सपा में प्रदेश सचिव की जिम्मेदारी दी थी। उनकी लगन और पार्टी के प्रति समर्पण को देखते हुए अखिलेश यादव ने उन्हें पार्टी का प्रदेश महासचिव बनाया। संगठन में नयी जिम्मेदारी मिलने के बाद उन्होंने विधानसभावार प्रशिक्षण शिविर का कार्यक्रम शुरु किया। वे पहले ही लक्ष्य 2017 को प्राप्त करने के लिए जुटे हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ गांव और जनता के बीच जाते रहे हैं। साथ ही उनके विभाग की जितनी योजनायें जनता से सीधे जुड़ी हैं, उन्हें वे स्वयं मॉनीटर करते हैं। वास्तव में अखिलेश सरकार द्वारा गांव और गरीब के लिए किए जा रहे कार्यों में गोप का ग्राम्य विकास विभाग और मंत्रियों व विभागों की तुलना में अव्वल रहा है। 2012 के विधानसभा चुनाव में बाराबंकी जिले की सभी छह की छह सीटों पर कब्जा सिर्फ और सिर्फ गोप के चुनावी कौशल के कारण हुआ था। दस्तक टाइम्स ने अपने जुलाई माह के अंक में ही यह खुलासा कर दिया था कि गोप को प्रोनन्त कर अखिलेश काबीना मंत्री बनाने जा रहे हैं। हालांकि जब इस बारे में उनसे साक्षात्कार के समय सवाल किया गया था तब उन्होंने उसी सादगी से यह कहा था कि ‘उनके लिए आदरणीय नेताजी मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का भरोसा ही बहुत बड़ा है, पद उसके आगे कुछ भी नहीं है। जो कुछ जीवन में हासिल किया वह सिर्फ नेताजी के आर्शीवाद से ही संभव था। मेरे लिए नेताजी का भरोसा ही सबसे बड़ा है।’ जितेन्द्र शुक्ल

Related Articles

Back to top button