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बदायूं कांड : मुख्य आरोपी समेत पांच को जेल, सीबीआई जांच की सिफारिश

bdबदायूं। यूपी के बदायूं में दो चचेरी बहनों के अपहरण और गैंगरेप के बाद हत्याकर शवों को गांव के पास ही एक पेड़ पर लटकाने की घटना ने भारत ही नहीं दुनियाभर को हिलाकर रख दिया है। इस घटना में सबसे शर्मनाक यह है कि वर्दी पर नागरिकों की सुरक्षा का तमगा लगाकर घूमने वाले ‘रक्षक’ ही भक्षक बने। बच्चियों के साथ दरिंदगी में शामिल सात आरोपियों में दो पुलिस वाले भी थे।
घटना 27 मई की है। दो चचेरी बहनें खेत की ओर गईं थीं। बच्चियों में एक की उम्र तेरह व दूसरी की उम्र सोलह वर्ष थी। खेत के पास ही पांच वहशियों ने दोनों मासूमों को अगवा कर लिया। बच्चियों के शोर मचाने पर गांव के कुछ लोग जब दौड़े तो आरोपी फायरिंग करते वहां से उन्हें अपने साथ उठा ले गए। घटना की जानकारी जब उनके पिता को हुई तो बदहवास बाप अपनी मासूम बच्चियों की सुरक्षा की गुहार के लिए थाने पहुंचा। थाने पर शिकायत दर्ज करने के बजाए दरोगा ने बच्चियों के दो घंटे में मिल जाने की बात कहकर उसे घर वापस जाने की सलाह दे डाली। इतना ही नहीं जब निरीह बाप ने जल्द कार्रवाई करने की प्रार्थना की तो दारोगा ने डंपटते हुए जो जवाब दिया उसे सुनकर किसी का भी दिल कांप उठे। दरोगा बोला,‘आज नहीं मिलीं तो कल तक किसी पेड़ पर जरूर लटकी मिलेंगीं।’ जिसका डर था, वही हुआ। अगले दिन 28 मई को दोनों मासूमों का शव गांव के पास ही एक बाग में पेड़ से लटकाता मिला। शव देख गांव वालों का खून उबल पड़ा। सैकड़ों की संख्या मेंं लोग सड़कों पर उतर आए। लोगों में सबसे गुस्सा इस बात पर था कि शिकायत के बाद भी पुलिस तत्काल हरकत में नहीं आई थी, जबकि गांव वाले उन सभी आरोपियों का नाम तक बता रहे थे, क्योंकि घटना कुछ ग्रामीणों के सामने ही हुई थी। ग्रामीणों के मुताबिक सात दरिंदों में दो पुलिस वाले भी थे। इनमें स्थानीय थाने का एक हेड कांस्टेबल छत्रपाल यादव और सिपाही सर्वेश यादव भी शामिल था।
दुखद यह है कि गांव वालों का बढ़ता गुस्सा देख पुलिस के अफसर मामले को दबाने की सारी जुगत लगाने लगे। बच्चियों के घर वालों को मनाया और धमकाया भी, लेकिन मामला मीडिया में आने के बाद तुरंत सरकारी मशीनरी डैमेज कंट्रोल में जुट गई। मामले के तूल पकड़ता देख बदायूं के एसएसपी अतुल सक्सेना ने आनन-फानन में तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर दोनों आरोपी पुलिस वालों को बर्खास्त कर दिया। गांव में बढ़ते तनाव के चलते कोई अप्रिय घटना न घटे वहां पीएसी तैनात कर दी गई है।
आईजी ने कराई सरकार की किरकिरी
बदायूं कांड के कारण चारों तरफ से घिरी अखिलेश सरकार की उनके ही अफसर किरकिरी करने में पीछे नहीं रहे। एसटीएफ के आईजी आशीष गुप्ता ने इस जघन्य कांड को आंकड़ों में लपेटकर शायद लोगों को गुमराह करने की कोशिश की। आईजी ने बयान दिया कि यूपी में दुराचार की दस घटनाएं रोज होती हैं। अगर जनसंख्या के हिसाब से देखें तो यह बेहद कम है। इनता ही नहीं उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि 60 से 65 फीसदी घटनाएं गांवों में शौचालय न होने के कारण होती हैं। शौचालय की आड़ में आईजी साहब शायदा अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास कर रहे हों, जबकि इसी घटना में उनके ही महकमे के दो सिपाही भी शामिल थे।

मुख्य आरोपी समेत पांच को जेल
उसहैत थाना क्षेत्र के कटरा सआदतगंज में हुई इस दिल दहला देने वाली वारदात में स्थानीय पुलिस चौकी के दो सिपाहियों समेत सात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। मीडिया और विपक्षी दलों के हमले से घिरी अखिलेश सरकार ने आनन फानन मुख्य आरोपी पप्पू यादव, उसके भाई अवधेश यादव और एक सिपाही सर्वेश यादव को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। सरकार ने सिपाही सर्वेश यादव और छत्रपाल यादव को बर्खास्त कर दिया है। इसके बाद घटना के पांचवे दिन यानी 31 मई को पांचवा आरोपी भी पकड़ लिया गया। पुलिस ने दावा किया कि बदायूं शहर के लालपुर तिराहा से मुखबिर की सूचना पर पांचवां आरोपी सर्वेश यादव को गिरफ्तार किया गया। अभी घटना में शामिल दो अन्य लोगों की तलाश पुलिस कर रही है।

सीबीआई जांच की सिफारिश
बदायूं कांड में घिरी यूपी सरकार ने आखिरकार मामले की सीबीआई जांच का फैसला किया है। इस मामले में चारों तरफ से सीबीआई
जांच की मांग उठने के बाद अखिलेश सरकार पर दबाव बढ़ गया था। सीएम ने 31 मई को अपने अधिकारियों के साथ बैठक कर इस मामले की समीक्षा की। अफसरों ने बताया कि मामला बेहद गंभीर हो चुका है और पीड़ित परिवार के लोग भी सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। इस पर अखिलेश ने केंद्र को पत्र लिखने के बाद सीबीआई से जांच कराने का ऐलान कर दिया।

परीजनों ने सरकार का मुआवजा ठुकराया
अपनी मासूम बच्चियों को खो चुके परिवार को फौरी राहत के तौर पर अखिलेश सरकार ने पांच-पांच लाख मुआवजा देने का ऐलान किया था, जिसे घरवालों ने ठुकरा दिया। इस अमानवीय कृत्य और पुलिस की लापरवाही से पीड़िता के पिता गुस्से में हैं। परिजनों के साथ गांव वालों ने दोषियों को फांसी की सजा देने की मांग की है। एक बच्ची के पिता ने कहा चंद रुपए मेरी बच्ची को वापस नहीं ला सकते है। इस घटना ने मेरे परिवार को तोड़कर रख दिया है। न्याय देना है तो उन दुष्टों को सबके सामने पेड़ से लटकाकर फांसी दो।

सियासी दलों ने भी खूब सेंकी रोटियां
चुनाव के बाद भाजपा को छोड़ ‘कोमा’ में आए राजनीतिक दल भी हरकत में आ गए। इस दुखद घटना से अचानक उनके हाथ सपा सरकार के खिलाफ एक मुद्दा लग गया है। सूबे से पूरी तरह साफ हो चुकी बसपा की प्रमुख मायावती ने बदायूं कांड पर एक प्रेस कांफे्रंस कर राज्यपाल बीएल जोशी से अखिलेश सरकार को बर्खास्त करने की मांग कर डाली। खुद को दलितों का मसीहा बताने वाली माया ने कहा प्रदेश में चल रहा जंगलराज अब खत्म होना चाहिए। बसपा नेता 31 मई को उस गांव पहुंचे और पीड़ित परिवार से बातकर न्याय और आर्थिक मदद दिलाने की बात कही। वहीं, कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी कटरा सआदतगंज पहुंचे और पीड़ित पक्ष से मुलाकात की और घटना स्थल पर जानकारी ली। राहुल ने कहा कि महिलाओं की इज्जत का कोई मुआवजा नहीं हो सकता। पीड़ित पक्ष को केवल न्याय की जरूरत है। उधर, इस मामले में मीडिया को दिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बयान को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने घृणित करार दिया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर घृणित टिप्पणी की है। उन्होंने कहाकि लोगों की सुरक्षा सरकार और उसमें काम करने वाले अफसरों की है। केंद्रीय मंत्री और उमा भारती ने कहाकि मुंबई रेप कांड पर मुलायम सिंह यादव ने बयान दिया था कि लड़कों से गलती हो जाती है। इसके बाद उनके मंत्रियों ने भी इसी तरह के बयान दिए, जिससे उत्तर प्रदेश में बलात्कारियों एवं महिला विरोधी अपराधियों के हौसले बढ़ रहे हैं। अभी कई और नेता बदायूं की ओर रुख कर सकते हैं।

 संयुक्त राष्ट्र में भारत शर्मसार

भारत में यूपी के बदायूं में घटी दिल दहला देने वाली घटनी की गूंज संयुक्त राष्ट्र संघ में सुनाई दी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के प्रवक्ता स्टीफन डुआरिक ने कहाकि इस तरह की घटनाएं पर कुछ भी कहने के लिए शब्द नहीं हैं। इसे भयानक अपराध बताते हुए उन्होंने कहा कि कानून को तत्काल अपना काम करना चाहिए और हर कीमत पर महिलाओं की सुरक्षा होनी चाहिए। नि:संदेह इस वाकए ने दुनिया के सामने देश का शर्मसार किया।

जनता का भरोसा टूट रहा
सूबे की कमान जिस रोज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने थामी थी, उस दिन उन्होंने यूपी की जनता को भरासा दिलाया था की उनकी पहली प्राथमिकता प्रदेश में कानून-व्यवस्था को सुधारना है। लेकिन जैसे-जैसे सरकार के दिन बढ़ते गए प्रदेश में अपराध का ग्राफ भी चढ़ता गया। हत्या, लूट, डकैती, बलात्कार, छेड़छाड़, चेन स्नेचिंग ऐसे अपराधों की लंबी फेहरिस्त है। अपराधियों में पुलिस का इकबाल खत्म हो चुका है। सबसे खतरनाक तो यह है कि कई जघन्य वारदातों में पुलिस वाले भी शामिल होते हैं। इन्हें आखिर किसी का खौफ क्यों नहीं…। जनता इसका क्या मतलब निकाले? यह कि पुलिस प्रशान ने अपराधियों के आगे घुटने टेक दिए हैं या पूरा सिस्टम नाकार हो चुका है। बहू-बेटियां घर-बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं। सीएम साहब! आपके वादे से जनता का भरोसा टूट रहा है।
दरअसल अपराधों पर त्वरित कार्रवाई नहीं होने से असामाजिक तत्वों का दुस्साह बढ़ता है। सत्ता तक पहुंच होने से ताकत के मद में चूर अपराध प्रवृत्ति के लोग कानून को अपनी जूती समझ बैठते हैं। पीड़ित जब न्याय की गुहार लगता है तो उस पर सुलह-समझौते के लिए दबाव डाला जाता है और मामला रफा-दफा कर दिया जाता है। अक्सर तो पुलिस पीड़ित को ही डांट-डपट कर थाने से भगा देती है, उसकी रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की जाती। जबकि पीड़ित पक्ष को न्याय और अपराधियों को सजा दिलाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

 

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