‘बबुआ’ के बाद ‘बुआ’ पर शिकंजा, लखनऊ में कई करीबियों के ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी
लखनऊ : ईडी की टीम ने लखनऊ व नोएडा में स्मारक घोटाला में बड़ा छापा मारा है। प्रवर्तन निदेशालय ने तीन साल से लगभग ठंडे बस्ते में पड़ी स्मारक घोटाला जांच में अब तेजी दिखा दी है। लखनऊ में आज ईडी ने स्मारक घोटाले में कई जगह पर छापा मारा है। इनमें ईडी की टीम कई फर्म के साथ ही निर्माण निगम इंजीनियर्स के ठिकानों पर छानबीन कर रही है।लखनऊ में आज ईडी की टीमों ने स्मारक घोटाला के मामले में गोमती नगर के साथ हजरतगंज में छापा मारा है। यहां पर कई फर्म के दफ्तर के इंजीनियर्स के आवास हैं। बसपा मुखिया मायावती के कार्यकाल के दौरान लखनऊ व नोएडा में स्मारक का निर्माण किया गया था। इसमें करीब 1400 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया था। अब इसकी जांच अंतिम दौर में है। ईडी ने उत्तर प्रदेश की सभी जांच एजेंसियों से उन सभी घोटालों की सूची मांगी है, जिनमें पांच करोड़ से ज्यादा के घोटाले से जुड़े हुए हैं। इस संबंध में ईडी की तरफ से सभी एजेंसियों को पत्र लिखे गए हैं। ईडी ने सीबी सीआईडी, ईओडब्ल्यू, एसआईटी, विजिलेंस और ऐंटी करप्शन ऑर्गेनाइजेशन को पत्र लिखकर जानकारी मांगी है कि उनके यहां पांच करोड़ से ज्यादा के घोटाले के कौन-से मामले हैं। इन सभी मामलों की क्या स्थिति है, कितने में चार्जशीट हो चुकी है और कौन से मामले ट्रायल पर हैं। स्मारक घोटाले में विजिलेंस के साथ ही ईडी ने भी केस दर्ज कर रखा है। लंबे समय से विजिलेंस की जांच आगे नहीं बढ़ रही है। इस मामले में अभी तक विजिलेंस की तरफ से आरोप पत्र भी नहीं दाखिल किए गए हैं। कोई छापेमारी और गिरफ्तारी भी नहीं हुई है। इसके चलते ईडी की जांच भी आगे नहीं बढ़ पा रही है। एजेंसियों को भेजे गए इन पत्रों के जरिए ईडी स्मारक घोटाले जैसे मामलों का ब्यौरा जुटाएगी। बसपा सरकार में 1400 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाले की जांच सतर्कता अधिष्ठान (विजिलेंस) जल्द पूरी करने जा रहा है। पांच वर्ष बाद इस मामले की जांच में बसपा सरकार के दो कद्दावर मंत्रियों नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत तीन दर्जन से ज्यादा इंजीनियरों और अन्य विभागों के अफसरों का फंसना तय माना जा रहा है। तमाम दुश्वारियों के बाद विजिलेंस इस मामले में जल्द अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपने की तैयारी में है हालांकि इससे पहले वह इस पर विधिक राय भी लेगी ताकि कोई भी आरोपी कानून के शिकंजे से बचने में कामयाब न हो सके। सपा सरकार ने लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट मिलने के बाद विजिलेंस को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा था। विजिलेंस ने जांच के बाद पांच साल पहले राजधानी के गोमतीनगर थाने में करीब सौ आरोपितों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी थी। मुकदमा दर्ज होने के तीन साल बाद तक इस मामले की जांच ठंडे बस्ते में पड़ी रही। यहां तक कि आरोपी पूर्व मंत्रियों के बयान तक दर्ज नहीं किए गये थे।
सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद विजिलेंस में स्मारक घोटाले की फाइलों पर से धूल हटानी शुरू की गयी। इसकी गहन जांच को सात इंस्पेक्टरों की एक एसआईटी टीम का गठन भी किया गया जो जल्द ही इस मामले में अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचकर अपनी रिपोर्ट शासन को सौंपने की तैयारी में है। शासन में अपनी रिपोर्ट पेश कर विजिलेंस सभी आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति मांगेगी। लोकसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही सूबे में बढ़ती सियासी सरगर्मियों के बीच यदि यह रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है तो बसपा की परेशानियों में इजाफा होना तय है क्योंकि इसमें उसके मंत्रियों के साथ कई विधायकों की भूमिका भी है। विजिलेंस ने डेढ़ साल पहले स्मारक घोटाले के दो आरोपों की जांच पूरी कर शासन से आरोपितों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी थी।
निर्माण निगम के तत्कालीन एमडी समेत तमाम इंजीनियर्स, खनन महकमे के निदेशक व संयुक्त निदेशक के खिलाफ गृह विभाग में अभियोजन स्वीकृति मांगे जाने का यह मामला लंबित है। विजिलेंस ने भूतत्व एवं खनिकर्म विभाग के तत्कालीन निदेशक रामबोध मौर्या, संयुक्त निदेशक सुहेल अहमद फारुकी, निर्माण निगम के सीपी सिंह, राकेश चंद्रा, केआर सिंह, राजीव गर्ग, एके सक्सेना, एसके त्यागी, कृष्ण कुमार, एस. कुमार, पीके शर्मा, एसएस तरकर, बीके सिंह, एके गौतम, बीडी त्रिपाठी, एके सक्सेना, एसपी गुप्ता, एसके चौबे, हीरालाल, एसके शुक्ला, एसएस अहमद, राजीव शर्मा, एए रिजवी, पीके जैन, राजेश चौधरी, एसके अग्रवाल, आरके सिंह, केके कुंद्रा, कामेश्वर शर्मा, राजीव गर्ग, मुकेश कुमार, एसपी सिंह, मुरली मनोहर सक्सेना, एसके वर्मा के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति मांगी थी।