बलूचिस्तान पर पाक हुआ बेनकाब, ह्यूमन राइट्स वाच ने दिखाया आईना
दिल्ली। पाकिस्तान एक बार फिर से दुनिया के सामने बेनकाब हो गया। आतंकियों के आका द्वारा दूसरे देशों पर यह आरोप लगाए जाते रहे हैं कि यहां ह्यूमन राइट का उलंघ्न हो रहा है। पाकिस्तानी हुक्मरान कश्मीर में पुलिस-सेना अत्याचार को लेकर शोर मचाते रहते हैं लेकिन बलूचिस्तान, सिंध और पंजाब में पाकिस्तानी पुलिस जो कुछ कर रही है, ह्यूमन राइट्स वाच की ताजा रिपोर्ट में उन्हें उजागर किया गया है। इसमें साफ-साफ कहा गया है कि पाकिस्तानी पुलिस सरकार की सबसे अधिक अत्याचार ढाने वाली, भ्रष्ट और गैरजिम्मेदार संस्था है।
‘एक कुटिल व्यवस्था।’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट यह करीब 120 पेज की है। यह वरिष्ठ पुलिस अफसरों और बलूचिस्तान, सिंध और पंजाब प्रांतों में पुलिस दुर्व्यवहार के पीडि़तों और गवाहों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है। इसमें सिर्फ 2015 में 2000 से अधिक झूठी पुलिस मुठभेड़ों के विवरण भी हैं। रिपोर्ट बताती है कि पुलिस हिरासत में लिए गए लोगों के साथ नियमित तौर पर किस तरह जुल्म ढाया जाता है।
इसमें बताया गया है कि सुरक्षा बलों ने पिछले साल भी संदिग्ध बलूच आतंकवादियों और विपक्षी कार्यकर्ताओं की हत्या करने और उन्हें गायब करने की कार्रवाई जारी रखी। इसमें जनवरी में खुजदार जिले में 13 बलूचियों के सड़े-गले शव मिलने की घटना का खास तौर पर उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट में कुछ घटनाओं का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि लोगों की आवाज किस तरह दबाई जा रही है। इसके लिए जून में बलूच पत्रकार जफरुल्लाह जाटक की क्वेटा में हत्या, बलूच में ‘गायब लोगों’ के बारे में समारोह के आयोजन के बाद अप्रैल में प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता सबीन महमूद की हत्या और उसी महीने पत्रकारिता के प्रोफेसर सैयद वहीदुररहमान की कराची में हत्या प्रमुख है।
खैबर पख्तूनख्वाह में हुए संसदीय उपचुनाव में करीब 50 हजार महिलाएं इसलिए वोट नहीं दे पाई क्योंकि मस्जिदों से लाउडस्पीकरों के जरिये उन्हें वोटिंग से दूर रहने की धमकी दी गई थी। जिन महिलाओं ने मतदान की कोशिश भी की, उन्हें सशस्त्र पुलिस बल के जवानों ने ऐसा नहीं करने दिया।
सेना गैरसरकारी संगठनों और मीडिया को विवश कर रही है कि वे असंतोष वाले और आलोचनात्मक स्वर न उठाएं। अर्धसैनिक बलों को कराची शहर की कानून-व्यवस्था संभालने का जिम्मा लगभग पूरी तरह दे दिया गया है और इसमें नागरिक संगठनों की कोई भूमिका नहीं है। यहां बिना मुकदमा चलाए ही हत्या कर दिए जाने, लोगों के अचानक गायब हो जाने या लोगों को पीडि़त करने की घटनाएं आम हैं। हाल यह है कि लगातार हिंसा के बाद पाकिस्तान में शरण लेने वाले अफगानियों को या तो अफगानिस्तान वापस जाना पड़ रहा है या उन्हें किसी दूसरे देश में शरण लेनी पड़ रही है।
रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि पुलिस अफसर झूठी पुलिस मुठभेड़ों की बात खुलेआम स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि दबंग राजनीतिज्ञों के दबाव में उन्हें इन्हें अंजाम देना पड़ता है। कई पुलिस अफसरों ने यह भी कहा कि पुलिस मारपीट वगैरह पर बराबर इसलिए उतारू हो जाती है क्योंकि उसे पेशेवर जांच और फारेंसिक विश्लेषण का ज्ञान ही नहीं है।