बसपा उम्मीदवारों के लिए वोट नहीं मांगेंगे मुलायम?
लखनऊ : लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक गहमागहमी भी बढ़ने लगी है। बीते दिनों समाजवादी पार्टी और बीएसपी के गठबंधन के बाद तमाम तरह की राजनीतिक चर्चाएं शुरू हो गई हैं। हमारे नियमित कॉलम ‘विशुद्ध राजनीति’ में आप जान पाएंगे कि इन चर्चाओं के केंद्र में क्या है। मुस्लिम परस्त या हिंदू विरोधी होने जैसी धारणाओं को खत्म करने के लिए सिर्फ राहुल गांधी को ही मंदिर-मंदिर जाने या जनेऊ दिखाने जैसी कोशिशें नहीं करनी पड़ रही हैं। इन तोहमतों से बचने की कोशिशें एसपी-बीएसपी गठबंधन में भी दिख रही हैं। 25 साल पहले कांशीराम और मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जब पहली बार इन दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ था, तब नारा दिया गया था- मिले मुलायम-कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम। दरअसल, यह वह दौर था जब यूपी में मंदिर आंदोलन शबाब पर था और अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था। खैर बीते शनिवार को जब अखिलेश यादव और मायावती के नेतृत्व में एसपी-बीएसपी का गठबंधन हुआ तो नारा गया- ‘आवाज दो- हम एक हैं। बीएसपी के एक सीनियर लीडर ने कहा भी कि हम ऐसे किसी भी नारे या बयान से इस वक्त बचना चाहेंगे जो बीजेपी की ख्वाहिश पूरी करने में मददगार बने और जब इस गठबंधन के बाद से बीजेपी के नेतागण समाजवादी पार्टी को नमाजवादी पार्टी कह रहे हैं और बीएसपी पर ‘हिंदू एकता’ तोड़ने का इलजाम लगा रहे हैं, तो ऐसे में एसपी-बीएसपी के लिए फूंक-फूंक कर कदम उठाना जरूरी भी हो गया है। गठबंधन किसी भी सूरत में अपने को हिंदू विरोधी साबित नहीं होने देना चाहता है। अखिलेश-मायावती के गठबंधन को भले ही एक नए युग का सूत्रपात कहा जा रहा हो, लेकिन मुलायम सिंह यादव को लेकर मायावती की तल्खी बरकरार है। अपने वोटबैंक, खास तौर पर यादव समाज को संदेश देने के लिए कहा जा रहा है कि ‘इस गठबंधन को मुलायम सिंह यादव की भी सहमति हासिल है’। अखिलेश की तरफ से मायावती-मुलायम की मुलाकात कराने की कोशिश हुई, लेकिन बात नहीं बनी। मायावती शुरुआत में ही यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि वह गेस्टहाउस कांड नहीं भूली हैं, लेकिन जिस वक्त का यह घटनाक्रम है उस वक्त अखिलेश यादव ‘सीन’ में कहीं भी नहीं थे।
मायावती-मुलायम की मुलाकात में नाकामयाबी के बाद राजनीतिक गलियारों में एक और सवाल दिलचस्पी का सबब बना है। वह यह है कि क्या चुनाव के दरम्यान मायावती मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगने उनकी सीट पर जाएंगी या मुलायम सिंह यादव बीएसपी उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने निकलेंगे। दोनों पार्टियों के जानकार बताते हैं कि फिलहाल इस तरह की कोई संभावना नहीं बनती दिख रही। उधर, शिवपाल यादव की पार्टी में भी इस बात की चर्चा हुई कि क्या मुलायम सिंह यादव को अपने उम्मीदवारों के प्रचार के लिए रैलियां करने को राजी किया जाए/ लेकिन यह जोखिम देखते हुए कि कहीं ‘नेता जी’ हमारी रैली में समाजवादी पार्टी के लिए वोट न मांगने लग जाएं, इस प्लान को स्थगित कर दिया गया। हरियाणा की एक विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में सुरजेवाला की उम्मीदवारी चौंकाने वाली थी, क्योंकि वह पहले से ही विधायक हैं। यह उपचुनाव अगर वह जीत जाते हैं तो उन्हें अपनी मौजूदा सीट से इस्तीफा देना होगा, जिसके लिए फिर से उपचुनाव की जरूरत पड़ेगी। पॉलिटिकल सर्किल में सवाल उछल रहा है कि आखिर सुरजेवाला की उम्मीदवारी की वजह क्या हो सकती है। जनरल क्लास के सभी लोगों के लिए आर्थिक आधार पर रिजर्वेशन देने के फैसले को भुनाया कैसे जाए, इस पर बीजेपी के अंदर एक राय नहीं हो हो पा रही है। नए रिजर्वेशन सिस्टम में मुस्लिम सहित सभी धर्म के लोगों को बराबर का लाभ मिलना है, इसलिए एक धड़े की राय है कि सरकार बनने के बाद ‘सबका साथ-सबका विकास’ का जो नारा मोदी ने दिया था, उस नारे को आगे बढ़ाने का यह सही मौका है। दूसरे धर्म के लोगों में भी विश्वास बढ़ेगा जिससे वोट बैंक के विस्तार की संभावना रहेगी। लेकिन दूसरे धड़े को इसमें नुकसान दिख रहा है। उसका नजरिया यह है कि इस प्रचार से बचा जाना चाहिए कि रिजर्वेशन का लाभ मुसलमानों को भी मिलेगा, क्योंकि यह कोर वोट बैंक को पसंद न आने वाली बात होगी। अगर रिजर्वेशन के हालिया फैसले से पार्टी को फायदा लेना है तो इसे ‘सवर्ण आरक्षण’ के रूप में ही प्रचारित किया जाए। इससे पार्टी के पक्ष में सवर्णों की गोलबंदी की ज्यादा संभावना रहेगी। अब जबकि बैकवर्ड और एससी की नुमाइंदगी करने वाली ज्यादातर रीजनल पार्टियां बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो रही हैं, ऐसे में सवर्णों का पोलराइजेशन ज्यादा मायने रखेगा। ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के जरिए भले ही एक खास वर्ग को उम्मीद रही हो कि इससे कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, लेकिन कांग्रेस अब इसके जरिए अपना फायदा तलाशने में जुट गई है। पार्टी इस फिल्म के जरिए मनमोहन सिंह का मजाक उड़ाने, उन्हें बेइज्जत करने की कोशिश वाली बात स्थापित करना चाहती है। इसी के मद्देनजर पार्टी 2019 के चुनाव में उनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की रणनीति पर काम करती दिख रही है। मनमोहन सिंह की पब्लिक मीटिंग्स अब ज्यादा कराई जाएंगी। असम से उनका राज्यसभा का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है।