बस एक सवाल….क्यों देखा आपने लड़की के कपड़े खींचने वाला वीडियो?

स्कूल-कॉलेज-आॅफिस के दोस्तों का हो सकता है. उसपर किसी ने ‘शेम’ लिख कर पोस्ट किया होगा. गुस्सा और दुख भी जाहिर किया होगा. पर अगर वो किसी दोस्त ने भेजा हो या सिर्फ़ मर्दों या सिर्फ़ औरतों के ग्रुप से आया हो तो बस यूंही पोस्ट कर दिया होगा.
जैसे पॉर्न की छोटी-छोटी क्लिप पोस्ट की जाती हैं. कोई एक मिनट की, कोई दो मिनट की, कभी तीस सेकेंड की भी. बिहार के सात लड़कों का उस लड़की के कपड़े जबरदस्ती फाड़ने वाला वीडियो ऐसे ही शेयर हुआ. जैसे पॉर्न वीडियो होते हैं.
इंटरनेट सस्ता होने का असर इंटरनेट के जरिए भेजे जाने वाले वीडियो की जानकारी जुटाने और उसका विश्लेषण करनेवाली संस्था, ‘विडूली’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक – साल 2016 में भारत में मोबाइल डाटा के दाम तेजी से गिरने के बाद पॉर्न वीडियो देखने और शेयर करने की दर में 75 फीसदी उछाल आया है.
विडूली के मुताबिक करीब 80 फीसदी वीडियो छोटे होते हैं और इन्हें देखनेवाले 60 फीसदी लोग छोटे शहरों (टीयर-2, टीयर-3 शहर) में रहते हैं. स्मार्टफोन सस्ता हो गया है और 3जी और 4जी के दाम भी गिर गए हैं.
बिहार के जहानाबाद में उजाड़ से लगनेवाले उस खेत में जो लड़के जमा हुए उनके पास स्मार्टफोन भी था और इंटरनेट पर वीडियो डालने के लिए मोबाइल डाटा भी. लेकिन उनका भेजा वीडियो देखने और शेयर करने की ताकत सिर्फ़ आपके हमारे पास थी.
आखिर कैसे वायरल हुआ वो वीडियो? क्यों देखा और शेयर किया गया वो वीडियो? उसमें क्या मजा है? लड़की के चीखने-चिल्लाने और लड़कों के हंसते हुए कपड़े फाड़ने के वो कुछ मिनट कौन सा रोमांच पैदा करते हैं? हिलते हुए खराब क्वालिटी के वीडियो में आंखें गड़ाकर नजर क्या ढूंढती है?
क्या शरीर का कोई अंग देखने का लालच है? या कौतूहल है कि किस हद तक जा पाएंगे लड़के? इस वीडियो को ‘वायलेंट’ यानी हिंसक पॉर्न कहना शायद गलत नहीं होगा. क्या ये वीडियो हिंसक पॉर्न है? वैसे तो पॉर्न वीडियो में अक़्सर औरत के खिलाफ हिंसा को ऐसे दिखाया जाता है जिससे ये लगे कि वो इसे पसंद कर रही है.
मर्द उसे मारे, जबरदस्ती चुंबन ले, उस पर थूके, बाल खींचे वगैरह तो भी वो खुशी खुशी उसके साथ ‘सेक्स’ करती है. कई लोगों के मुताबिक इसमें कुछ गलत नहीं और कई औरतें सचमुच ऐसे बर्ताव को ‘सेक्सी’ मानती हैं.
लेकिन हिंसक पॉर्न अलग होता है. इसमें अगर-मगर की गुंजाइश नहीं. जहानाबाद का मामला हिंसक पॉर्न क्यों नहीं? पॉर्न के नाम पर ऐसे वीडियो बनाए भी जा रहे हैं और देखे भी जा रहे हैं. सर्च इंजन गूगल पर ‘रेप पॉर्न’ शब्द डालें तो करोड़ों रास्ते मिल जाते हैं.
बाकि पॉर्न वीडियो की ही तरह रेप पॉर्न के वीडियो अभिनेताओं के साथ फिल्म की तरह बनाए जाते हैं. पर असल जिÞंदगी में होने वाली यौन हिंसा के वीडियो बनाकर भी शेयर किए जा रहे हैं. ठीक उसी तरह मोबाइल पर. जैसे बिहार के जहानाबाद का वीडियो.
इस वीडियो पर पुलिस हरकत में आई और चार लोग गिरफ़्तार हुए पर ज्यादातर वीडियो सिर्फ़ रोमांच पैदा कर रहे हैं. मोबाइल में सहजता से एक वॉट्सऐप ग्रुप से दूसरे में जगह बना रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय पॉर्न वेबसाइट ‘पॉर्नहब’ के मुताबिक पॉर्न देखने के लिए कम्प्यूटर के इस्तेमाल की जगह अब लोग मोबाइल को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
वेबसाइट की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2013 में 45 फीसदी लोग पॉर्नहब को फोन से देख रहे थे और 2017 में ये आंकड़ा बढ़कर 67 फीसदी हो गया. भारत के लिए ये आंकड़ा 87 फीसदी है. रिपोर्ट के मुताबिक उनकी वेबसाइट पर किसी एक देश से आनेवालों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी, 121 फीसदी, भारत से हुई है जहां मोबाइल डाटा सस्ता हो गया है.
पॉर्न खूबसूरत हो सकता है. किसी के लिए यौन संबंध के बारे में समझ बनाने का तरीका हो सकता है. किसी के लिए अकेलेपन का साथी हो सकता है. पर अगर हिंसा के वीडियो, रेप पॉर्न की तरह बांटे और देखें जाए तो उससे क्या होता है?
दुनिया-भर में हुए कई शोध बताते हैं कि बार-बार हिंसक पोर्न देखनेवालों में बलात्कार, यौन हिंसा और ‘सेडोमैसोकिजम’ की चाहत बढ़ जाती है.