महिलाओं के सेनेटरी पैड पर 12 फीसदी जीएसटी खत्म कर वाहवाही लूटने वाली केंद्र सरकार की नाक के नीचे बहुराष्ट्रीय कंपनियां पैड के दाम कम नहीं कर रही हैं। सोमवार को जीएसटी खत्म हुए एक माह हो गया है, मगर अधिकांश राज्यों में पैड के दाम आज भी पहले जैसे हैं। एमआरपी में अभी तक कोई बदलाव नहीं हो सका है। केमिस्ट एसोसिएशन और अर्थशास्त्री मानते हैं कि जीएसटी खत्म होने से केवल विदेशी कंपनियों को फ़ायदा हुआ है। उपभोक्ता महिला पहले की तरह आज भी महंगे पैड खरीद रही हैं। देश के स्वयं सहायता समूह जिनकी आय बीस लाख रुपये तक है, वे खुद को नुकसान में पा रहे हैं।
वजह, सरकार इन्हें कोई सब्सिडी नहीं देती और अब उपर से टैक्स भी खत्म। सेनेटरी पैड पर जीएसटी खत्म कराने के लिए एक साल से जद्दोजहद चल रही थी। जरमीना इसरार खान और अमित जॉर्ज सहित कई लोगों ने पैड को जीएसटी से बाहर रखने के लिए लड़ाई लड़ी है। इंहोंने न केवल सोसायटी के जरिए, बल्कि अदालत तक अपनी बात पहुंचाई। अदालत की टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार भी दबाव में आ गई और सेनेटरी पैड को जीएसटी मुक्त कर दिया।
इसके बाद यह माना जा रहा था कि अब पहले की तुलना में ज्यादा महिलायें हाईजेनिक पैड का इस्तेमाल करेंगी। हालाकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। अभी तक रेट पहले जैसे हैं। केमिस्टों का कहना है कि कुछ जगहों पर रेट पचास पैसे से लेकर एक रुपया तो कहीं दो-तीन रुपये कम हुआ है। यह भी हरियाणा के दो-तीन जिले, जैसे पंचकुला, चरखीदादरी और अंबाला में, वो भी चुनींदा केमिस्ट शॉप पर ही मामूली तौर पर दाम कम हुए हैं।
क्या कहते हैं केमिस्ट
दिल्ली में फर्स्ट केयर फार्मेसी का कहना है कि अभी पैड के एमआरपी में कोई बदलाव नहीं हुआ है। जीएसटी खत्म होने से पहले जो रेट थे, आज भी वही हैं। हो सकता है कि आगे आने वाले माल पर कम हुए दाम अंकित हों। आगरा के डॉक्टर जीसी सक्सेना, अध्यक्ष इंडियन काउंसिल ऑफ केमिस्ट, का कहना है कि सरकार को सख्ती कर पैड बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों से रेट कम कराने चाहियें। कम से कम महिलाओं को जीएसटी खत्म होने का असर तो दिखे। हरियाणा केमिस्ट एसोसिएशन के राज्य प्रधान प्रकाश का कहना है कि रेट में थोड़ा बहुत असर दिख रहा है।
पंचकुला के सेक्टर-दस में केमिस्ट बीबी सिंघल ने बताया कि जीएसटी हटने से पैड के रेट दो-चार फ़ीसदी ही कम हुए हैं। चूंकि एमआरपी पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता, इसलिए कंपनियों ने जीएसटी खत्म करने का तोड़ भी निकाल लिया है। उपभोक्ताओं तक इसका लाभ न पहुंचे, इसके लिए कंपनियां अपनी कॉस्ट बढ़ा रही हैं। कुछ ने दूसरे तरीके से रेटों में इजाफ़ा कर दिया है। इसी तरह उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिमबंगाल, मध्यप्रदेश एवं दूसरे राज्यों में भी कमोबेश यही स्थिति है। अगर कोई ग्राहक इस बाबत पूछता है तो जवाब मिलता है कि अभी नया स्टॉक नहीं आया है। हम कुछ नहीं कर सकते।
देशी कंपनियों को दोहरा नुकसान
भिवानी के राजकीय कालेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रणधीर सिंह का कहना है कि जीएसटी खत्म होने से अपने देश में पैड बनाने वाली कंपनी या स्वयं सहायता समूह, जिनकी सालाना आय बीस लाख रुपये तक होती है, को नुकसान हुआ है। वजह, उन्हें एक तो सरकार सब्सिढी नहीं देती और दूसरा टैक्स भी खत्म कर दिया गया है।
ऐसे में ये समूह इनपुट टैक्स क्रेडिट के जरिए जो थोड़ा बहुत बचा लेते थे, अब वह भी नहीं रहा। दूसरी ओर विदेशी कम्पनियाँ अब मजे में हैं। पहले उन्हें जीएसटी और दूसरी ड्यूटी मिलाकर 22 फीसदी तक टैक्स देना पड़ता था। अब वे कम्पनियां दस प्रतिशत टेक्स दे रही हैं। देशी कंपनी को प्रतिस्पर्धा में रहने के लिए मजबूरन पैड की कॉस्ट बढ़ानी पड़ रही है। खासतौर से चीनी कंपनियां इसमें सबसे ज्यादा फायदे में हैं।
हम इस बाबत बात करेंगे, जागरूकता अभियान भी शुरू कर रहे हैं
जरमीना इसरार खान का कहना है कि इस बाबत हम अध्ययन कर रहे हैं कि कंमनियां किस रेट में पैड बेच रही हैं। इसके बाद सरकार तक बात पहुंचाई जाएगी। जीएसटी खत्म होने से महिलाओं द्वारा पैड का इस्तेमाल करने की संख्या बढ़ेगी। महिलाओं को इस बाबत जागरूक करने के लिए जल्द ही देशव्यापी अभियान शुरू करेंगे। इसकी रूपरेखा तैयार कर रहे हैं।
देश में 62 फीसदी युवतियां अभी तक कपड़े का इस्तेमाल करती हैं
एनएफएचएस-4 सर्वे रिपोर्ट कहती है कि देश में अभी तक 62 प्रतिशत युवतियां पैड का इस्तेमाल नहीं करतीं। इनमें 15-24 आयु वर्ग की युवतियां शामिल हैं। बिहार में 82 प्रतिशत महिलाएं आज भी पैड की जगह दूसरे कपड़े का इस्तेमाल कर रही हैं। यूपी में 81 प्रतिशत, जबकि छत्तीसगढ़ में भी 81 प्रतिशत महिलायें सेनेटरी पैड नहीं लेतीं। देश में 42 प्रतिशत महिलायें ही पैड खरीद रही हैं।
इसमें 16 प्रतिशज ऐसी महिलाएं हैं जो लोकल स्तर पर तैयार पैड इस्तेमाल में लाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पैड का इस्तेमान 48 प्रतिशत महिलाओं द्वारा तो शहरों में 78 प्रतिशत महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं। मिजोरम में 93 फ़ीसदी महिलायें हाईजेनिक पैड लेती हैं, जबकि तमिलनाडू में 91 फीसदी और केरल में 90 प्रतिशत पैड का इस्तेमाल होता है। गोवा में यह प्रतिशत 89 है, महाराष्ट्र में 50, कर्नाटक में 56 और आंध्रप्रदेश में 43 प्रतिशत महिलाएं सेनेटरी पैड खरीदती हैं।