बाबरा भूत ने एक ही रात में बनाया था यह मंदिर!
भूत पिशाचों के बारे में आपने बहुत कुछ सुना होगा, लेकिन यह शायद ही सुना हो की किसी भूत ने मंदिर का निर्माण कराया हो। लेकिन हम यहां बता रहे एक एेसे मंदिर के बारे में जिसे भूत ने एक रात में ही बनाया था। यह मंदिर है काठियावाड़, गुजरात का नवलखा मंदिर। यह मंदिर पौराणिक शिल्पकला का एक उत्कृष्ट नमूना है।
देखने में यह मंदिर ढाई सौ साल से भी ज्यादा प्राचीन बताया जाता है। इसके बारे में मान्यता है कि बाबरा नाम के एक भूत ने इस मंदिर का निर्माण किया था, वो भी सिर्फ एक रात में। नवलखा मन्दिर सोमनाथ के ज्योतिलिंग के समान ही बहुत ऊंचा है। इस मंदिर को देखकर लगता है कि इसका जीर्णोद्धार भी किया गया था। प्रतीत होता है कि इस मंदिर को मुस्लिमों ने ध्वंस कर दिया था और बाद में काठी जाति के क्षत्रियों ने इसका पुनरोद्धार करवाया।
नवलखा मंदिर के विषय में मान्यता है कि मंदिर को बाबरा भूत ने एक ही रात में बनाया था। मंदिर के चारों ओर नग्न-अद्र्धनग्न नवलाख मूर्तियों के शिल्प हैं। सम्पूर्ण मंदिर 16 कोने वाली नींव के आधार पर निर्मित किया गया है। यह शिव मंदिर सोलंकी काल में बने प्रमुख महाकाय मंदिर में से एक है। नवलखा मंदिर का जीर्णोद्धार होने से पुराना-मूल भाग आज भी मजबूती के साथ खड़ा है, जबकि नए हिस्से में परिसर छोटा है और आस-पास ऊंचे मकान होने के कारण तस्वीर लेना कठिन है।
धूमली में जो अवशेष प्राप्त हुए हैं, वे 12वीं-13वीं शताब्दी के माने जाते हैं। जेठवा राज्य की पहली राजधानी धूमली पर्वतमाला के बीच में घाटी में स्थित थी। उसके कई खंडहर आज भी मौजूद हैं। जेठवा राज्य के इन मंदिरों का निर्माण 10वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। गुजरात का यह मन्दिर द्वादश ज्योतिलिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर की तरह ही काफी ऊंचा है। मंदिर की छत और गुम्बज के भीतरी हिस्से में जो सुशोभन और नक्क़ाशी दिखाई देती है, वह अलग-अलग कालखंड की मालूम होती है।
मंदिर के अंदर बड़ा सा सभा-मंडप, गर्भगृह और प्रदक्षिणा पथ अन्य मंदिर की भांति ही है। इस मंदिर में प्रवेश के लिए तीन दिशाओं में प्रवेश चौकियां हैं। इसकी तीन खिड़कियों से हवा और प्रकाश के कारण पर्यटकों के लिए इस मंदिर को देखना रोचक अनुभव रहता है। नवलखा मंदिर की छत का गुम्बज अष्टकोण आकार का है। उसके ऊपर विविध पक्षिओं की आकृति पत्थरों पर उकेरी गई है। इसे पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। सभा मंडप की दोनों मंजिलों के स्तम्भों के उपरी हिस्से को वैविध्यपूर्ण आकार दिया गया है।
उसमें ख़ासतौर से मानव मुखाकृति, हाथी की मुखाकृति, मत्स्य युगल, वानर, और कामातुर नारी के शिल्प कलात्मक दृष्टि से महत्तवपूर्ण हैं। नवलखा मन्दिर के पीछे पीठ क्षेत्र में दो हाथियों का शिल्प है, जिसमें दोनों को अपनी सूंढ के द्वारा आपस में लड़ाई और मस्ती करते हुए चित्रित किया गया है।
मंदिर के बाहरी क्षेत्र में उत्तर दिशा में लक्ष्मी-नारायण, दक्षिण दिशा में ब्रह्मा-सावित्री और पश्चिम में शिव-पार्वती के शिल्प दिखाई देते हैं। मंदिर के स्थापत्य में भरपूर विविधता दिखाई देती है। धूमली में जेठवा साम्राज्य की 10वीं से 12वीं, 13वीं शताब्दियों के बीच की समृद्धि को मंदिर की शिल्पकारी के द्वारा समझा जा सकता है।