लखनऊ। यूपी की सत्ता हाथ में आने के बाद जहां योगी आदित्यनाथ सीएम बनाये गए हैं वहीँ भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया है। अब सरकार बनने के बाद अब बीजेपी संगठन में बदलाव किये जाने के आसार नजर आ रहें हैं। अब दिग्गजों के मंत्री बनने के बाद बीजेपी के कई राष्ट्रीय पदों को भरने के लिए जोड़ तोड़ शुरू कर दी गयी है।
अब केशव प्रसाद मौर्या के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की कमान किसी और को सौंपी जा सकती है। भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले संगठन का ढांचा दुरुस्त करने की प्रक्रिया शुरू की तो पिछड़ी जाति को प्राथमिकता दी गयी।
वहीँ संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने पिछड़ों को आगे करने के लिए प्लान तैयार कर लिया है। इस समय संगठन में पिछड़ों की 67 फीसद की भागीदारी है। संभव है कि केशव के बाद भी किसी पिछड़े को ही कमान सौंपी जाए। पर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबका साथ-सबका विकास नारे को चरितार्थ करते हुए भाजपा ब्राह्मण को भी संगठन की कमान सौंप सकती है।
वहीँ दलित को भी मौका मिल सकता है। चुनाव में दलितों ने भी भाजपा को भरपूर समर्थन दिया। बताया जा रहा है कि संगठन में उत्तर प्रदेश को प्राथमिकता मिल सकती है। अगर दलित नेतृत्व की तलाश हुई तो आगरा के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रामशंकर कठेरिया, बुलंदशहर के सांसद डॉ. भोला सिंह, कौशांबी के सांसद विनोद सोनकर, पूर्व विधायक मुंशी लाल गौतम या फिर पूर्वांचल से प्रदेश महामंत्री विद्यासागर सोनकर को मौका मिल सकता है।
ब्राह्मण चेहरे में प्रदेश महामंत्री विजय बहादुर पाठक जबकि पिछड़े चेहरे में अशोक कटारिया की सबसे अहम दावेदारी है। अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम, बस्ती के सांसद और भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हरीश द्विवेदी समेत कई महत्वपूर्ण नाम हैं। यूं तो और भी कई नाम हैं लेकिन अध्यक्ष के लिए प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पसंद भी जरूरी है।
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बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. दिनेश शर्मा की जगह पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी और डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी का नाम आगे आ रहा है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की टीम में इन्हें शामिल किया जा सकता है। बीजेपी संगठन में राष्ट्रीय मंत्री रहे डॉ. महेन्द्र सिंह की जगह भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय पाल तोमर को मौका मिल सकता है। इसके अलावा कई अन्य नाम हैं जिनपर विचार विमर्श किया जा रहा है।