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बिहार में भी है एक ‘पाकिस्तान’, जिससे अपना होकर भी होता है सौतेला व्यवहार

pakistan-in-biharनई दिल्ली (4 अक्टूबर): ‘पाकिस्तान’ और ‘बिहार चुनाव’, क्या इन दोनों को आपस में जोड़कर देखा जा सकता है? इन दोनों का आपस में क्या लेना देना है? आप सोंच रहे होंगे आखिर कैसी अजीब सी बात है- पाकिस्तान का बिहार चुनाव से कोई संबंध कैसे हो सकता है? लेकिन आपको बता दें, बिहार में भी एक ‘पाकिस्तान’ है। बिहार के पूर्निया जिले के श्रीनगर ब्लॉक में पाकिस्तान नाम का एक गांव है। इस गांव का यह नाम रखने के पीछे किसी व्यक्ति की अलग सोंच ही रही होगी। शायद वह लोगों की याद में इतिहास के एक हिस्से को हमेशा जिंदा रख जाना चाहता था। इसलिए यह नाम रखा।

‘फर्स्टपोस्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के पाकिस्तान गांव की जनसंख्या केवल 300 है। इस गांव में एक भी मस्जिद नहीं है। इसके अलावा एक भी मुस्लिम व्यक्ति यहां नहीं रहता। यहां के रहने वाले निवासी आदिवासी समूह संथल से ताल्लुक रखते हैं। यह गांव पहले बंगाल के इस्लामपुर जिले में आता था। इस गांव का नाम ‘पाकिस्तान’ उन मुस्लिम निवासियों की याद में रखा गया। जो 1947 में पलायन कर पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) रहने गए थे। गांव छोड़ते वक्त ये मुस्लिम लोग अपनी सम्पत्ति अपने पास पड़ोस के इलाके के हिंदुओं को सौंप गए थे।

आधी सदी से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी इस गांव की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है। जबकि राज्य में कई राजनैतिक परिवर्तन हो चुके हैं। लेकिन इस गांव के रहने वाले गरीब ही बने रहे। गांव की साक्षरता दर बेहद खराब स्थिति में करीब 31.51 फीसदी ही है। मूलभूत सुविधाओं के आधार पर इस गांव की कहानी भी बाकी बिहार के गांवों की तरह ही है। बिजली, साफ पानी, स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों की तरह सड़कें भी इस गांव के लिए लगभग ना के बराबर ही उपलब्ध है।

67 वर्षीय गुटेर मुरमुर के साथ कई निवासियों के हवाले से रिपोर्ट किया गया है कि, 2014 लोकसभा चुनावों में यहां के निवासियों ने नरेंद्र मोदी को वोट किया। उन्होंने यह सोंचकर उन्हें वोट किया कि वह ऐसे व्यक्ति हैं जो उनके जीवन में बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने बताया कि लोगों ने उन्हें इसलिए वोट किया क्योंकि वे चाहते थे कि देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री हो जो विरोधी देश पाकिस्तान से मुकाबला कर सके जो हमारे देश में अशांति फैलाता है। लेकिन इस बार होने जा रहे बिहार चुनावों से पहले वे निराश हैं।

अपनी निराशा जाहिर करते हुए निवासियों ने कहा कि इस बार अगर चुनावी उम्मीदवार हमारे गांव आता है और समस्यायों को सुनता है। साथ ही समाधान के लिए हमें भरोसा दिलाता है। तभी हम तय करेंगे कि किसे वोट करना है। नहीं तो चुनावों का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने कहा कि नहीं तो इसके अलावा पोलिंग बूथ पर जाने का मतलब ही क्या है? बता दें, इस गांव में केवल 175 वोटर्स ही हैं।

 
 
 

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