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बिहार में मोदी की 40 रैलियां, क्यों पड़ी ऐसे प्रचार की जरूरत?

narendra-modi-with-nitish-kumar-jpg-561529fd8cb48_exlstदस्तक टाइम्स/एजेंसी: बिहार. लालू-राबड़ी के 15 साल के शासन में पिछड़ी जातियों को राजनीति में भागीदारी हासिल हुई। इसी आंदोलन से निकलने वाले नीतीश कुमार न केवल अत्यंत गरीबों को ऊपर लाए बल्कि उन्होंने राज्य की खस्ताहाल संस्थाओं को बहाल किया और उन्हें स्थिरता प्रदान की।
लालू और नीतीश इस समय साथ-साथ खड़े हैं।दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
भारत के इतिहास में शायद पहला मौका है जब किसी प्रांतीय चुनाव में कोई प्रधानमंत्री 40 से अधिक चुनावी सभाएं कर रहा हो। मोदी की पूरी कैबिनेट, भाजपा के पचासों सांसद और आरएसएस के हजारों कार्यकर्ता बिहार के चुनावी मैदान में दिन रात सक्रिय हैं।
 
मोदी ने बिहार के चुनाव को मोदी का मुकाबला बना दिया है। आखिर बिहार का चुनाव मोदी के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है? बिहार चुनाव मोदी के लिए ही नहीं बल्कि लालू और नीतीश के लिए भी अस्तित्व की लड़ाई बन गया है।

अगर बिहार के चुनाव में लालू और नीतीश के गठबंधन की हार होती है तो सामाजिक परिवर्तन के उनके आंदोलन को जबरदस्त झटका पहुँचेगा और इस प्रक्रिया में वह अपनी उपयोगिता खो देगा। दोनों नेताओं के राजनीतिक दलों के अस्तित्व की भी भविष्य में कोई गारंटी नहीं होगी।

भाजपा की जीत के मामले में मोदी की ताकत काफी बढ जाएगी और उनके लिए उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने की सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा आसान हो जाएगी।

 
व्यक्तिगत रूप से मोदी को पार्टी के भीतर मौजूद विरोधियों से खतरा समाप्त हो जाएगा। मोदी किसी हस्तक्षेप के बिना अपने एजेंड़े पर अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ सकेंगे।

लेकिन अगर भाजपा बिहार में हारती है तो पार्टी के भीतर मोदी के खिलाफ विद्रोह शुरू हो सकता है। उनकी निजीकरण की प्रक्रिया से पार्टी के बहुत से नेता दुखी हैं। खुद बिहार के कई नेता मोदी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। बिहार इस समय स्पष्ट रूप से दो मोर्चों में विभाजित है।

सोमवार को पहले दौर के मतदान से पहले मुकाबला बराबरी का नजर आता है। पांच नवंबर को अंतिम चरण का मतदान होगा। बिहार चुनाव के परिणाम सिर्फ लालू और नीतीश के राजनीतिक भाग्य का ही फैसला नहीं करेंगे बल्कि यह परिणाम भारत के भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे

व्यक्तिगत रूप से मोदी को पार्टी के भीतर मौजूद विरोधियों से खतरा समाप्त हो जाएगा। मोदी किसी हस्तक्षेप के बिना अपने एजेंड़े पर अधिक प्रभावी ढंग से आगे बढ सकेंगे।

लेकिन अगर भाजपा बिहार में हारती है तो पार्टी के भीतर मोदी के खिलाफ विद्रोह शुरू हो सकता है। उनकी निजीकरण की प्रक्रिया से पार्टी के बहुत से नेता दुखी हैं। खुद बिहार के कई नेता मोदी के खिलाफ बयान दे चुके हैं। बिहार इस समय स्पष्ट रूप से दो मोर्चों में विभाजित है।

सोमवार को पहले दौर के मतदान से पहले मुकाबला बराबरी का नजर आता है। पांच नवंबर को अंतिम चरण का मतदान होगा। बिहार चुनाव के परिणाम सिर्फ लालू और नीतीश के राजनीतिक भाग्य का ही फैसला नहीं करेंगे बल्कि यह परिणाम भारत के भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेंगे

 

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