दस्तक-विशेषस्तम्भ

बीसीपी उर्फ़ भग्गू पटेल

आशुतोष राणा की कलम से
(अपने जीवंत और प्रभावशाली अभिनय के बलबूते आशुतोष राणा ने सिनेजगत में जो ख्याति अर्जित की है वह सभी जानते हैं लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का एक पक्ष है, दूसरा उल्लेखनीय पक्ष यह है कि उनकी आध्यात्मिक-सामाजिक और राजनैतिक चेतना का फ़लक अत्यंत उन्नत और विशाल है। जिसकी जानकारी नि:संदेह उनके अनगिनत पाठकों और प्रशंसकों को होगी,लेकिन कुछ लोग अनभिज्ञ भी होंगे। जबकि सत्संग और सुविचार दूर-दूर तक और असंख्य लोगों तक पहुँचकर ही अधिक लाभदायक और प्रेरक सिद्ध हुए हैं, इसी भाव को केंद्र में रखकर, ‘ दस्तक’ में आशुतोष राणा के बहुआयामी व्यक्तित्व और उनके विविध विचारों से पाठकों को अवगत कराने के उद्देश्य से यह स्तम्भ शुरू किया जा रहा है। जिसमें हर माह किसी न किसी मुद्दे पर आप आशुतोष राणा के विचारों से अवगत होंगे।)
अचानक ही भग्गू पटेल मिल गये एयरपोर्ट लाउंज में, मेरी सामने वाली टेबल पर बैठे थे। उनके साथ उनके कुछ देशी और विदेशी मित्र भी थे। क़रीब बारह साल बाद मैंने उनको देखा था। उनका हुलिया, हाव- भाव देख मैं कुछ देर तो उनको पहचान ही नहीं पाया, क्योंकि जिस ठेठ बुंदेलखंडी भग्गू को मैं जानता था वह दूर -दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। किंतु बहुत ध्यान से देखने पर पता चलता था कि भग्गू मरा नहीं है,बल्कि बहुत होशियारी से उसे सूट बूट के नीचे छिपा दिया गया है। इसी बीच अचानक भग्गू और मेरी आँखें मिल गईं,मैं मुस्कुराया, भग्गू मुझे देखकर बुरी तरह सकपका गए और बेहद फुर्ती से चेहरे पर कुछ ऐसे भाव लाए जैसे उन्होंने मुझे देखा ही ना हो और डैमेज कंट्रोल करने के लिए उच्च स्वर में अपने विदेशी मित्र से अंग्रेज़ी में पूछ बैठे-
‘यू वांट सुगर इन टी और उनके द्वारा की गई “सुगर” की पेशकश ने ही उनके भग्गू होने पर मोहर लगा दी। क्योंकि भग्गू हॉस्टल के दिनों से ही”स और “श को लेकर पीड़ित थे।अथक प्रयासों के बाद भी इन दोनों शब्दों का सही उच्चारण उन्हें सिद्ध नहीं हो पाया था। सागर विश्वविद्यालय में उनकी पहली गर्ल फ्रेंड का नाम शर्मिला था।उन्हें विश्वास था की, अत्तरा,जहाँ के वे रहने वाले थे। जहाँ अमूमन सभी “सड़क को शड़क” और “शक्कर को सक्कर” कहने पर राज़ी थे,के घुट्टी में पिलाए गए भाषाई संस्कार को, शर्मिला का अभिजात्य प्रेम निश्चित ही सुधार देगा। हॉस्टल में रात भर शर्मिला- शर्मिला कहने की प्रैक्टिस करने के बाद अगले दिन सुबह बॉटनी गार्डन में उसे अपनी दो सखियों के साथ खिलखिलाता देख प्रपोज़ कर बैठे। प्रणय निवेदन के समय अभ्यासगत संस्कार की जगह जन्मजात संस्कार ने फन निकाल लिया और वे कह बैठे, ‘ सर्मिला आइ बाँट टू शे शमथिंग टू यू ..प्लीज़ शिट फ़ोर शम टाइम ।’
“शिट फ़ोर शम टाइम”सुन के शर्मिला ने उन्हें आश्चर्य व तिरस्कार के भाव से देखा जिसे भग्गू ने शर्मिला की प्रेमिल अधीरता और स्वीकार का सिग्नल समझ फ़टाक से, सर्मिला आई लव यू कह दिया और फिर चटाक की ज़ोरदार आवाज़ जिसकी गूँज पूरी यूनिवर्सिटी में सुनाई दी, के साथ उनकी प्रेम कहानी का अंत हो गया। भग्गू पटेल जिनका वास्तविक नाम भागचन्द पटेल था। इस घटना को छुपाना चाहते थे, किंतु शर्मिला जो आर्मी के उच्चाधिकारी की बेटी थी ने ये सम्भव ना होने दिया। उसने वाइस चांसलर को नामज़द लिखित शिकायत की, कि इस लड़के ने सरे आम मुझे बॉटनी गार्डन में कुछ समय तक शिट करने को कहा। भग्गू रेस्टीकेट होने से बमुश्किल बचे। किंतु सेना के जवानों ने उन्हे पीटते हुए विश्वविद्यालय में उनका जुलूस निकाल दिया जिसका एक फ़ायदा ज़रूर हुआ कि भग्गू रातों-रात विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध हो गए।
तब से भग्गू शर्मिला ही नहीं, हर उस बात से छड़कने लगे जिसमें “स” या “श” शब्द आते थे। मेरे नाम आशुतोष से तो उन्हें सख्त ऐतराज़ था क्योंकि उसमें सिर्फ़ शक्कर वाला श ही नहीं षट्कोण वाला ष भी आता था। भग्गू सन 2004 तक निरंतर मेरे सम्पर्क में थे। हिस्ट्री, पॉलिटिकल साइंस व सोशलाजी से ट्रिपल एम. ए.करने के बाद भी उन्हें मनोवांक्षित नौकरी नहीं मिली सो अपने सरवाईवल के लिए उन्होंने किराना दुकान से लेकर संविदा शिक्षक तक के सारे काम कर डाले। किंतु कोई भी काम उन्हें मोक्ष उपलब्ध ना करा सका। आज से बारह साल पहले जब मैं अंतिम बार उनसे मिला था तब वे लोकल पॉलिटिक्स से खजुराहो में गाइड के काम पर शिफ्ट हुए थे उसके बाद उनका कुछ पता ना चला। तब के बाद आज अचानक ही लाउंज में प्रकट हुए। मैं प्रसन्नता से भरा हुआ अपने एक्टरपन से मिली प्रसिद्धी से उपजे अहंकार को ताक पर रख,उनकी टेबल पर पहुँच गया और बेहद गर्मजोशी से उनको देख बोला-‘ भग्गू तुम कहाँ हो यार?’
अपने देशी विदेशी सम्भ्रांत से दिखने वाले दोस्तों के बीच अपने लिए भग्गू सुनकर वे असहज हो गए, उनकी आँखों में शर्मिला कांड से लेकर किराना दुकान तक का अप्रिय अतीत भड़ाभड़ स्लाइड्ज़ बदलने लगा।भग्गू की सरलता मुझसे लिपट जाना चाहती थी किंतु प्रयत्नपूर्वक सिद्ध की गई सम्भ्रांतता ने उसका गला दबा दिया था, जिससे वे स्वयं घुटते हुए से दिखाई दिए। मैंने मौक़े की नज़ाकत को समझ तुरंत यू टर्न लिया और उनके सूट बूट, फ़ेल्ट हैट को ध्यान में रख बेहद सम्मानजनक औपचारिकता के साथ कहा-
‘आई ऐम सॉरी जेंटलमैन. इफ़ आई ऐम नॉट मिस्टेकेन. आर यू मिस्टर भागचंद पटेलमैंने प्रश्न ज़रूर पूछा था किंतु मेरे पूछने का ढंग घोषणात्मक था, कि आई एम श्योर यू आर भग्गू।’ मेरी आँखों में अपने भग्गू होने का दृढ़ विश्वास देख उन्होंने सरेंडर करना उचित समझा। किंतु वे अपने विदेशी मित्रों को क़तई इस बात की भनक तक लगने देने के मूड में नहीं थे कि यह सूटेड बूटेड व्यक्ति कभी भग्गू था। उनकी पूरी कोशिश इस बात को सिद्ध करने की दिखाई दी, कि जैसे कर्ण कवच कुंडल के साथ पैदा हुआ था वैसे ही वे भी सूट बूट पहन कर ही पैदा हुए थे। इतने में उनके साथ की देशी महिला मित्र मुझे देख उछल पड़ीं और प्रसन्नता से भरी हुई बोलने लगीं- ‘हे मिस्टर आशुतोष राणा। यू आर ऐन अमेजिंग ऐक्टर..आई एम सो सो हैप्पी टू सी यू।’ अब वे भग्गू से मुख़ातिब हुईं और बोलीं बीसीपी!यू नेवर टोल्ड अस.यू न्यू सच अ फेमस पर्सन द आशुतोष राणा। ही सीम्स टू बी वेरी क्लोज़ टू यू।’ अब भग्गू भौंचक हो के मुझे देख रहे थे। वे गर्व और भय के मिश्रित भाव से भरे हुए थे.. गर्व इस बात का कि ‘द फेमस’ आशुतोष राणा ‘उनको’ जानता है और भय ये था कि आशुतोष राणा उनको ‘क्लोजली’ जानता है।
फिर वही महिला बोली-‘कैन आई टेक वन सेल्फ़ी विद यू?ओह, आई एम सॉरी. मैंने आपको अपना नाम ही नहीं बताया। आई एम शारदा बट बीसीपी काल्स मी “सारदा” ही गेव मीनिंग टू माय नेम..सार .मीन्स एसेंस एंड दा यानि देने वाली.. सो इन शार्ट ..सारदा मीन्स “एसेंस ऑफ़ लाइफ ।
मेरे प्रति भारतीय महिलाओं का आदर भाव देख अब विदेशी भी मेरे कोई विशेष व्यक्ति होने को ताड़ गए और तुरंत सक्रिय होके, हे मैन, हा मैन, बॉलीवुड, सिलेब्रिटी, हा हा हू हू करने लगे। उनके सम्माननीय बीसीपी के लिए मेरे भग्गू को रोक पाना अब बहुत मुश्किल हो रहा था, क्योंकि मैं उनके सुख- दु:ख का पुराना साथी था। क़ायदे से बदलना मुझे चाहिए था, किंतु बदल वे गए थे, इस बात की उन्हें अब ग्लानि भी हो रही थी। मैंने उन्हें इस ग्लानि से मुक्त करने के लिए बेहद आत्मीयता व आदर से संबोधित किया-‘ हे बीसी, हाऊ डूइंग मैन?’ अब वे लपक कर खड़े हुए और मेरे गले से चिपक गए। इस गले मिलन में दो भाव थे एक अपनापन और दूसरा मुझे आगे कुछ भी ना बोलने देने का बलपूर्वक प्रयास और ‘ओह माई गॉड राना..इट्स प्लेज़र इट्स प्लेज़र’ कहते हुए वे मुझे घसीट के उस टेबल से दूर ले आए और दूर से ही अपने मित्रों से बोले इक्स्क्यूज़मी विल बी बैक इन शम टाइम।’
अब हम दोनों अकेले थे, टॉयलेट के पास। बोले-‘ गुरु माफ़ करियो, हम अपने भग्गू होने से बहुत परेसान थे, सो गाइडगिरी करते हुए एक दिन हमें एक आइडिया शूझा कि क्यों ना हम भागचंद पटेल को बीसीपी कर दें। सायद हमारे भाग खुल जाएँ? भागचंद में शाली एक पनोती सी थी। लेकिन नाम बदल देने भर शे भाग्य थोड़ी बदलता है, इसके लिए तो शाला हमें भी अपने आपको बदलना पड़ेगा, सो लग गए भग्गू को मिटाने में। एक दिन भाग्य से नागा शाधुओं की एक टोली खजुराहो में मिल गई सो हम सोई भभूत मबूत लगा के उनके संगे हो गए। पैले तीन चार दिन तो ठीक कटे मगर चौथे दिन रात में नागाओं के कोतवाल ने हमें पकड़ लिया और छ: शात(सात) चमिटा हमारी पीठ पे जड़ दिए, बोला-शाले फ़र्जी कहीं का हरामखोर। आदमी होके नागा बना घूमता है। निकर सारे, नई तो तुझे जिंदा जला के तेरी राख सरीर पे लगा के हम रात भर तांडव करेंगे। सो हम भग लिए, अब शोचा (सोचा) कि चलो नरमदा किनारे हैंई हैं तो परकम्मा कर लें.सो परकम्मा में ही एक दिना विचार आया कि जितनी भीड़ जीते जागते मुख्यमंत्री के दरवाज़े पे नई लगती, उससे ज्यादा भीड़ तो पत्थर के देवी – देवता के मंदिरों में लगती है। कारण क्या है कि आदमी-आदमी की इच्छा पूरी नई कर पाता, लेकिन पत्थर कर देता है? ऐशेइ रास्ता चलत जे शवाल (सवाल) हमनें एक शामान्य (सामान्य) टाइप के चिलमबाज़ साधु से पूछ धरा, बे बोले- मानो तो पत्थर भी देवता है और ना मानो तो देवता भी पत्थर बिरोबर है। चमत्कार पत्थर नहीं करता, उस पत्थर के प्रति इंशान की श्रद्धा उसका विस्वास करता है। गुरु, उसकी बात हमें जम गई और हमने रंग- बिरंगे छोटे- बड़े कुछ अजीब टाइप के पथरा इकट्ठे करना सुरू (शुरू) कर दिए। पहले लोकल लेबल पर हमने उन पत्थरों को चमत्कारी पत्थर के नाम से बेंचा। इशमें हमारा ख़र्चा पानी निकालना सुरू हो गया। फिर लगा कि क्यों ना सूट- बूट पहन के अंग्रेज़ी बोलते हुए पत्थर बेंचे जायें और हमारा तीर निसाने पे घला, जो पत्थर हिंदी में सौ रुपल्ली में बिकता था, शाला अंग्रेज़ी में ढाई हज़ार में बिका। हम पकड़ गए गुरु, अब हमने हर शमश्या (समस्या)के निदान का अलग पत्थर और उनके अंग्रेज़ी नाम धर लिए.जैसे ट्रबल सूटर, एनर्जी बूश्टर, फ्लाइइंग फ़ीवर, लव श्टोन, पीश फ़ोर माइंड, मिलेनियर, सेक्स सक्सेस (सेक्स सक्सेस) एन्वी, प्रोट्रैक्टर, फ़ेम श्टोन, हैपीनेश, लाई कन्वर्टर.. फिर लगा की अगर हिंदी आदमी के दिल में जगह बनानी है तो अंग्रेज़ी आदमी के थ्रू आओ, कोई विदेशी अगर अपनी पीठ ठोक दे तो अपन लोगों की आदत है कि अपन उसके चरणों में लोट जाते हैं। सो विदेसियों को घेरना शुरू किया। विदेशी वैसे ही विश्वासी होते हैं, उनके विश्वास को बढ़ाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। कह के पत्थर पकड़ा दो कि काम होगा मतलब होगा। फिर देखो, शाले कोई कशर नई छोड़ते,पत्थर को शही शाबित करने के लिए जी जान लड़ा देते हैं। शफल होते हैं वो और श्रेय मिलता है बीसीपी के गाइडिंग श्टोन को। आज गुरु इटली, फ्रान्श, अमेरिका, इंग्लेंड, यूएइ दुनिया के दश देसों में अपने ऑफ़िस हैं।’
मैंने कहा यार भग्गू तुमने तो कमाल कर दिया, लोग हीरा नहीं बेच पाते तुमने पत्थर बेच दिए।’ भग्गू बोले -‘लोग हीरे को सक की नज़र से देखते हैं गुरु और पत्थर को विस्वास की। मैंने पत्थर नहीं उनके विस्वास को बेंचा है।
मैंने हँसकर कहा यार ये विश्वास नहीं अंधविश्वास है।’
भग्गू बेहद संजीदगी से बोले- ‘गुरु विश्वास नाम की कोई चीज़ नहीं होती। हमारी सफलताएँ अंधविस्वास पर ही खड़ी होती हैं। खुली आँखों का विश्वास विज्ञान कहलाता है, ये विज्ञान भी अंधविश्वास की ताक़त से ही पैदा होता है। हवाई जहाज़ बनाने वाले को पहले अंधविस्वास ही होगा कि मैं पूरे कुनबे को हवा में उड़ा सकता हूँ, विश्वास परिणाम है और अंधविश्वास प्रक्रिया। बिना प्रक्रिया के परिणाम कैसे मिलेंगे? हम अंधविस्वास भी पूरी ईमानदारी से नहीं करते इसलिए फे़ल हो जाते हैं। जिसे तुम अंधविश्वास कह रहे हो दरअशल वह इशखिलित (स्खलित) विस्वास है, जिसमें हम दुनिया पर तो विस्वास करते हैं किंतु स्वयं पर अविश्वास करते हैं। खुली आँखों से किए गए काम नहीं, बंद आँखों से किए गए काम ही चमत्कार स्रेणी में आते हैं। जितने भी चमत्कारी लोग हुए हैं उन्होंने लोगों की आँखें खोली नहीं है, बल्कि खुली आँखों को बंद किया है। बच्चे को जगाना नहीं बच्चे को शुलाना (सुलाना) कला है, इसलिए माताएँ बच्चे को शुलाने के लिए लोरी गाती हैं, उसे जगाने के लिए नहीं। शुख(सुख) मीठी नींद में है गुरु, सो मेरे काम को तुम माँ की लोरी मानो। क्योंकि अच्छी नींद लेने वाला बच्चा जब अपने आप जागता है तो वह आनंद और ऊर्जा से भरा होता है फिर उशको (उसको) अपना अभाव भी प्रभाव नज़र आता है। एक बार तुम्हीं ने हमसे कहा था कि शंशार में शबशे बड़ी ताक़त स्वप्न की ताक़त होती है, हमें लोगों के अंदर सपने देखने की ताक़त पैदा करनी चाहिए। देखो तुम्हारे दिए गए गुरुमंत्र का अक्षरस: पालन कर रहा हूँ।’
मैं उनकी बात सुनकर ठहाका मार हँस दिया और कहा कि-‘ तुम धन्य हो यार। आज तुम्हारे नाम का सही अर्थ समझ में आया, जो स्वयं के ही नहीं संसार के भी तपते हुए भाग्य को चाँद की शीतलता के एहसास से भर दे वो भागचंद। भग्गू गदगदा के मेरे गले से चिपक गए। तभी मुझे अनाउंसमेंट सुनाई दिया कि मैं आखिरी सवारी हूँ जिसकी प्रतीक्षा हो रही है। मैंने भग्गू से विदा लेते हुए कहा-‘ अच्छा बंधु मिलते हैं..।’
भग्गू बोले गुरु जाते-जाते एकाध मंतर और दे जाते तो कल्याण हो जाता।’
मैंने हँसते हुए कहा, -‘अब सफलता सिद्ध मंत्र से नहीं, शुद्ध षड्यंत्र से मिलती है भग्गू।’
मेरे मंत्र में अपने जन्मजात बैरी “स” “श” और “ष” को एक साथ देख भग्गू चिढ़ गए, बोले-‘ गुरु, षड्यंत्र तो हम शुद्ध बोल भी नहीं सकते, करना तो दूर की बात है।’
मैंने कहा- ‘षड्यंत्र बोला नहीं जाता,किया जाता है। इसलिए तो तुम इसमें पारंगत हो। भग्गू लोग अपने आपको बदल सकते हैं किंतु छिपा नहीं सकते। तुम अपने को बदल नहीं पाए इसलिए छिपाने में माहिर हो गए, ये षड्यंत्रकारी का प्राथमिक और आवश्यक गुण होता है। मैं देख पा रहा हूँ कि तुम बहुत जल्दी नर्मदा जी के शिव कंकण के सहारे सृष्टि के कण-कण में समाने वाले हो। तुम षड्यंत्र के बल पर यंत्र ही नहीं तंत्र पर भी अपना आधिपत्य स्थापित कर लोगे और तुम्हारा नाम मंत्र के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करेगा। ये गुरुमंत्र नहीं भविष्यवाणी है, किसी भी भविष्यवक्ता से मुफ्त में भविष्य नहीं सुना जाता इसलिए दस्तूर के मुताबिक़ मुझे दक्षिणा दो जिससे तुम्हारा सोचित व मेरे द्वारा घोषित भविष्य फलित हो। भग्गू ने हर्षातिरेक में अपना पूरा बटुआ निकाल के मुझे दे दिया, मैंने मुस्कुराते हुए उसमें से सिर्फ़ एक रुपए का सिक्का उठाया, शिवम् भवतु कहा और चल दिया। वे अवाक खड़े मुझे बोर्डिंग गेट की तरफ़ जाते हुए तब तक देखते रहे जब तक मैं उनकी आँखों से ओझल नहीं हो गया।

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