बूढ़े और अंधे पति को सुकन्या ने कैसे बनाया युवा और रूपवान

लोकल डेस्क : यह कहानी एक ऐसे पुरुष की प्रेम कथा है, जो बूढ़ा और शारीरिक रूप से कमजोर हो चुका है। इनके जीवन में एक दिन एक ऐसी घटना होती है कि अत्यंत रूपवती कन्या जिसका नाम सुकन्या है वह इनकी पत्नी बनकर आ जाती। इसके बाद दो अत्यंत रूपवान पुरुष उससे विवाह करने के लिए लालायित हो उठते हैं फिर कुछ ऐसा होता है कि बूढ़ा पति युवा हो जाता है और उसकी आंखें भी ठीक हो जाती है। इस कथा का उल्लेख श्रीमद्भागवत पुराण के नवे स्कंद के तीसरे अध्याय में किया गया है। इस कथा की नायिका सुकन्या राजा शर्याती की पुत्री एक दिन अपने पिता के साथ वन में शिकार देखने गई। वन में भ्रमण करते हुए इनकी नजर एक बांबी पर गई। राजकुमारी ने देखा की बांबी के अंदर से कुछ चमक रहा है जैसे दो जुगनू हों। राजकुमारी ने कौतुहलवश एक कांटे को उन चमकीली चीजों में चुभो दिया और यहीं से राजकुमारी के जीवन में बड़ा परिवर्तन आ गया। दरअसल वो जुगनू जैसी दिखने वाली चीजें महर्षि च्यवन की आंखें थीं जिसमें कांटे चुभने से रक्त बहने लगा और ऋषि अंधे हो गए। ऋषि के क्रोध से राजा शर्याती के राज्य में तरह-तरह की परेशानियां उत्पन्न होने लगीं। राजा शर्याती को जब राजकुमारी ने अपनी भूल के बारे में बताया तो राजा च्यवन ऋषि के पास क्षमा मांगने पहुंच गए। ऋषि ने कहा कि क्षमा करने पर मेरे जीवन कैसा चलेगा। मैं अंधा हो गया हूं और इसके लिए तुम्हारी पुत्री जिम्मेवार है इसलिए उसे मुझसे विवाह करना होगा ताकि वह मेरा ध्यान रख सके। राजा ऋषि की बात से बहुत दुखी हुए लेकिन मजबूर होकर उन्हें अपनी पुत्री का विवाह बूढ़े और नेत्रहीन हो चुके ऋषि च्यवन से करना पड़ा। एक दिन देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमारों की नजर सुकन्या पर गई और वह उस पर मोहित हो गए। इन्होंने सुकन्या के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन सुकन्या ने इनकार कर दिया। सुकन्या के पतिव्रत से प्रसन्न होकर अश्विनी कुमारों ने वरदान मांगने के लिए कहा। सुकन्या ने कहा कि आप देवताओं के वैद्य हैं इसलिए आपसे यही वरदान चाहती हूं कि मेरे पति को युवा बना दीजिए और दृष्टि लौटा दीजिए। अश्विनी कुमारों ने महर्षि को दिव्य सरोवर में स्नान कराया और जैसे ही महर्षि च्यवन जल से बाहर आए वह युवा नजर आने लगे। यहां भी अश्विनी कुमारों ने सुकन्या के पतिव्रत की परीक्षा ली और कहा कि पहचानो तुम्हारे पति कौन हैं। दरअसल, सरोवर से निकलने के बाद ऋषि भी अश्विनी कुमार की तरह दिखने लगे थे, लेकिन सुकन्या ने उन्हें पहचान लिया। बाद में ऋषि च्यवन ने अपने तपोबल से देवताओं की भांति अश्विनी कुमारों को भी यज्ञ में सोमपान का अधिकार दिलाया।