बेशुमार खूबसूरती का करना हो दीदार, तो बनाएं तिरुवनंतपुरम का प्लान…
तिरुवनंतपुरम में प्राकृतिक सौंदर्य के अनेक रूप एक-दूसरे से एकाकार होते हुए रोमांच प्रदान करते हैं। एक ओर पर्वतीय सुंदरता खिलती है तो दूसरी ओर गंभीर गर्जना से अपनी विराटता का बोध कराते समंदर हैं। किसी चट्टान पर बैठकर समुद्र की देह पर डूबते सूरज को निहारना और पश्चिमी घाट की पहाडि़यों की किसी चोटी से नीचे बादल को तैरते देखना यहीं हो सकता है। यहां कोई समुद्री तट अपने आसपास के चट्टानों के लिए प्रसिद्ध है तो कोई कोने में खड़े लाइटहाउस के लिए। कहीं का सूर्योदय आकर्षक है तो कहीं का सूर्यास्त। इस तरह, बहुरंगा और बहुस्तरीय सौंदर्य त्रिवेंद्रम की पहचान है।
आडंबर से दूर राजधानी
किसी भी राज्य की राजधानी हो जाना शहर के गौरव को बढ़ा देता है। इसके साथ ही उस शहर के साथ एक भव्य राजनीतिक आभामंडल भी जुड़ जाता है। लेकिन तिरुवनंतपुरम इस तरह के किसी भी आडंबर से दूर रहने वाला शहर है। यहां के जनजीवन से लेकर शहर की आम गतिविधि तक में इसकी सहजता ही हावी रहती है। किसी भी नगर में इस शालीनता का आ जाना अपने आप में अनूठा है। पैदल चलने का सुखप्राचीन त्रावणकोर के चिह्नों और आधुनिक तकनीकी युग के प्रतीकों को एक साथ बरतने वाला यह शहर अपने समग्र प्रभाव में आश्चर्यजनक रूप से ठहराव और शांत माहौल का शहर है। इसलिए यह पैदल चलने वालों को खूब भाता है। इसकी सड़कों पर अनावश्यक भीड़भाड़ नहीं दिखती। वाहनों की आपाधापी से दूर यहां के रास्ते चलने वालों को सुकून के अद्भुत अनुभव देती हैं। शहर बहुत बड़ा नहीं है, इसलिए एक छोर से दूसरे छोर तक जाना बहुत कठिन नहीं रह जाता है। फिर सड़कों की साफ-सफाई और उनके किनारे खड़े पेड़ों का सौंदर्य पैदल चलने वालों को बरबस ही अपनी ओर खींचता है।
नाइटलाइफ का लुत्फ
त्रिवेंद्रम की सुरक्षित सड़कें रात में बहुत आकर्षक हो उठती हैं, जब वाहनों का आना-जाना लगभग बंद हो जाता है और उनकी काली सतह मुसाफिरों के स्वागत में तत्पर हो उठती है। आप उन सड़कों पर रात के समय चलेंगे तो शहर और करीब महसूस होगा। ऐसा लगता है कि ये जितनी आज खूबसूरत हैं, उससे कहीं ज्यादा अपने इतिहास में रही होंगी। यूं कहें कि इन सड़कों से इतिहास ने यात्रा की होगी। इन सड़कों ने मलयाली संस्कृति की यात्रा भी देखी होगी और औपनिवेशिक जीवन से उसके संघर्ष और सहकार को भी देखा होगा।
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत
दक्षिणी केरल का यह हिस्सा केरल की समूची सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करते हुए भी तमिलनाडु और केरल की सीमा पर होने के कारण अपनी खास ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान रखता है। दसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक यहां ‘अयों’ का राज रहा। वे इस क्षेत्र की प्रमुख ताकत थे, जो ‘वेनाड’ शासकों के अभ्युदय के बाद पराभव के शिकार हो गए। सत्रहवीं शताब्दी में उमायम्मा रानी के शासनकाल में अंग्रेजों को फैक्ट्री बनाने और उसे सुरक्षित व मजबूत करने के लिए समुद्र के किनारे थोड़ी-सी जमीन मिली। यहां के ‘अंजेंगों’ नामक इसी स्थान से अंग्रेजों ने शहर के अन्य भागों सहित त्रावणकोर के बड़े हिस्से तक अपनी ताकत का विस्तार कर लिया। यहां का आधुनिक इतिहास मार्तंड वर्मा के शासनकाल को माना जाता है, जिन्हें ‘आधुनिक त्रावणकोर का पिता’ भी कहा जाता है। उन दिनों त्रिवेंद्रम बौद्धिक और कलात्मक गतिविधियों का महान केंद्र माना जाता था। यहां बौद्धिक बहसें होती थीं, कलाओं की कार्यशालाएं होती थीं। त्रावणकोर के संस्थापक मार्तंड वर्मा ने त्रिवेंद्रम को 1745 में अपनी राजधानी बनाया।
कब और कैसे पहुंचे
मानसून में या फिर सर्दी के समय इस मनोरम शहर की यात्रा करें। यह भारत के सभी जगहों से रेल, सड़क और हवाई मार्ग से जुड़ा है। नज़दीकी हवाई अड्डा शहर से 6 किमी दूर है। यह एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो देश-दुनिया के बड़े शहरों से जुड़ा है। इसके साथ-साथ तिरुवनंतपुरम सेंट्रल रेलवे देश के दूसरे शहरों से जुड़ा है। रेल द्वार भी यहां आसानी से आया जा सकता है। यहां आकर बस से भी स्थानीय जगह घूम सकते हैं।