ग्वालियर : मध्य प्रदेश के ग्वालियर से सटे अनेक गांवों में जंजीरों से जकड़े गए ऐसे बंधुआ मजदूरों को देखा जा सकता है, जो बेसहारा मनोरोगी अथवा मानसिक रोगी हैं। आसपास के शहरों अथवा दूरदराज से पकड़ कर इन्हें यहां लाकर बेच दिया गया है। ग्वालियर का यह मामला संदेह पैदा कर रहा है कि कहीं अन्य जगहों पर भी तो यह काम शुरू नहीं हो गया है?ग्वालियर के हाइवे से सटे दर्जनों गांवों में इस क्रूरतम सच को बयां करती कुछ तस्वीरें हमने कैमरे में कैद की हैं। पड़ताल की तो पता चला कि इस इलाके में यह चलन बढ़ता जा रहा है। जवान विक्षिप्तों को यहां कौन लाता है, कैसे लाता है, यह तो स्पष्ट तौर पर पता नहीं चला, लेकिन इतना साफ है कि कोई संगठित गिरोह इसके पीछे है, जो जवान विक्षिप्तों को पकड़ कर लाता है और यहां के जमींदार परिवारों को बेच देता है। जहां किस्मत के मारे इन बीमार व्यक्तियों को बंधुआ मजदूर बनाकर उनसे जानवरों सा काम लिया जाता है। जिंदा रखने के लिए दो वक्तकी रोटी और हाथ-पैर में जंजीरें। ग्वालियर में समुदाय विशेष के कुछ गांवों में दिख रहा यह चलन इंसानियत को झकझोर देने वाला है। हालात के आगे मजबूर ऐसे अनेक विक्षिप्त यहां बंधुआ मजदूरी करते हुए देखे जा सकते हैं। ये लोग विरोध करने के काबिल भी नहीं बचे हैं। काम लेने के लिए निश्चित ही इनके साथ घोर अमानवीय व्यवहार किया जाता है। पिटाई या भूख का भय इन पर इतना हावी हो गया है कि वे मूक जानवर बन काम पर लगे रहते हैं। हाइवे से सटे शीतला रोड स्थित नौगांव और बांस बडेरा, डबरा रोड पर लखनौती, अडपुरा से पहले तुरारी गांव, मुरार क्षेत्र में अलापुर, रमौआ, पिपरौली, पुरासानी और तिलैथा गांव बानमौर क्षेत्र में चौकोटी गांव सहित ऐसे दर्जनों गावों में यह तस्वीर देखी जा सकती है। अधिकांश खेती- बाड़ी के काम में इनका उपयोग किया जाता है। ऐसे कुछ बंधुआ मजदूर तो बीते कई सालों से इन गांवों में काम कर रहे हैं। मजदूरों को खटिया, गाड़ी से लेकर पेड़ तक से बांध दिया जाता है। बंधुआ मजदूरी के मामले में कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है। यह कृत्य गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे गांवों में जाकर पड़ताल कराई जाएगी। नोडल अधिकारी को इस संबंध में निर्देश दिए जा रहे हैं।