दस्तक-विशेषस्तम्भ

“बैंकों को चूना लगाने वालों का कर्ज क्यों राइट ऑफ किया गया”

विक्रम चौरसिया

स्तम्भ : दोस्तों कोविड 19 से उपजी वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जब आज पूरा विश्व त्राहिमाम है तो वही भारतीय रिजर्व बैंक ने टॉप 50 विलफुल डिफाल्टर्स के करीब 68 हजार करोड़ रुपए के कर्ज को राइट ऑफ कर दिया है। दोस्तों इस 50 लोगों की लिस्ट में पीएनबी घोटाले के आरोपी और फरार हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी का भी नाम आ गया है दोस्तों यह सब कहीं ना कहीं राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों बैंक अधिकारियों के सांठगांठ के कारण ही संभव हो पाता है।

देखा जाता है कि देश के आम जनता एवं अन्नदाता जब लोन लेने जाता है तो अपने घरों और खेतों की मोरगेज कराने के बाद भी बैंक बहुत ही मुश्किल से लोन देती है। अगर लोन दे भी दे किसान या आम आदमी किसी कारण से समय पर ना चुका सका लोन तो बैंक किसान और आम आदमी के घर पर कानूनी नोटिस और विभिन्न प्रकार के डराना धमकाना शुरू कर देते हैं वैसे तो बहुत मुश्किल से दे पाते हैं। किसानों को लोन देते भी हैं तो 10% किसानों से अपना कमीशन मांगते हैं दोस्तों पिछले वर्ष मैं खुद अपने खेत का मोरगेज करा कर ले गया फिर भी मेरे पिताजी से बैंक मैनेजर 10% कमीशन मांगा जब मैं इसका विरोध किया तो बोला कि यह मेरे हाथ में है 10% नहीं दोगे तो मैं नहीं दूंगा लोन फिर क्या करता खेती -किसानी की जरूरत के कारण देकर लेना पड़ा दूसरी तरफ विलफुल डिफॉल्टर जिनको एक फोन पर लोन मिल जाता है दोस्तों अब मेरा यह सवाल है कि क्या भारतीय रिजर्व बैंक का यह कूटनीतिक कदम और तत्कालीन वैश्विक कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से जूझ रही भारत की अर्थव्यवस्था का सामंजस्य व तालमेल शट- डाउन के बाद की स्थिति को सामान्य व गतिशील रख पाएगा? जबकि पूरे विश्व में आर्थिक मंदी की आहट साफ- साफ दिख रही है l

दूसरा सवाल मेरा क्या शट-डाउन के बाद भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति को संतुलित बनाने में किसी तरह का योगदान इन महान डिफॉल्टर सज्जनों के माध्यम से लिखित रूप में दिया गया है? अगर नहीं दिया गया है तो फिर ऐसा क्यों एक तरफ गरीब किसान और आम आदमी को बहुत मुश्किल से लोन मिलने के बाद भी डरा धमका कर उनके घर तक को कुर्क कर लिया जाता है तो वहीं इन भगोड़ों का कर्ज़ राइट ऑफ कर दिया जाता है दोस्तों विलफुल डिफॉल्टर उन कर्जदारो को कहते हैं जो सक्षम होने के बावजूद जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाते हैं ऐसे महान आत्मा का बैंक भी कर्ज को राइट ऑफ करके बट्टे खाते में डाल देती है वही किसानों और आम आदमी के साथ अपना जुल्म करती रहती है तो क्या आम आदमी और किसानों के लिए और इन विलफुल डिफॉल्टर के लिए अलग कानून एक ही देश में आखिर क्यों ऐसा है? आज दोस्तों पूरा देश कोरोना की महामारी से लड़ रहा है रोजी रोटी की मार के चलते देश के करोड़ों मजदूरों को शहर से गांव पलायन करना पड़ा व फौजी जवानों मिलिट्री पेंशनरों सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता काटा गया है जहां वही लघु उद्योग दुकानदारी व व्यवसाय ठप हो गए हैं पर शर्म की बात है कि इसके बावजूद बैंक डिफॉल्टरो को 68,607 करोड़ों रुपए की माफी दी जा रही है आखिर क्यों? जब देश के अन्नदाता और आम आदमी के साथ आप का कानून पारदर्शी रूप से काम करता है तो इनके साथ क्यों नहीं आखिर इनको इतना लोन कैसे मिल जाता है कहीं ना कहीं राजनीतिक संरक्षण और भाई भतीजावाद का ही मुझे बोलबाला नजर आता है

जबकि हम देख रहे हैं आए दिन हमारे अन्नदाता कर्ज़ और प्रकृति के कहर से फांसी पर लटके हुए देखे जा रहे हैं आखिर क्यों नहीं देश के 70% आबादी जो कि देश के 100% आबादी का पेट भरता है उसके लिए कुछ पहल करें इन अमीरों के कर्ज़ को राइट ऑफ ना करके इन किसानों और मजदूरों का हम मदद करें सोचना जरूर आप सबके सोचने के लिए यह सवाल छोड़ कर जा रहा हूं।
(लेखक सामाजिक आंदोलनों से जुड़े रहें व वंचित तबकों के लिए आवाज उठाते रहते हैं-स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित लेख हैं।)

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