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ब्रिटेन में रह रहे 131 वांछित अपराधियों में से एक भी नहीं लौटा वापस

बैंकों से लिए गए 9,000 करोड़ रुपये के ऋण चुकाए बिना देश छोड़कर चले जाने वाले शराब कारोबारी विजय माल्या को ब्रिटेन से स्वदेश लाने की प्रक्रिया के तहत अंतिम सुनवाई आज (31 जुलाई) लंदन में वेस्टमिनिस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में होगी। माल्या को वापस लाने के लिए भारत के मामले का प्रतिनिधित्व ब्रिटेन सरकार की क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) के माध्यम से किया जा रहा है।

बैंकों से लिए गए 9,000 करोड़ रुपये के ऋण चुकाए बिना देश छोड़कर चले जाने वाले शराब कारोबारी विजय माल्या को ब्रिटेन से स्वदेश लाने की प्रक्रिया के तहत अंतिम सुनवाई आज (31 जुलाई) लंदन में वेस्टमिनिस्टर मजिस्ट्रेट की अदालत में होगी। माल्या को वापस लाने के लिए भारत के मामले का प्रतिनिधित्व ब्रिटेन सरकार की क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) के माध्यम से किया जा रहा है। पिछली सुनवाई में भारत से केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय की चार सदस्यीय टीम भी अदालत में पहुंची थी। वहीं आपको बता दें कि मुंबई के बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने भी विजय माल्या को भगोड़ा अपराधी घोषित किया है। हालांकि ब्रिटेन की पीएम थेरेसा मे की भारत यात्रा के दौरान भारत ने ब्रिटेन को 57 भगोड़े की लिस्ट सौंपी थी। ब्रिटेन ने भी ऐसे 17 भगोड़ों की लिस्ट दी थी, जो ब्रिटेन की अदालत में दोषी हैं। दोनों मुल्कों के बीच प्रत्यर्पण की संधि 1993 में हो गई थी पर समझौते के इतने दिनों बाद भी ब्रिटेन ने किसी भी भगोड़े को भारत को नहीं सौंपा है। इसके उलट भारत अब तक दो लोगों को ब्रिटेन को सौंप चुका है।  देश के कई बैंकों से 9000 करोड़ का कर्ज लेकर विदेश भाग चुके शराब करोबारी विजय माल्या को भारत वापस लाने के लिए मोदी सरकार ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ब्रिटेन के साथ दो दशक पुरानी उस संधि को समाप्त करने पर भी विचार कर रही है जो विजय माल्या के प्रत्यर्पण में रोड़ा बनी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) चाहता है कि केंद्र सरकार 1995 में की गई भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) को लागू करे, इस तरह की संधि का उपयोग आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए किया जाता है। विदेश मंत्रालय इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों की सलाह ले रहा है कि क्या यूके की मदद से इस संधि को रद्द किया जा सकता है या नहीं।  हालांकि माल्या को भारत भेजने में ब्रिटिश सरकार लगातार टालमटोल कर रही है। वहीं पीएनबी घोटाले में करोड़ों रुपए का चूना लगाकर एंटीगुआ की नागरिकता लेने वाले मेहुल चौकसी के प्रत्यर्पण के लिए वहां की सरकार ने सकारात्मक संकेत दिए हैं। कहा जा रहा है कि वे प्रत्यर्पण की भारत की सही अपील पर विचार कर सकता है। हालांकि इसके उलट विवादित इस्लामिक प्रचारक जाकिर नाईक पर मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि वे भारत को उनका प्रत्यर्पण नहीं करेंगे। इधर जांच एजेंसियों ने सरकार के सामने ललित मोदी के भी प्रत्यर्पण की मांग रख दी है। हालांकि अब तक सरकार के प्रयासों पर प्रत्यर्पण का इतिहास भारी नजर आ रहा है।  आर्थिक अपराध को अंजाम देने के बाद देश छोड़कर भागने वाले अपराधियों को रोकने के लिए संसद ने 27 जुलाई को एक बिल पास किया था। इस बिल पर बोलते हुए वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि हमारी सरकार विश्व के सारे देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि को लेकर सहयोग की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए हमारी 48 देशों के साथ पहले से ही प्रत्यर्पण संधि है लेकिन दुनिया के अन्य देशों के साथ ही इस प्रकार की संधि करने के लिए सरकार अग्रसर है। पीयूष गोयल ने कहा कि केंद्र सरकार इस प्रयास में लगी हुई है कि जो आर्थिक अपराधी देश छोड़कर विदेश में है उसका किसी प्रकार जल्द प्रत्यर्पण किया जा सके। ब्रिटेन के पास भारत के 131 आरोपियों की सूची  भारत और ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी। तब से अब तक ब्रिटेन की तरफ से एक भी आरोपी देश को नहीं सौंपा गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत के 131 वांछित लोगों की सूची ब्रिटेन के पास है। पिछले कुछ वर्षों में तो ब्रिटेन की ओर से कई गंभीर मामलों के आरोपियों की प्रत्यर्पण याचिका नामंजूर कर दी गई है।  इनमें नौसेना वॉर रूम से सूचनाएं लीक करने का आरोपी रवि शंकरन, 1993 में गुजरात में हुए दो बम धमाकों का आरोपी टाइगर हनीफ, गुलशन कुमार की हत्या का आरोपी म्यूजिक डायरेक्टर नदीम शरीफ शामिल हैं। साथ में भ्रष्टाचार के आरोपी आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी को भी भारत लाने के सरकार के प्रयासों को सफलता नहीं मिली।  हालांकि भारत की जिन 42 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है, वहां से पिछले 14 साल में सिर्फ 60 ही आरोपी हमारी जांच एजेंसियों को सौंपे गए हैं। इतना ही नहीं, ब्रिटेन ने तो 1993 में करार के बाद से अब तक कोई हाई-प्रोफाइल आरोपी भारत को नहीं सौंपा।  इस तरह होती है दो देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि : प्रत्यर्पण असल में किसी देश द्वारा आरोपी या अपराधी का दूसरे देश के सामने समर्पण है। यह काम दो देशों के बीच संधि के माध्यम से होता है। जब विदेश मंत्रालय के पास जांच एजेंसियां किसी आरोपी के प्रत्यर्पण की मांग भेजती हैं तो मंत्रालय उस देश के विदेश मंत्रालय के सामने मांग रखता है, जहां आरोपी या अपराधी रह रहा है। इस मांग के साथ आरोपी से जुड़ी सारी जानकारी भी भेजी जाती है। अगर आरोपी एक से ज्यादा हैं तो हर एक के लिए अलग रिक्वेस्ट भेजी जाती है।  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये परिस्थितियां हैं मान्य : आमतौर पर आरोपियों के प्रत्यर्पण में इस बात का ध्यान दिया जाता है कि उस पर लगे आरोपों के तहत दोनों ही देशों में सजा का प्रावधान हो। जिस देश में आरोपी ने शरण ले रखी है, अगर वहां सजा का प्रावधान नहीं है तो संबंधित देश आरोपी को सौंपने से इनकार कर सकता है। यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में राजनीतिक कारणों से आरोपी बनाए गए शख्स का प्रत्यर्पण नहीं होता।  ज्यादातर हत्या के आरोपी ही संधि के तहत पकड़े गए हैं : विभिन्न देशों से संधि के तहत जो आरोपी भारत के हाथ लगे हैं, उनमें से ज्यादातर हत्या के मामलों में लिप्त हैं। इसके बाद दूसरी बड़ी संख्या आतंक फैलने व बम धमाकों में शामिल लोगों की है। इसके आलावा 8 ऐसे हैं जो आर्थिक अनियमितता के बाद विदेश भाग गए थे। इस सूची में तीन-तीन आरोपी बच्चों के यौन शोषण व देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के हैं।  ये धाराएं साबित हो रहीं 'भगोड़ों' की मददगार अमर उजाला ग्राफिक्स अमर उजाला ग्राफिक्स यूरोपियन कन्वेंशन ऑफ ह्यूमन राइट्स की धारा-8 : कई बार आरोपी यह तर्क भी देता है कि देश वापस भेजने पर उनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा सकता है। कुछ गंभीर मामलों के आरोपी तो भारत में सजाए मौत के कानून का भी हवाला देते हैं। तब यूरोपियन कन्वेंशन ऑफ ह्यूमन राइट्स की धारा-8 उसकी मदद करती है। यूरोपीय देशों के बीच 1950 में हुई संधि की यह धारा व्यक्ति को निजी व पारिवारिक जीवन में सम्मान का अधिकार देती है। इसी बहाने ब्रिटेन ने कई बार प्रत्यर्पण का हमारा अनुरोध अस्वीकार किया है।  भारत-ब्रिटेन प्रत्यर्पण संधि की धारा-9 : ब्रिटेन जाकर शरण लेने वालों की तरफ से हमेशा तर्क दिया जाता है कि भारत सरकार और जांच एजेंसियां उनके प्रति दुर्भावनापूर्वक काम कर रही हैं। इस बहाने उन्हें प्रत्यर्पण संधि की धारा-9 का फायदा मिलता है। इसके तहत भारत सरकार को यह साबित करना होता है कि आरोपी को परेशान करने के लिए नहीं, बल्कि कानून के तहत मांगा जा रहा है। ऐसे में सरकार को ब्रिटेन में अदालती प्रक्रिया से गुजरना होता है। यह प्रकिया निचली से शुरू होकर ऊपरी कोर्ट तक जा सकती है और वर्षों बीत जाते हैं।  इन देशों के साथ संधि : भारत की फिलहाल 42 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। इनमें सबसे पुरानी बेल्जियम के साथ है, जो 1958 में हुई थी। इसके बाद से 2011 तक हम कुल 31 देशों के साथ संधियां कर चुके थे। वहीं पिछले पांच साल में 11 और देश इस सूची में शामिल हो चुके हैं। इनके अलावा 9 देश ऐसे भी हैं, जिनके साथ हमने संधि तो नहीं की, लेकिन प्रत्यर्पण के लिए समझौता किया है। इनमें फिजी, इटली, पापुआ न्यू गिनी, पेरू, सिंगापुर, श्रीलंका, स्वीडन, तंजानिया व थाईलैंड शामिल हैं।  1. ऑस्ट्रेलिया 2011 2. बहरीन 2005 3. बांग्लादेश 2013 4. बेलारूस 2008 5. बेल्जियम 1958 6. भूटान 1997 7. ब्राजील - 8. बुल्गारिया 2006 9. कैनेडा 1987 10 चिली - 11. मिस्र 2012 12. फ्रांस 2005 13. जर्मनी 2004 14. हांगकांग 1997 15. इंडोनेशिया - 16. कुवैत 2007 17. मलेशिया 2011 18. मॉरिशस 2008 19. मेक्सिको 2009 20. मंगोलिया 2004 21. नेपाल 1963 22. नीदरलैंड 1989 23. ओमान 2005 24. फिलीपींस - 25 पोलैंड 2005 26. पुर्तगाल 2008 27. कोरिया 2004 28. रूस 2000 29. सऊदी अरब 2012 30 द.अफ्रीका 2005 31. स्पेन 2003 32. स्विट्जरलैंड 1996 33. तजाकिस्तान 2009 34. थाईलैंड - 35. ट्यूनीशिया 2004 36. तुर्की 2003 37. यूएई 2000 38. ब्रिटेन 1993 39. यूक्रेन 2006 40. अमेरिका 1999 41. उज्बेकिस्तान 2000 42. वियतनाम 2013 (जानकारी सीबीआई की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार)  किस देश ने कितने आरोपी लौटाए  14 साल में 19 देशों ने भारत को 60 आरोपी लौटाए हैं, इनमें से 52 भारतीय हैं, जबकि तीन ब्रिटिश और एक अमेरिकी है। इनमें से सबसे ज्यादा आरोपी यूएई ने लौटाए हैं। यूएई से 17 आरोपी लौटाए हैं जबकि अमेरिका ने 11, सऊदी अरब ने 5, कनाडा ने 4, थाईलैंड ने 4, जर्मनी ने 3, बेल्जियम ने 2, मॉरिशस ने 2, पुर्तगाल ने 2 आरोपी ही लौटाए हैं। 10 आरोपी अातंक फैलाने व बम धमाकों के हैं। 13 हत्या के आरोपी 14 साल में प्रत्यर्पित हुए हैं।  आरोपों पर यह है माल्या का स्टैंड?  माल्या बैंकों के साथ वन-टाइम सेटलमेंट करना चाहते हैं। उन्होंने मार्च में ट्विट कर समझौते की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि पब्लिक सेक्टर बैंकों में वन-टाइम सेटलमेंट की पॉलिसी होती है। सैकड़ों कर्जदारों ने इस तरह अपना मामला निपटाया है, तो मेरे मामले में इस तरह से केस सुलझाने से इनकार क्यों किया जा रहा है? मैंने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऑफर रखा था, लेकिन बैंकों ने बिना कोई विचार किए ही उसे नकार दिया। मैं पूरी साफगोई से सेटलमेंट करने को तैयार हूं।

पिछली सुनवाई में भारत से केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय की चार सदस्यीय टीम भी अदालत में पहुंची थी। वहीं आपको बता दें कि मुंबई के बाद दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने भी विजय माल्या को भगोड़ा अपराधी घोषित किया है। हालांकि ब्रिटेन की पीएम थेरेसा मे की भारत यात्रा के दौरान भारत ने ब्रिटेन को 57 भगोड़े की लिस्ट सौंपी थी। ब्रिटेन ने भी ऐसे 17 भगोड़ों की लिस्ट दी थी, जो ब्रिटेन की अदालत में दोषी हैं। दोनों मुल्कों के बीच प्रत्यर्पण की संधि 1993 में हो गई थी पर समझौते के इतने दिनों बाद भी ब्रिटेन ने किसी भी भगोड़े को भारत को नहीं सौंपा है। इसके उलट भारत अब तक दो लोगों को ब्रिटेन को सौंप चुका है।

देश के कई बैंकों से 9000 करोड़ का कर्ज लेकर विदेश भाग चुके शराब करोबारी विजय माल्या को भारत वापस लाने के लिए मोदी सरकार ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार ब्रिटेन के साथ दो दशक पुरानी उस संधि को समाप्त करने पर भी विचार कर रही है जो विजय माल्या के प्रत्यर्पण में रोड़ा बनी हुई है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) चाहता है कि केंद्र सरकार 1995 में की गई भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) को लागू करे, इस तरह की संधि का उपयोग आपराधिक गतिविधियों से निपटने के लिए जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिए किया जाता है। विदेश मंत्रालय इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों की सलाह ले रहा है कि क्या यूके की मदद से इस संधि को रद्द किया जा सकता है या नहीं।

हालांकि माल्या को भारत भेजने में ब्रिटिश सरकार लगातार टालमटोल कर रही है। वहीं पीएनबी घोटाले में करोड़ों रुपए का चूना लगाकर एंटीगुआ की नागरिकता लेने वाले मेहुल चौकसी के प्रत्यर्पण के लिए वहां की सरकार ने सकारात्मक संकेत दिए हैं। कहा जा रहा है कि वे प्रत्यर्पण की भारत की सही अपील पर विचार कर सकता है। हालांकि इसके उलट विवादित इस्लामिक प्रचारक जाकिर नाईक पर मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि वे भारत को उनका प्रत्यर्पण नहीं करेंगे। इधर जांच एजेंसियों ने सरकार के सामने ललित मोदी के भी प्रत्यर्पण की मांग रख दी है। हालांकि अब तक सरकार के प्रयासों पर प्रत्यर्पण का इतिहास भारी नजर आ रहा है।

आर्थिक अपराध को अंजाम देने के बाद देश छोड़कर भागने वाले अपराधियों को रोकने के लिए संसद ने 27 जुलाई को एक बिल पास किया था। इस बिल पर बोलते हुए वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा था कि हमारी सरकार विश्व के सारे देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि को लेकर सहयोग की ओर अग्रसर है। उन्होंने कहा कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए हमारी 48 देशों के साथ पहले से ही प्रत्यर्पण संधि है लेकिन दुनिया के अन्य देशों के साथ ही इस प्रकार की संधि करने के लिए सरकार अग्रसर है। पीयूष गोयल ने कहा कि केंद्र सरकार इस प्रयास में लगी हुई है कि जो आर्थिक अपराधी देश छोड़कर विदेश में है उसका किसी प्रकार जल्द प्रत्यर्पण किया जा सके।

ब्रिटेन के पास भारत के 131 आरोपियों की सूची

भारत और ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी। तब से अब तक ब्रिटेन की तरफ से एक भी आरोपी देश को नहीं सौंपा गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत के 131 वांछित लोगों की सूची ब्रिटेन के पास है। पिछले कुछ वर्षों में तो ब्रिटेन की ओर से कई गंभीर मामलों के आरोपियों की प्रत्यर्पण याचिका नामंजूर कर दी गई है।

इनमें नौसेना वॉर रूम से सूचनाएं लीक करने का आरोपी रवि शंकरन, 1993 में गुजरात में हुए दो बम धमाकों का आरोपी टाइगर हनीफ, गुलशन कुमार की हत्या का आरोपी म्यूजिक डायरेक्टर नदीम शरीफ शामिल हैं। साथ में भ्रष्टाचार के आरोपी आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी को भी भारत लाने के सरकार के प्रयासों को सफलता नहीं मिली।

हालांकि भारत की जिन 42 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है, वहां से पिछले 14 साल में सिर्फ 60 ही आरोपी हमारी जांच एजेंसियों को सौंपे गए हैं। इतना ही नहीं, ब्रिटेन ने तो 1993 में करार के बाद से अब तक कोई हाई-प्रोफाइल आरोपी भारत को नहीं सौंपा।

इस तरह होती है दो देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि : प्रत्यर्पण असल में किसी देश द्वारा आरोपी या अपराधी का दूसरे देश के सामने समर्पण है। यह काम दो देशों के बीच संधि के माध्यम से होता है। जब विदेश मंत्रालय के पास जांच एजेंसियां किसी आरोपी के प्रत्यर्पण की मांग भेजती हैं तो मंत्रालय उस देश के विदेश मंत्रालय के सामने मांग रखता है, जहां आरोपी या अपराधी रह रहा है। इस मांग के साथ आरोपी से जुड़ी सारी जानकारी भी भेजी जाती है। अगर आरोपी एक से ज्यादा हैं तो हर एक के लिए अलग रिक्वेस्ट भेजी जाती है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये परिस्थितियां हैं मान्य : आमतौर पर आरोपियों के प्रत्यर्पण में इस बात का ध्यान दिया जाता है कि उस पर लगे आरोपों के तहत दोनों ही देशों में सजा का प्रावधान हो। जिस देश में आरोपी ने शरण ले रखी है, अगर वहां सजा का प्रावधान नहीं है तो संबंधित देश आरोपी को सौंपने से इनकार कर सकता है। यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में राजनीतिक कारणों से आरोपी बनाए गए शख्स का प्रत्यर्पण नहीं होता।

ज्यादातर हत्या के आरोपी ही संधि के तहत पकड़े गए हैं : विभिन्न देशों से संधि के तहत जो आरोपी भारत के हाथ लगे हैं, उनमें से ज्यादातर हत्या के मामलों में लिप्त हैं। इसके बाद दूसरी बड़ी संख्या आतंक फैलने व बम धमाकों में शामिल लोगों की है। इसके आलावा 8 ऐसे हैं जो आर्थिक अनियमितता के बाद विदेश भाग गए थे। इस सूची में तीन-तीन आरोपी बच्चों के यौन शोषण व देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के हैं।

ये धाराएं साबित हो रहीं ‘भगोड़ों’ की मददगार

यूरोपियन कन्वेंशन ऑफ ह्यूमन राइट्स की धारा-8 : कई बार आरोपी यह तर्क भी देता है कि देश वापस भेजने पर उनसे मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा सकता है। कुछ गंभीर मामलों के आरोपी तो भारत में सजाए मौत के कानून का भी हवाला देते हैं। तब यूरोपियन कन्वेंशन ऑफ ह्यूमन राइट्स की धारा-8 उसकी मदद करती है। यूरोपीय देशों के बीच 1950 में हुई संधि की यह धारा व्यक्ति को निजी व पारिवारिक जीवन में सम्मान का अधिकार देती है। इसी बहाने ब्रिटेन ने कई बार प्रत्यर्पण का हमारा अनुरोध अस्वीकार किया है।

भारत-ब्रिटेन प्रत्यर्पण संधि की धारा-9 : ब्रिटेन जाकर शरण लेने वालों की तरफ से हमेशा तर्क दिया जाता है कि भारत सरकार और जांच एजेंसियां उनके प्रति दुर्भावनापूर्वक काम कर रही हैं। इस बहाने उन्हें प्रत्यर्पण संधि की धारा-9 का फायदा मिलता है। इसके तहत भारत सरकार को यह साबित करना होता है कि आरोपी को परेशान करने के लिए नहीं, बल्कि कानून के तहत मांगा जा रहा है। ऐसे में सरकार को ब्रिटेन में अदालती प्रक्रिया से गुजरना होता है। यह प्रकिया निचली से शुरू होकर ऊपरी कोर्ट तक जा सकती है और वर्षों बीत जाते हैं।

इन देशों के साथ संधि : भारत की फिलहाल 42 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि है। इनमें सबसे पुरानी बेल्जियम के साथ है, जो 1958 में हुई थी। इसके बाद से 2011 तक हम कुल 31 देशों के साथ संधियां कर चुके थे। वहीं पिछले पांच साल में 11 और देश इस सूची में शामिल हो चुके हैं। इनके अलावा 9 देश ऐसे भी हैं, जिनके साथ हमने संधि तो नहीं की, लेकिन प्रत्यर्पण के लिए समझौता किया है। इनमें फिजी, इटली, पापुआ न्यू गिनी, पेरू, सिंगापुर, श्रीलंका, स्वीडन, तंजानिया व थाईलैंड शामिल हैं।

1. ऑस्ट्रेलिया 2011
2. बहरीन 2005
3. बांग्लादेश 2013
4. बेलारूस 2008
5. बेल्जियम 1958
6. भूटान 1997
7. ब्राजील –
8. बुल्गारिया 2006
9. कैनेडा 1987
10 चिली –
11. मिस्र 2012
12. फ्रांस 2005
13. जर्मनी 2004
14. हांगकांग 1997
15. इंडोनेशिया –
16. कुवैत 2007
17. मलेशिया 2011
18. मॉरिशस 2008
19. मेक्सिको 2009
20. मंगोलिया 2004
21. नेपाल 1963
22. नीदरलैंड 1989
23. ओमान 2005
24. फिलीपींस –
25 पोलैंड 2005
26. पुर्तगाल 2008
27. कोरिया 2004
28. रूस 2000
29. सऊदी अरब 2012
30 द.अफ्रीका 2005
31. स्पेन 2003
32. स्विट्जरलैंड 1996
33. तजाकिस्तान 2009
34. थाईलैंड –
35. ट्यूनीशिया 2004
36. तुर्की 2003
37. यूएई 2000
38. ब्रिटेन 1993
39. यूक्रेन 2006
40. अमेरिका 1999
41. उज्बेकिस्तान 2000
42. वियतनाम 2013
(जानकारी सीबीआई की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार)

किस देश ने कितने आरोपी लौटाए

14 साल में 19 देशों ने भारत को 60 आरोपी लौटाए हैं, इनमें से 52 भारतीय हैं, जबकि तीन ब्रिटिश और एक अमेरिकी है। इनमें से सबसे ज्यादा आरोपी यूएई ने लौटाए हैं। यूएई से 17 आरोपी लौटाए हैं जबकि अमेरिका ने 11, सऊदी अरब ने 5, कनाडा ने 4, थाईलैंड ने 4, जर्मनी ने 3, बेल्जियम ने 2, मॉरिशस ने 2, पुर्तगाल ने 2 आरोपी ही लौटाए हैं। 10 आरोपी अातंक फैलाने व बम धमाकों के हैं। 13 हत्या के आरोपी 14 साल में प्रत्यर्पित हुए हैं।

आरोपों पर यह है माल्या का स्टैंड?

माल्या बैंकों के साथ वन-टाइम सेटलमेंट करना चाहते हैं। उन्होंने मार्च में ट्विट कर समझौते की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि पब्लिक सेक्टर बैंकों में वन-टाइम सेटलमेंट की पॉलिसी होती है। सैकड़ों कर्जदारों ने इस तरह अपना मामला निपटाया है, तो मेरे मामले में इस तरह से केस सुलझाने से इनकार क्यों किया जा रहा है? मैंने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक ऑफर रखा था, लेकिन बैंकों ने बिना कोई विचार किए ही उसे नकार दिया। मैं पूरी साफगोई से सेटलमेंट करने को तैयार हूं।

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