बड़ा खुलासा: बैंक दे रहे एजेंसियों को ग्राहकों की डिटेल
अकसर देखा गया है कि CIBIL जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर बैंक ग्राहकों को कर्ज या क्रेडिट कार्ड देने का फैसला करते हैं. दरअसल, बैंकों को क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के जरिए ग्राहकों की वित्तीय लेनदेन जानकारी आसानी से मिल जाती है. लेकिन अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.
अभिजीत मिश्रा नाम के एक शख्स ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका में कहा गया है कि बैंक सिबिल जैसी एजेंसियों द्वारा दी गई रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला करते हैं कि क्या संबंधित ग्राहक को कर्ज दिया जाए या क्रेडिट कार्ड जारी किया जाए. इसी के आधार पर बैंकों द्वारा ब्याज दर भी तय की जाती है. याचिकाकर्ता के मुताबिक बैंकों द्वारा ग्राहकों के पैन और वित्तीय लेनदेन के आंकड़ों को उनकी बिना सहमति के साझा किया जा रहा है जिस पर रोक लगाई जाए. यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
किस आधार पर की जा रही मांग
अधिवक्ता पायल बहल के माध्यम से जारी याचिका में मिश्रा ने तर्क देते हुए कहा है कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने ग्राहक के पैन या अन्य वित्तीय लेनदेन को बैंकों द्वारा किसी निजी या गैर सरकारी इकाई को साझा करने के बारे में कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं की है. आयकर कानून, 1961 में भी नागरिकों के पैन आंकड़े को सिबिल जैसी एजेंसियों को साझा करने की अनुमति नहीं है. ऐसे में किस आधार पर बैंकों द्वारा जानकारियां साझा की जा रही हैं. बहरहाल, मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वी के राव की पीठ ने वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक को नोटिस भेजकर इस पर उनका रुख बताने को कहा है.