अद्धयात्म

भगवान महावीर से जुड़े कुछ चमत्कार

सत्य और अहिंसा की जब भी बात होती है तो हमारे जहन में सबसे पहले महात्मा गांधी का नाम आता है लेकिन महात्मा गांधी से भी पहले एक ऐसी महान आत्मा ने इस जगत का अपने संदेशों के जरिये मार्गदर्शन किया था. जिन्होंनें सबसे पहले अहिंसा का मार्ग अपनाने के लिये लोगों को प्रेरित किया. जिन्होंनें लोगों को जियो और जीने दो का मूल मंत्र दिया. ये महान आत्मा कोई और नहीं बल्कि जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर जिन्हें जैन धर्मावलंबी भगवान का दर्जा देते हैं भगवान महावीर थे. महवीर को ऐसे ही भगवान की संज्ञा नहीं दी जाती उन्होंने अपने जीवनकाल में कई अद्भुत चमत्कार किये थे जो कि एक सामान्य इंसान कभी नहीं कर सकता.भगवान महावीर से जुड़े कुछ चमत्कार

एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जब वे बालक थे तो सुमेरु पर्वत पर इंद्र देवता उनका जलाभिषेक कर रहे थे लेकिन वे घबरा गये कि कहीं बालक बह न जाये इसलिये उन्होंनें जलाभिषेक रुकवा दिया. कहा जाता है कि भगवान महावीर ने इंद्र के मन के भय को भांप लिया और अंगूठे से पर्वत को दबाया तो पर्वत कांपने लगा. यह सब देखकर देवराज इंद्र ने जलाभिषेक तो किया ही साथी उन्हें वीर के नाम से भी संबोधित किया.

बाल्यकाल के ही एक और चमत्कार को बताया जाता है कि एक बार वे महल के आंगन में खेल रहे थे तो संजय और विजय नामक मुनि सत्य और असत्य का भेद नहीं समझ पा रहे थे. इसी रहस्य को जानने के लिये दोनों आसमान में उड़ते हुए जा रहे थे कि उनकी नजर दिव्यशक्तियों से युक्त महल के आंगन में खेल रहे बालक पर पड़ी. उन्होंने जैसे ही बालक के दर्शन किये उनकी तमाम शंकाओं का समाधान हुआ. दोनों मुनियों ने उन्हें सन्मति नाम से पुकारा.

एक और वाक्या अक्सर उनके पराक्रम की गाथा कहता है एक बार वे बचपन में अपने कुछ साथियों के साथ खेल रहे थे एक बड़ा ही भयानक फनधारी सांप वहां दिखाई दिया, उस मौत को अपने सर पर खड़ा देखकर सभी भय से कांपने लगे, जिन्हें मौका मिला वे भाग खड़े हुए लेकिन वर्धमान महावीर अपनी जगह से एक इंच नहीं हिले, न ही उनके मन में किसी तरह को कोई भय था. जैसे ही सांप उनकी तरफ बढा तो वे तुरंत उछल कर सांप के फन पर जा बैठे. उनके भार से सांप को अपनी जान के लाले पड़ गये तभी एक चमत्कार हुआ और सांप ने सुंदर देव का रुप धारण कर लिया और माफी मांगते हुए कहा कि, ‘प्रभु मैं आपके पराक्रम को सुनकर ही आपकी परीक्षा लेने पंहुचा था मुझे माफ करें. आप वीर नहीं बल्कि वीरों के वीर अतिवीर हैं’.

इन्हीं कारणों से माना जाता है कि वर्धमान महावीर के वीर, सन्मति, अतिवीर आदि नाम भी लिये जाते हैं.

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