भवन में खिड़कियों की संख्या सम हो विषम नहीं
शास्त्रों में खिड़कियों को भवन की आंख माना जाता है। प्राकृतिक प्रकाश, वायु व आकाश तत्त्व का उस घर के आंतरिक भाग से संपर्क खिड़कियों व रोशनदानों के माध्यम से बनता है। अत: खिड़कियों का सौन्दर्य और जैविक उपयोगिता का खासा महत्त्व है।
पश्चिम व दक्षिण में यथासंभव खिड़कियां व द्वार नहीं होने चाहिए। इन दिशाओं में रोशनदान की व्यवस्था की जा सकती है।
यदि खिड़कियां रखना आवश्यक हो तो इन दोनों दिशाओं में छोटी व कम खिड़कियां होनी चाहिए। पश्चिम में खिड़की को पूरी पश्चिमी दीवार छोड़कर वायव्य कोण में रखा जाना चाहिए।
दक्षिण दिशा की दीवार में आग्नेय कोण में खिड़की रखना ज्यादा शुभफलदायी होता है। इससे सूर्य की सायंकालीन हानिकारक रश्मियों का प्रवेश भवन में नहीं हो पाता।
भवन में खिड़कियों की स्थिति इस प्रकार होनी चाहिए जिनसे ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन भवन में आ सके। इसके लिए यथासंभव पूर्व व उत्तर दिशा की खिड़कियों के बाहर की तरफ छोटे पौधे लगाएं, जबकि पश्चिम व दक्षिण की खिड़कियों के बाहर बड़े पेड़ लगाएं।
एक कक्ष में खिड़कियों की संख्या दो से अधिक संख्या नहीं होनी चाहिए। भवन में खिड़कियों की संख्या सम हो विषम नहीं।