भारतीय संस्कृति के आदर्श ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम्’’ के विचार में है विश्व की समस्याओं का समाधान
लखनऊ : भारत सांस्कृतिक विविधता के कारण एक लघु विश्व का स्वरूप धारण किये हुए हैं। भारत की सांस्कृतिक विविधता ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देती है अर्थात सारी वसुधा एक विश्व परिवार है। भारत की महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने लोक कल्याण की भावना से होलकर साम्राज्य का संचालन हृदय की विशालता, असीम उदारता तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया। 70 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई की महान आत्मा 13 अगस्त 1795 को नश्वर देह से निकलकर अखिल विश्वात्मा में विलीन हो गयी। भारत सरकार से मेरी अपील है कि वह लोकमाता अहिल्याबाई की जयन्ती 31 मई को राष्ट्रीय स्तर पर ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ दिवस के रूप में मनाने के लिए प्रस्ताव पारित करें।
वह भारत की ऐसी प्रथम नारी शासिका थी जिन्होंने अपनी प्रजा को अपनी संतानों की तरह लोकमाता के रूप में संरक्षण दिया। साथ ही अत्यन्त ही लोक कल्याणकारी कानून बनाये जिसमें सभी का हित सुरक्षित था। पड़ोसी राजाओं के साथ उन्होेंने मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किये। वे युद्ध के पक्ष में कभी भी नहीं रही, वरन् वे कानून आधारित न्यायपूर्ण राज संचालन पर विश्वास करती थी। आज भी महारानी के सम्बोधन की बजाय वह देश में लोकमाता या देवी के रूप में सबके हृदय में श्रद्धापूर्वक वास करती हैं। उन्होंने एक महारानी होते हुए भी एक सादगीपूर्ण, शुद्ध, दयालु तथा ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय जीवन पर्यन्त धारण किये रहने की मिसाल प्रस्तुत की।
वसुधैव कुटुम्बकम् भारतीय संस्कृति का आदर्श तथा सर्वमान्य विचारधारा है। जो महा उपनिषद सहित कई ग्रन्थों में लिपिबद्ध है। चारों वेदों का एक लाइन में सार है – उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। उदार चरित्र वाले लोगों के लिए यह सम्पूर्ण धरती ही परिवार है। यह वाक्य विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक तथा युवा भारत की संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। भारतीय संविधान में निहित वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को सारे संसार में फैलाना है।
अब आगे भारत के प्रत्येक नागरिक को वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था (विश्व संसद) का गठन करने का लक्ष्य बनाना चाहिए। वर्तमान में विश्व का संचालन पांच वीटो पाॅवर सम्पन्न शक्तिशाली देश अपनी मर्जी से कर रहे हैं। विश्व को अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, वीटो पाॅवर रहित, परमाणु शस्त्रों की होड़ से मुक्त तथा युद्ध रहित बनाने का संकल्प भी हमें आज के महान दिवस पर लेना है। यह चिन्ता का विषय है कि आम आदमी की प्रसन्नता की रैंकिंग में भारत विश्व में 113वें स्थान पर है जबकि भूखों की सूचकांक में भारत का दर्जा विश्व में 119वां है। ‘ग्लोबल विलेज’ के रूप में विकसित 21वीं सदी के विश्व समाज में भी अहिल्या बाई के लोक कल्याणी विचार आज भी पूरी तरह सारगर्भित तथा युगानुकूल हैं।
भारतीय संसद भवन परिसर विश्व के सबसे बड़े हमारे संसदीय लोकतंत्र के प्रादुर्भाव का साक्षी रहा है। संसद भवन परिसर में हमारे इतिहास की उन विभूतियों की प्रतिमाएं और मूर्तियां स्थापित की गयी हैं जिन्होंने राष्ट्र हित तथा लोक कल्याण के लिए महान योगदान दिया है। संसद की गैलरी में लगी लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर की दिव्य मूर्ति भी उनमें से एक है। देवी अहिल्या बाई होल्कर की प्रतिमा का अनावरण भारत के तत्कालीन उप-राष्ट्रपति तथा राज्य सभा के सभापति श्री भैरों सिंह शेखावत द्वारा 24 अगस्त 2006 को किया गया था। यह प्रतिमा श्री अहिल्यात्सव समिति, इन्दौर द्वारा भेंट की गयी थी। भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी करके देश वासियों की ओर से सम्मान प्रगट किया है। देश के कई नगरों के प्रमुख स्थलों पर इनकी मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। देश में कई सामाजिक तथा शैक्षिक संस्थायें अहिल्या बाई होल्कर के लोक कल्याणकारी विचारों को जन-जन में फैलाने के लिए उनके नाम से संचालित हैं। केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा इनके नाम से कई लोक कल्याणकारी योजनायें चलायी गयी हैं।
संसद की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर के जीवन पर आधारित नाटक ‘मातोश्री’ पुस्तक का विमोचन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने संसद परिसर स्थित प्रेक्षागृह में 11 अप्रैल 2017 में किया था। विमोचन के बाद श्री मोदी, श्री आडवानी व अन्य सांसदों ने इस प्रेरणादायी नाटक को देखा और सराहा। प्रधानमंत्री जी ने उनके प्रति अपना सम्मान तथा श्रद्धा 130 करोड़ देशवासियों की ओर से प्रगट की थी। लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती महाजन अहिल्याबाई को अपना आदर्श मानती हैं और उनके जीवन पर आधारित कई नाटकों में खुद श्रीमती महाजन ने हिस्सा भी लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावोस (स्विट्जरलैण्ड) में 23 जनवरी 2018 को आयोजित विश्व आर्थिक मंच को संबोधित करते हुए कहा कि हम वसुधैव कुटुम्बकम् के प्राचीन दार्शनिक सिद्धांत पर यकीन रखते हंै। उन्होंने वैश्विक स्तर पर एकता के मूल्यों को बनाए रखने पर जोर दिया। विश्व आर्थिक मंच सम्मेलन के पूर्ण सत्र में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने सम्मेलन की थीम ‘एक विभाजित विश्व में साझे भविष्य का सृजन’ के बारे में विचार व्यक्त किए। प्रधानमंत्री ने कहा कि मौजूदा समय में शांति, स्थायित्व और सुरक्षा खतरे में है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ को अपनी विदेश नीति का मूल आधार बनाया है। उनकी इस नीति को वैश्विक मान्यता मिल रही है और पूरी दुनिया इस अवधारणा को अपनाने की राह पर अग्रसर है। भारत के गौरव को बढ़ाने वाली इस महान नारी लोकमाता अहिल्या बाई का जन्म 31 मई, 1725 को औरंगाबाद जिले के चैड़ी गांव (महाराष्ट्र) में एक साधारण परिवार में हुआ था। अहिल्या बाई के जीवन को महानता के शिखर पर पहुॅचाने में उनके ससुर महान यौद्धा मल्हार राव होलकर की मुख्य भूमिका रही है। इन्दौर जिले के आसपास के एक बड़े मालवा क्षेत्र में होल्कर साम्राज्य की स्थापना श्रीमंत मल्हार राव होल्कर ने अपने पराक्रम से की थी। मल्हार राव विशेष रूप से मध्य भारत में मालवा के पहले मराठा सुबेदार होने के लिए जाने जाते थे। महान यौद्धा मल्हार राव का जन्म 16 मार्च 1693 में तथा मृत्यु 20 मई 1766 में हुई। उनकी जीवन यात्रा एक भेड़ पालक चारवाहे के रूप में शुरू होकर एक महान यौद्धा के शिखर तक पहुंची।
अट्ठारहवीं सदी के मध्य में मल्हारराव होल्कर ने पेशवा बाजीराव प्रथम की ओर से अनेक लड़ाइयाँ जीती थीं। मालवा पर पूर्ण नियंत्रण ग्रहण करने के पश्चात, 18 मई 1724 को इंदौर मराठा साम्राज्य में सम्मिलित हो गया था। 1733 में बाजीराव पेशवा ने इन्दौर को मल्हारराव होल्कर को पुरस्कार के रूप में दिया था। मल्हारराव ने मालवा के दक्षिण-पश्चिम भाग में अधिपत्य कर होल्कर राजवंश की नींव रखी और इन्दौर को अपनी राजधानी बनाया।
वर्तमान में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ में 100 भारतीय शहरों को चयनित किया गया है। स्मार्ट सिटी मिशन के पहले चरण के अंतर्गत 20 शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित किया जा रहा है जिसमें इंदौर भी इस प्रथम चरण का हिस्सा है। 2017 के स्वच्छता सर्वेक्षण से लगातार तीन बार के परिणामों में इन्दौर भारत का सबसे स्वच्छ नगर रहा है। हम इसका श्रेय मातु अहिल्याबाई द्वारा अपनी प्रजा को दिये गये उच्च संस्कारों को देना चाहेंगे, जिसमें से अधिकांश वर्तमान में इंदौर में निवास करने वाली जनता के पूर्वज थे।
एक दिन महान यौद्धा मल्हार राव होलकर चैड़ी गांव से होकर अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ जा रहे थे। रास्ते में पड़ने वाले शिव मंदिर में विश्राम करने के लिए रूके, वहां उस मंदिर में अहिल्या बाई की सादगी, विनम्रता और भक्ति का भाव देखकर वह काफी प्रभावित हुए। अहिल्या बाई मंदिर में जाकर प्रतिदिन पूजा करती थी। मल्हार राव ने उसी समय उन्हें पुत्र वधु बनाने का निर्णय लिया और सन् 1735 में उनका विवाह खण्डेराव होलकर के साथ सम्पन्न हो गया।
सन् 1745 में पुत्र मालेराव एवं 1748 में पुत्री मुक्ताबाई का जन्म हुआ। मल्हार राव होलकर अपनी पुत्र वधु को अपनी बेटी की तरह ही मानते थे और उन्हें सैनिक शिक्षा, राजनैतिक, भौगोलिक तथा सामाजिक कार्यो में साथ रखते तथा सहयोग भी करते थे। इसी प्रकार कुशल जीवन व्यतीत हो रहा था कि अचानक 1754 में युद्ध भूमि में खण्डेराव होलकर वीर गति को प्राप्त हुए। अहिल्या बाई उस युग की परम्परा के अनुसार सती होने जा रही थी। इस पर मल्हार राव होलकर ने अपनी पुत्र वधू से अनुरोध किया कि होल्कर साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए सती न हो।
लोकहित को ध्यान में रखकर उन्होंने सती न होकर राज्य के सामाजिक कार्यो में रूचि लेने का निर्णय लिया और सादगीपूर्ण ढंग से होल्कर वंश की सेवा का संकल्प कर 23 अगस्त, 1766 में अपने पुत्र मालेराव का राजतिलक कर दिया। 22 वर्ष की अल्प आयु में ही मालेराव का बीमारी के कारण निधन हो गया। उन्होंने मात्र 10 माह शासन किया अपने पति व पुत्र की मृत्यु को सहते हुए वह प्रजा की सेवा में जीवन पर्यन्त लगी रही।
मल्हारराव होल्कर के जीवन काल में ही उनके पुत्र खंडेराव का निधन 1754 में हो गया था। इसके बाद वयोवद्ध मल्हार राव का निधन 20 मई 1766 में होने के बाद अहिल्याबाई ने (शासन 1767 से 1795 तक) 28 वर्षों तक राज्य का शासन बड़ी कुशलता से सम्भाला। महल के विलास से दूर रहकर महल के बाहर साधारण ढंग से झोपड़ी में रहकर राज्य का संचालन किया। मातु अहिल्या बाई होल्कर आध्यात्मिक नारी थी जिनके सद्प्रयासों से सम्पूर्ण देश के जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों, घाटों एवं धर्मशालाओं का सौन्दर्यीकरण एवं जीर्णोद्धार हुआ। लोकमाता देवी अहिल्या बाई ने देश भर में सबसे अधिक धार्मिक स्थलों का निर्माण करके अपने राज्य से बाहर देश के कोने-कोने में धर्म के माध्यम से वसुधैव कुटुम्बकम् का संदेश पहुंचाया। नारी शक्ति का प्रतीक महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा दिखाये मार्ग पर चलने के लिए विशेषकर महिलाओं को आगे आकर वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को सारे संसार में फैलाने में यथा शक्ति योगदान देना चाहिए।
इसके अतिरिक्त अन्य होलकर शासकों ने भी बहादुरी के साथ सराहनीय कार्य किये। मल्हार राव के दत्तक पुत्र महाराजा तुकोजी राव होलकर ने (शासन 1795 से 1797) सामाजिक सुधार के अनेक नियम बनायें। तुकोजी राव की मृत्यु के बाद उनके पुत्र महाराजा यशवंत राव होलकर (शासन 1797 से 1811 तक) भी साहसी और पराक्रमी थे। उन्होंने राजा रणजीत सिंह के साथ मिलकर 18 दिनों तक अंग्रेजों से युद्ध किया तथा अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। इनका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी हुकुमत की गुलामी से देश को मुक्ति दिलाना था। पवित्र गीता में श्रीकृष्ण अपने शिष्य अर्जुन से कहते है, हे अर्जुन! आत्मा को न शस्त्र भेद सकते हैं न अग्नि जला सकती है, न ही इसे वायु सुखा सकती है, न ही इसे दुःख-सुख, क्लेश आदि प्रभावित कर सकते हैं। अतः तू भली-भांति समझ ले कि आत्मा अजर अमर और अविनाशी है। लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर ने सदैव लोक कल्याण की भावना से अपने जीवन के एक-एक पल को एकमात्र अपनी आत्मा को विकसित करने के लिए लगाया। लोकमाता अहिल्या बाई होल्कर आज स्थूल देह रूप में हमारे बीच नहीं है किन्तु उनकी सूक्ष्म विश्वात्मा जाति, धर्म तथा राष्ट्र से ऊपर उठकर लोकमाता के रूप में भारत सहित प्रत्येक विश्ववासी को विश्व एकता, विश्व शान्ति तथा विश्व बन्धुत्व के मार्ग पर चलते हुए अब आगे सारी वसुधा को कुटुम्ब बनाने के लिए सदैव प्रेरित करती रहेगी। पृथ्वी एक देश है हम सभी इसके नागरिक हैं।
(31 मई को महारानी अहिल्या बाई होल्कर की जयन्ती के अवसर पर विशेष लेख)
(लखनऊ से प्रदीप कुमार सिंह)