भारतीय सेना इस जवान ने अकेले ही मा’र गिराई पाकिस्तानी फौज की पूरी बटालियन, फिर हो गए….
देश को सबसे अधिक सैनिक और शहीद देने का गौरव राजस्थान के शेखावाटी अंचल को प्राप्त है। अंचल के घर-घर में सैनिक और गांव-गांव में शहीद प्रतिमाएं इसबात की गवाह हैं। पाक ने जब-जब भी हिन्दुस्तान की सरजमीं की तरफ नापाक इरादों से आंखें उठाई है तब-तब शेखावाटी के बहादुर फौजी बेटों ने उसे मुंह तोड़ जवाब दिया है।
आइए आज एक ऐसे ही बहादुर फौजी के बारे में जानते हैं, जिनके नेतृत्व में महज दो घंटे में ही पाकिस्तान के 15 सैनिकों को मार गिराया गया और घुसपैठियों को भाग खड़ा होने पर मजबूर कर डाला।इस बहादुर फौजी बेटे का नाम है सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी। करगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय) में 30 मई 1999 को शहीद होने वाले हरफूल सिंह राजस्थान के झुंझुनूं जिले के गांव तिलोका का बास के रहने वाले थे। इस मौके पर जानिए शहीद सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी की बहादुरी की कहानी।
करगिल युद्ध 1999 में भारतीय सेना ने घुसपैठियों को खदेडऩे और पाक को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए जम्मू कश्मीर में ऑपरेशन विजय शुरू कर रखा था। युद्ध में सेना की अन्य बटालियनों के साथ सूबेदार हरफूल की 17 जाट रेजिमेंट भी आपरेशन विजय में सम्मिलित थी। इसे द्रास सेक्टर में घुसपैठियों को खदेडऩे का जिम्मा दिया था। उच्च अधिकारियों के आदेश पर 29 मई 1999 को सूबेदार हरफूल 17 जाट रेजिमेंट की टुकड़ी के 38 सैनिकों का नेतृत्व करते हुए मश्कोह घाटी के प्वाइंट 4590 चोटी पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़े।
टुकड़ी की 2 घंटे तक पाकिस्तानी सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई, जिसमें 15 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। भारतीय सेना का बिना किसी नुकसान के चोटी पर नियंत्रण हो गया।योजना के अनुसार सूबेदार हरफूल सिंह और उनकी टुकड़ी ने शत्रु की दूसरी चौकी की ओर बढऩा आरम्भ किया। रात के अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सुबह लगभग 4 बजे उन्हें पता चला कि वे शत्रु के काफी निकट पहुंच गए हैं। जब वे शत्रु की बंकर से 100 मीटर की दूरी पर थे। शत्रु ने घात लगाकर अचानक अंधा-धूंध फा’यरिंग शुरू कर दी।गोलियों की गडगड़़ाहट के बीच हरफूल सिंह की टुकड़ी शत्रुओं पर टूट पडी। कई दुश्मन ढेर हो गए। इसी बीच हरफूल सिंह के एक साथी को एक गोली लगी और वह शहीद हो गया। इस हमले में एक गोली हरफूल सिंह के बाह में भी लगी पर इसकी परवाह नहीं की। अपने साथी रणवीर सिंह को हताहत होते देख हरफूल सिंह शत्रु पर कहर बनकर टूट पड़े।
देखते ही देखते उन्होंने शत्रु के दो बंकर उड़ा दिए। अपने साथियों के साथ उन्होंने 22 शत्रु सैनिकों को मौ’त के घाट उतार दिया। इसी बीच भारतीय टुकड़ी की युद्ध सामग्री समाप्त हो गई। पीछे से अन्य साथी सामग्री लेकर नहीं पहुंचने से हरफूल सिंह शत्रुओं से घिर गए। दो गोलियां उनके माथे पर लगीं और तीन सीने पर। हरफूल सिंह अपने अन्य पांच साथियों के साथ शहीद हो गए। शहीद सूबेदार हरफूल सिंह का शव खऱाब मौसम के कारण तुरंत नहीं प्राप्त हो सका था। 30 मई को शहीद होने के 46 दिन बाद 14 जुलाई 1999 को अन्य भारतीय सैनिकों के साथ 15 फीट गहरी बर्फ में दबा हुआ मिला।
सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी का जन्म 2 जून 1952 को झुंझुनूं जिले के गांव तिलोका का बास में भागीरथ मल कुलहरी के घर में माता झूमा देवी की कोख से हुआ।राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कोलिंडा में आठवीं तक की पढ़ाई की। 10 मई 1968 को जीत की ढाणी की सुकनी देवी से शादी हुई। 4 अगस्त 1971 को सेना में भर्ती हुए। इससे पहले दो साल तक आसाम में नौकरी की। भारत-पाक युद्ध 1971 के समय हरफूल सिंह जम्मू कश्मीर में तैनात थे। इस युद्ध में इन्होंने बहादुरी का परिचय दिया।15 मार्च 1989 को नायब सूबेदार की रैंक में पदोन्नत हुए। 1993 में सूबेदार के रैंक में कमीशन मिला। सिपाही से सूबेदार बने हरफूल ने 28 वर्ष की सेवा में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए थे।