भारत अब पाकिस्तान के साथ और नरमी बरतने के मूड में नहीं है। सार्क सम्मेलन में किसी राज्य मंत्री को भेजने का कार्यक्रम टालकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भेजने का फैसला इसी रणनीति का हिस्सा था।
इस पूरी राजनयिक कवायद से जुड़े गृह मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों ने इस बात के संकेत दिया हैं। हालांकि पाकिस्तान को लेकर शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में बयान देने के बाद लखनऊ आए गृहमंत्री राजनाथ ने इस बारे में अधिक जानकारी नहीं दी। इतना जरूर कहा कि पाक फिलहाल भारतीय रुख के अनुरूप बर्ताव नहीं कर रहा। वह अच्छे संबंध के लिए तैयार नहीं दिख रहा।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने दावा किया कि सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए गृह मंत्री को पाकिस्तान भेजने का फैसला आखिरी वक्त में लिया गया। पाकिस्तान के हालिया रुख को देखते हुए इस सम्मेलन में हिस्सेदारी को लेकर भारत का नजरिया बिल्कुल अलग था।
मगर, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया हाफिज सईद की लगातार बयानबाजी को देखते हुए भारत ने इस मंच के जरिए पाक को कड़ा संकेत देने का फैसला किया। सूत्रों ने कहा कि अगर हाफिज व सैयद सलाउद्दीन जैसे आतंकियों की चुनौती सामने न होती तो राजनाथ सार्क सम्मेलन में शामिल होने के लिए शायद ही पाकिस्तान जाते।
भारत के मामलों में दखल देना पाक के लिए ठीक नहीं
राजनाथ सिंह जो सोचकर पाकिस्तान गए थे, वह करके ही लौटे। मकसद था कश्मीर में हस्तक्षेप को लेकर पड़ोसी को कड़ा संदेश देना। भाषा और व्यवहार दोनों से ही राजनाथ ने पाक को बता दिया कि भारत के अंदरुनी मामलों में दखल देना उसके लिए ठीक नहीं है।
राजनाथ ने शरीफ से सीधी बातचीत से किया इन्कार
सार्क सम्मेलन में नवाज शरीफ भाषण देकर चले गए। पाक अधिकारी चाहते थे कि राजनाथ की पाक पीएम व विदेश मंत्री से वन-टू-वन बात हो, लेकिन इसके लिए राजनाथ तैयार नहीं थे। उन्होंने शरीफ से सार्क देशों के अन्य गृहमंत्रियों के साथ ही मुलाकात की।
इस पर खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं, ‘ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देश होने के नाते पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए पहल की थी। पाकिस्तान से भी वैसे ही रिस्पांस की उम्मीद थी, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं दिखाई दे रहा है।’