संजय वन, दिल्लीवसंत कुंज और महरौली के नजदीक यह हरी पट्टी दिन में घनी हरियाली और पंछियों की चहचहाचट से गूंजती है, मगर यहां की रातें बच्चों की चीख-पुकार (माना जाता है कि ये छिपकर रहे पृथ्वीराज चौहान के बच्चे थे), भूतों के पैरों की छाप और जानवरों के अजीबो-गरीब बर्ताव के साथ वाबस्ता हैं.
राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकातायह विशालकाय इमारत 1757 में मीर जाफर को उसके विश्वासघात के लिए इनाम में दी गई थी. लेकिन यहां की फुसफुसाहटें और पैरों की छाप एक और पूर्व बाशिंदे की बताई जाती हैं. मरहूम ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड मैटकाफ (बताया जाता है कि उन पर साफ-सफाई की सनक सवार थी) की पत्नी की रहस्यमयी मौतों की कहानियां भी इसके साथ नत्थी हैं ही.
मुकेश हिल, मुंबई कोलाबा की यह उजाड़ कपड़ा मिल आग से स्वाहा हो चुकी है और कभी शूटिंग की पसंदीदा जगह हुआ करती थी (हम का वह गाना याद है ‘जुम्मा चुम्मा दे दे’) आज कोई डायरेक्टर यहां रात को काम नहीं करेता. ऐसा तभी से है जब एक टीवी शूट के दौरान एक अदाकारा अचानक आदमी की आवाज में बोलने लगी और आमतौर पर हरेक को एक्जॉर्सिस्ट फिल्म की याद दिला दी.
अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, बंगलुरु यह शहर के भुतहा अड्डों में सबसे नया है, खासकर तब से जब पायलटों ने शिकायत की कि रनवे पर एक औरत दिखाई देती है. ग्राउंड स्टाफ ने भी उसे देखा था. मगर ज्यों ही कोई उसके पास जाने की कोशिश करता है, स्वाभाविक तौर पर वह एकाएक गायब हो जाती है.