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भारत की गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट का तालिबान ने किया समर्थन

 

नई दिल्ली : पाकिस्तान, अफगानिस्तान से होकर भारत तक आने वाली 7.5 अरब डॉलर की गैस पाइपलाइन परियोजना (तापी, TAPI) कई सालों के अड़ंगे के बाद एक बार फिर शुरू हो सकती है। तालिबान के विरोध के चलते यह परियोजना कई वर्षों से रुकी पड़ी थी, लेकिन अब एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में तालिबान खुद इसके पक्ष में खड़ा हो गया है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई। तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्ला मुजाहिद ने पिछले महीने एक बयान में कहा कि तालिबान देश के पुनर्निर्माण और आर्थिक बुनियाद को दोबारा खड़ा करने में अपनी जिम्मेदारी को जानता है और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से इस मामले में अफगानियों की मदद के लिए कह रहा है। अफगानिस्तान में जब तालिबान की सरकार थी, तभी से इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है। प्रस्तावित तापी पाइप लाइन चार देशों तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान व भारत (TAPI) से होकर गुज़रेगी। इस पाइपलाइन से सालाना 33 अरब क्युबिक मीटर गैस की सप्लाई होगी, इससे हजारों लोगों को नौकरियां मिलेंगी व अफगानिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था को भी काफी मदद मिलेगी। सरकारी कंपनियां तुर्कमेनगाज, अफगान गैस एंटरप्राइज और गेल इंडिया लिमिटेड इस पर काम कर रही हैं। अफगानिस्तान में 500 मील से अधिक लंबी पाइपलाइन तालिबान नियंत्रित इलाके से गुजरेगी। काबुल में अमेरिका समर्थित सरकार के खिलाफ 17 साल से लड़ रहे संगठन के इस प्रॉजेक्ट में खड़े होने से राजनीतिक सुलह की उम्मीद भी जगी है, लेकिन इस पाइपलाइन के लिए सुरक्षा मुहैया करना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि यह दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान से होकर गुज़रती है जहां लगातार हमले होते रहते हैं। हालांकि गनी सरकार ने तालिबान के इरादों को लेकर संदेह व्यक्त किया है। राष्ट्रपति के प्रवक्ता दावा खान मेनापेल के मुताबिक, प्रशासन तालिबान को इसके लिए धन नहीं मुहैया करायेगा, इसलिए तालिबान पर अभी भरोसा करना ठीक नहीं होगा।
सवाल यह भी है कि क्या भारत इस पर भरोसा कर पायेगा क्योंकि यह पाइप लाइन भारत के धुर-विरोधी देश से होकर गुजरता है। वरिष्ठ रिसर्चर शशांक जोशी के अनुसार वर्तमान में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ें हुए तनाव और अफगानिस्तान में लगातार खराब होती स्थिति को देखते हुए ये प्रोजेक्ट भारत के लिए अब उतना महत्त्वपूर्ण नहीं रह गया है जितना ये कुछ सालों पहले था। इस परियोजना का लाभ तालिबान के परिवारों, मित्रों और रिश्तेदारों को भी होगा इसलिए राष्ट्रीय परियोजनाओं की सुरक्षा करना उनकी जिम्मेदारी है,” अफगानिस्तान में अमेरिकी राजदूत जॉन आर बास ने पिछले महीने ट्वीट किया था कि यह परियोजना क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाएगी और राजस्व का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनेगी वॉशिंगटन के वुडरो विल्सन केंद्र में दक्षिण एशिया के एक वरिष्ठ सहयोगी माइकल कुगेलमैन ने कहा, कि भले ही तालिबान ने कहा है कि वे समस्या नहीं पैदा करेंगे, तो कई भी कई अन्य आतंकवादी समूह हैं दिक्कत पैदा कर सकते हैं।
इसके अलावा “तालिबान भी अपना मन कभी भी बदल सकता है.” वहीँ संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, पिछले साल हिंसा के चलते 10,000 से ज्यादा नागरिक मारे गए या घायल हो गए थे। जनवरी में, तालिबान ने राजधानी में हुए हमलों की ज़िम्मेदारी ली थी, इस हमले में सैकड़ों लोग मारे गए थे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच भी रिश्ते बहुत अच्छे नहीं हैं और दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकवाद का समर्थन करने का आरोप लगाते रहते हैं।

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