भारत की प्रकृति, संस्कृति से मेल नहीं खाता अंग्रेजी नववर्ष
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भारत में अंग्रेजी नववर्ष का पागलपन क्यों ?
बृजनन्दन राजू
स्तम्भ : अंग्रेजों ने न केवल भारत के आर्थिक, शैक्षिक और प्रशासनिक तंत्र को नष्ट किया बल्कि उन्होंने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संरचना को भी बिगाड़ने का काम किया। उसी का परिणाम है कि स्वाधीन होने के बाद भी हम मानसिक रूप से गुलाम हैं और आंख मूंदकर पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं। इस समय देश में अंग्रेजी नववर्ष का पागलपन एक बानगी है। क्योंकि अंग्रेजी नववर्ष का भारत की प्रकृति, संस्कृति और सभ्यता से कोई मतलब नहीं है।
देश की अक्षुण्ण भारतीय संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने के लिए कई शताब्दियों से प्रयास होते रहे और अनेक थपेड़ों को सहते हुए आज भी जीवंत है। इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि यहां की संस्कृति, परम्परा और अध्यात्म के पीछे वैज्ञानिक संबल भी है। इसीलिए हिन्दू जीवनपद्धति को अपनाने और मानने वाले लोग जो भी पर्व त्यौहार मनाते हैं उनके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। लेकिन इस्लाम व ईसायत के प्रभाव में आकर कुछ विकार भी आ गये। इसी में से एक है जीशु के जन्मदिवस 25 दिसम्बर से लेकर 1 जनवरी को मनाया जाने वाला अंग्रेजी नववर्ष। इस समय देशभर में विशेषकर महानगरों में लोग बच्चों को सेंटाक्लाज बनाते हैं। देशवासियों को विशेषकर ध्यान रखना चाहिए यह वहीं समय है जब इसी समय एक सप्ताह के भीतर हिन्दू धर्म रक्षक गुरू गोविंद सिंह का पूरा परिवार देश धर्म की रक्षा के लिए शहीद हो गया था। गुरू गोविन्द सिंह के दो बेटे मुगलों से लड़ते हुए शहीद हुए और दो बेटे महज 7 वर्ष की आयु के साहिबजादा जोरावर सिंह और पांच वर्ष की आयु के साहिबजादा फतेह सिंह को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया गया। लेकिन देश आज गुरू गोविन्द सिंह के परिवार की शहादत को भूल गया। महापुरूषों का कथन है कि जिस राष्ट्र के नागरिक अपना इतिहास भूल जाते हैं उस राष्ट्र की अस्मिता खतरे में पड़ जाती है। लेकिन भारत का एक वर्ग जो अपने को पढ़ा लिखा और बुद्धिजीवी मानता है वह आंख मूंदकर पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण करता जा रहा है। लोग इसका ठीकरा युवाओं पर फोड़ते हैं कि आज का युवा पश्चिमी संस्कृति अपना रहा है। इसमें युवाओं का दोष देना ठीक नहीं है। जब बचपन से बच्चे को सेंटा बनाओगे जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझाओगे तो उससे आप क्या कल्पना करोगे। इस समय जब भारत के अधिकांश भाग में भीषण ठण्ड पड़ रही है तो ऐसे समय में कुछ लोगों को नववर्ष का भूत सवार है। वह नववर्ष पर धूम धड़का और इन्ज्वाय करते हैं। आखिर भारत में अंग्रेजी नववर्ष का पागलपन क्यों? यह इंग्लैण्ड अमेरिका या अन्य कुछ राष्ट्र के लिए नववर्ष हो सकता है लेकिन भारत का नववर्ष यह नहीं है।
भारत का नववर्ष तो चैत्रशुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है। ऋतु परिवर्तन का यह समय रहता है। ऋतुओं में वसंत को ऋतुराज कहा गया है इसे मधुमास भी कहते हैं। प्रकृति में इस समय चारों तरफ नवीनता रहती है। इस समय ठंड बीत जाती है। गर्मी का सीजन आ जाता है। हवाओं में परिवर्तन आ जाता है। गर्मी बढ़ जाती है। आकाश स्वच्छ दिखने लगते हैं। फसल पककर घर आने लगती है। घर धन, धान्य से इस समय परिपूर्ण हो जाते हैं। किसानों के चेहरे पर मुस्कान होती है। आम में बौर आ जाते हैं। पेड़ों पर नयी—नयी कोपलें और नये—नये पत्ते आ जाते हैं। पेड़ों पर कलरव करते पक्षियों की झुंड दिखाई पड़ती है। कोयल भी बाग की तरफ रुख करती है। वहीं इस समय किसी भी जीव जंतु जानवर या मानव के लिए आहार की किल्लत नहीं रहती है। घर में अनाज का ढेर लगा होता है। फसलों के पक जाने के कारण पक्षियों को दाना खूब चुनने को मिलता है। पशुओं को भी तरह—तरह के चारे उपलब्ध होते हैंं। प्रकृति को तो सबकी चिंता रहती है। इसलिए इस समय प्रकृति सब पर अपना प्यार बराबर उड़ेलती है। इस ऋतु का हमारे स्वास्थ्य पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह भारत का नववर्ष होता है जब चहुंओर समृद्धि होती है। वहीं ठण्ड के दिनों में होने वाले रोग दाद, खाज खुजली इत्यादि त्वचा रोगों से छुटकारा भारतीय नववर्ष में अपने आप मिल जाता है। इसलिए यही नववर्ष भारतीय नववर्ष और हिन्दू नववर्ष है। लेकिन भारत में मनाया जाता है धूमधाम से अंग्रेजी नववर्ष जिसका भारत की प्रकृति, संस्कृति और सभ्यता से कोई मतलब नहीं है। यह सब अंग्रेजी दासता के कारण हुआ। अंग्रेजों के विचार संस्कार हम पर हावी होते गये। उन्हें हम अपने जीवन में अपनाने भी लगे। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग शादी व्याह से लेकर सारे शुभकर्म पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त देखकर ही करते हैं। हमारे पंचांग हिन्दी तिथियों और हिन्दी महीने पर आधारित होते हैं। देश का दुर्भाग्य है कि सरकारी कामकाज सब अंग्रेजी कैलेन्डर के आधार पर होता है। सोचने का विषय है कि क्या हम अपने कैलेन्डर के आधार पर काम नहीं कर सकते। क्या हमारे कैलेंडर में खामियां हैं अगर नहीं तो क्यों न हम अपने देश का कैलेंडर अपनायें।
भारत में लोग जनवरी माह में नववर्ष मनाते हैं। जनवरी माह में इंग्लैंड में नया साल होता है। वहां पर इस समय फसल पकती है। जनवरी महीने में नववर्ष पड़ने का भारत की प्रकृति से बिल्कुल मेल नहीं खाता क्योंकि उस समय तो देश में जबर्दस्त ठण्ड पड़ती है। चारों तरफ नीरसता रहती है लोग घरों से निकलना पसंद नहीं करते। कहीं नवीनता देखने को नहीं मिलेगी । फिर कैसा नववर्ष? कोई मजबूरी रही होगी। जो गलती पहले हो गयी, यह जरूरी थोड़े है कि हम उसी रास्ते पर चलते रहें। उससे आगे हमको चलना है। लकीर के फकीर बनकर नहीं। जो अच्छा है उसे अपनायेंगे जो खराब है उसका हम परिष्कार करेंगे और आगे बढ़ेंगे। भारत को भारत की तरह बनाना होगा इंग्लैंड, अमेरिका की तरह नहीं। हमारे ऋषि—मनीषियों ने काल की सूक्ष्म गणना सूर्य और चन्द्रमा की गति के आधार पर की। भारतीय कालगणना पूरी तरह वैज्ञानिक है। हमारे यहां का पंचांग पल— पल का हिसाब देता है। इसलिए हर संवत्सर अपने साथ शुभ तथा असुभ फल लेकर आता है। इसलिए संवत्सर के नाम से पंचांग देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि इस साल वर्षा कितनी होगी,फसल कैसी होगी, महंगाई कितनी बढ़े और राजा कैसा होगा इत्यादि। जबकि अंग्रेजी कैलेंडर में इसका कोई जिक्र नहीं रहता है। विश्व के किसी भी देश में भारत जैसी कालगणना नहीं है। हमारे मनीषियों ने खगोलीय घटनाओं के आधार मानव पर पड़ने वाले प्रभावों का भी जिक्र किया है। आजादी के बाद 1952 में पंचांग सुधार समिति ने अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को ही स्वीकार करने की संस्तुति दी थी किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने अंग्रेजी कैलेन्डर को ही मान्यता दी। अंग्रेजी कैलेन्डर मात्र 2019 वर्ष का ही है जबकि भारतीय कालगणना के अनुसार पृथ्वी की आयु की बात करें तो एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 39 हजार 111 वर्ष है। जिसके प्रमाण ज्योतिषियों के पास उपलब्ध हैं। प्राचीन ग्रन्थों में एक—एक पल की गणना की गयी है। ईसवी संवत का संबंध ईसा काल से हिजरी संवत का संबंध मुहम्मद साहब के काल से है जबकि विक्रमी संवत का संबंध प्रकृति से है। अंग्रेजी महीनों के नाम रखने का भी अपना आधार है, उससे भारतीयता का कहीं भी बोध नहीं होता। जबकि हिन्दू महीनों के नाम ऋतुओं के नाम पर रखे गए हैं। भारतीय तत्व दर्शन के रहस्य इन नामकरणों में समाहित है। चैत्र महीने का आरोग्य का महीना भी कहा जाता है। कितना अच्छा होता कि हम भारतीय संस्कृति, सभ्यता और प्रकृति के रहस्यों को समझ पाते। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सृष्टि का पहला दिन है। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। सतयुग का आरंभ भी चैत्र प्रतिपदा को ही हुआ। चैत्र प्रतिपदा ही वह तिथि थी जिस दिन भगवान राम और धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। इसलिए इस तिथि को अत्यंत शुभ माना गया है। इसलिए हम अपने प्रकृति संस्कृति और सभ्यता के अनुरूप गौरवशाली चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन प्रारम्भ होने वाला भारतीय नववर्ष ही मनाएं।
(लेखक प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से जुड़े हैं।)