भारत के इस मंदिर के आगे चांद पर पहुंचने वाले वैज्ञानिक भी मान गए हार
ओडिशा का श्री जगन्नाथ मंदिर (Jagannath Temple) हिंदू धर्म का प्रमुख मंदिर माना जाता है, जहां भगवान श्रीकृष्ण जगन्नाथ स्वामी के रूप में विराजमान हैं। यह ओडिशा राज्य के शहर पुरी में स्थित है, जिस कारण इस नगरी को जगन्नाथपुरी के नाम से जान जाता है।
भगवान जगन्नाथ (Jagannath Temple) के अलावा बलभद्र और सुभद्रा इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इनकी मूर्तियां, एक रत्न मंडित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं। यह विश्व का सबसे बड़ा, भव्य और ऊंचा मंदिर कहलाता है।
चार लाख वर्गफुट में फैला और करीब 214 फुट ऊंचे मंदिर का शिखर आसानी से नहीं देखा जा सकता। यह मंदिर जितना विशाल है, उतना ही आधुनिक विज्ञान की समझ से परे है। इस मंदिर के बारे में एक हैरान करने वाली बात ये है कि मंदिर के शिखर पर लहराती लाल ध्वजा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराती है।
मंदिर वक्र रेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं, जो अष्टधातुओं से निर्मित है तथा इसे देवप्रतिमा की तरह अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर के गुंबद के आसपास कभी कोई पक्षी उड़ता नहीं देखा गया। पक्षी शिखर के पास भी उड़ते नजर नहीं आते।
सिंह द्वार से मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर सागर की लहरों की आवाज नहीं सुनाई देती। जबकि बाहर निकलते ही समुद्र की लहरें जोर से सुनाई देती है। मंदिर की रसोई में प्रसाद तैयार करने के लिए सात बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ियों पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है। यानी सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है।
पांच सौ रसोइए प्रसाद बनाते हैं। इतना कि उत्सव के दिनों में बीस लाख व्यक्ति तक भोजन कर सकें। कहते हैं कि प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए बनाया गया हो, तो भी लाखों लोगों के लिए कम नहीं पड़ता, न ही व्यर्थ जाता है। यहां जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरों में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं। तीनों की मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनका आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं।