अन्तर्राष्ट्रीय

भारत के पास मौजूद है 53.3 लाख टन कच्चे तेल का भंडार, अमेरिका सबसे आगे

Oil Crisis सऊदी अरब के दो बड़े तेल ठिकानों पर हुए ड्रोन हमले के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने तेल को लेकर वैश्विक स्तर पर संकट को देखते हुए कहा है कि वह तेल की मंदी की आपातकालीन स्थिति में बाजार में स्थिरता बनाए रखने के लिए स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व (एसपीआर) यानी भूमिगत तेल भंडारण का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं। तेल संकट से निपटने के लिए भारत ने भी तीन भूमिगत भंडार का निर्माण किया है, जिनमें करीब 53 लाख टन कच्चा तेल स्टोर किया जा सकता है।

जमीन के अंदर तेल भंडार

भारत अपनी जरूरत का तीन चौथाई से अधिक कच्चा तेल आयात करता है। ऐसे में किसी भी कारण के चलते विदेश से आ रहे तेल की आपूर्ति में जरा भी कमी उसके लिए भारी मुश्किल का सबब हो सकती है। यही वजह है कि इस तरह के सामरिक भंडार बनाने की जरूरत काफी समय से महसूस की जा रही थी। इंडियन स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिजर्व लिमिटेड (आइएसपीआरएल) अब तक तीन जगहों विशाखापत्तनम में 13.3 लाख टन, मंगलोर (कर्नाटक) में 15 लाख टन और पदुर (कर्नाटक) में 25 लाख टन क्षमता वाले भंडार विकसित कर चुकी है।

और बढ़ेगी क्षमता

भारतीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 2017-18 के बजट भाषण में, यह घोषणा की गई थी कि इस तरह के दो और भंडारों की स्थापना ओडिशा के चंदीखोल और राजस्थान के बीकानेर में की जाएगी। इसके अलावा गुजरात के राजकोट में भी भूमिगत तेल भंडार बनाने की योजना पर काम चल रहा है।

ऐसे हुई शुरुआत

1973-74 में आए तेल संकट के बाद से अमेरिका ने 1975 में भूमिगत तेल भंडार बनाने की शुरुआत की थी। लुइसियाना और टेक्सास राज्य में भूमिगत रूप से बनाए गए तेल भंडार दुनिया की सबसे बड़ी आपातकालीन आपूर्ति है। मौजूदा समय में यहां करीब 8.7 करोड़ टन तेल स्टोर है। 1991 में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान यहां से तेल का इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद 2005 में कैटरीना तूफान और 2011 में लीबिया के साथ संबंध खराब होने के बाद एसपीआर का इस्तेमाल किया गया था।

सबसे बड़े भूमिगत तेल भंडार वाले देश

अमेरिका के बाद दुनिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा भूमिगत भंडार चीन के पास है। इस मामले में जापान तीसरे स्थान पर काबिज है।

कई हैं फायदे

कच्चे तेल के ऐसे भूमिगत भंडारण के कई फायदे हैं। पहला तो यह कि किसी हमले या आपदा की स्थिति में देश की ऊर्जा सुरक्षा अचानक खतरे में नहीं पड़ती।
1991 में खाड़ी युद्ध के समय ये भंडार अमेरिका के काफी काम आए थे। दूसरा यह कि कच्चे तेल की कीमतें अचानक बहुत ज्यादा होने पर इस रिजर्व स्टॉक के इस्तेमाल से देश में तेल की कीमतें काबू में रखी जा सकती हैं।
इसके अलावा भूमिगत भंडारण कच्चे तेल को रखने का सबसे कम खर्चीला तरीका है। चूंकि भंडार काफी गहराई में होता है, इसलिए बड़े पैमाने पर जमीन के अधिग्रहण और सुरक्षा इंतजाम की जरूरत नहीं पड़ती।
इसमें तेल बहुत ही कम मात्रा में उड़ता है और चूंकि ये भंडार समुद्र किनारे भी बने होते हैं तो इनमें जहाजों से कच्चा तेल भरना भी आसान होता है

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