हर बार हक और आरक्षण के नाम पर आंदोलन और विरोध-प्रदर्शन होते हैं. हर बार कुछ बेगुनाह आंदोलन के नाम पर होने वाली हिंसा के शिकार हो जाते हैं. हर बार पुलिस प्रशासन और सरकारी मशीनरी नाकाम साबित होती है. सोमवार को भारत बंद के दौरान भी यही हुआ. हक की लड़ाई ने हिंसक रूप ले लिया और 10 बेगुनाहों को अपनी जान गंवानी पड़ी. लेकिन सवाल ये कि आखिर 10 मौतों का मुजरिम कौन है?
देशभर में जो तांडव मचा उसमें सबसे ज्यादा मौत मध्य प्रदेश में हुईं. जहां सात लोगों की जिंदगी दलित कानून की आग के चलते काल के गाल में समा गई. यूपी के फिरोजाबाद में भी प्रदर्शन के दौरान एक की मौत हुई. राजस्थान में एक और बिहार के हाजीपुर में भी हिंसक प्रदर्शन ने एक मासूम की जान ले ली.
-बंद का क़ल कई दिन पहले से था तो मशीनरी सुस्त क्यों थी. आखिर सब कुछ पता होते हुए ऐसे हालात पैदा क्यों होने दिए गए?
-कई राज्यों में हिंसक झड़पें हुईं. क्या इन संगठनों के हिंसक प्रदर्शन के पीछे सियासत थी. मेरठ में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एक राजनीतिक दल के नेता पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है. तो क्या इस साजिश का पता लगाने में प्रशासन नाकाम रहा.
-क्यों दंगाइयों को सड़क पर खुलेआम हिंसा की छूट दी गई? आगजनी, तोड़फोड़ में सार्वजनिक संपत्ति की भारी क्षति हुई है.
-क्या सरकार की पुलिस और सुरक्षाबल हिंसक भीड़ के आगे कम पड़ गए?
-सबसे बड़ा सवाल ये कि आखिर 10 बेगुनाह लोगों की मौतों की जिम्मेदारी किसकी है?
इस पूरे खूनी खेल पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सफाई देते हुए ये तो कह दिया कि दलितों के कल्याण और उनकी सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. लेकिन जब बिगड़ी कानून-व्यवस्था पर सवाल किया गया तो उन्होंने दूसरे राजनीतिक दलों को भी इसमें खींच लिया. राजनाथ सिंह ने कहा कि मैं सभी राजनीतिक दलों से शांति कायम रखने की अपील करता हूं और भारत सरकार सभी राज्यों की मदद के लिए तैयार है.
कानून-व्यवस्था राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है. लेकिन पहले से प्रस्तावित भारत बंद के आह्वान के बावजूद कानून-व्यवस्था लड़खड़ाती नजर आई. मध्यप्रदेश, राजस्थान, यूपी में बीजेपी की सरकार है, जबकि बिहार में जेडीयू के साथ बीजेपी की गठबंधन सरकार है. लेकिन केंद्र की पूरी मदद का आश्वासन होने के बावजूद शिवराज सिंह, वसुंधरा राजे, नीतीश कुमार और योगी आदित्यनाथ सरकार बंद के खुले खूनी खेल को रोकने में नाकामयाब नजर आई.