भारत में ट्रांस फैट की वजह से हर साल हो रही है 60 हजार लोगों की मौत
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के सीईओ पवन अग्रवाल ने बताया कि 2022 तक कई चरणों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैटी एसिड्स की लिमिट 5 प्रतिशत से घटाकर 2 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। एफएसएसएआई का लक्ष्य है कि 2022 में जब पूरा देश (ट्रांसफैटः इंडिया@75) स्वतंत्रता की 75 सालगिरह मना रहा होगा, तब तक देश के लोगों को ट्रांस फैट से भी आजादी मिल जाएगी। उन्होंने बताया कि उनकी इस मुहिम को वनस्पति तेल निर्माताओं, फूड कंपनियों और बेकरी एसोसिएशंस से भी समर्थन मिला है।
ज्यादातर ट्रांस फैट वनस्पति तेलों, डालडा, नकली मक्खन, हलवाई आइटम्स, बेकरी आयटम्स और बाहर बिक रहे तले भोजन में पाया जाता है। इसके अलावा घर में तेल को 3 बार से ज्यादा इस्तेमाल करने पर भी उसमें ट्रांस फैटी एसिड पैदा हो जाते हैं, तो हृदय के लिए घातक साबित हो सकता है।
अग्रवाल के मुताबिक एफएसएसएआई ने ‘हार्ट अटैक रिवाइंड’ कैंपेन के नाम से 17 भाषाओं में मल्टीमीडिया कैंपेन शुरू किया है, जो रेडियो चैनल्स, होर्डिंग्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स यूट्यूब, हॉटस्टार, फेसबुक और वूट पर दिखाया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस कैंपेन के जरिए नागरिकों को बताया जाएगा कि किस तरह से ट्रांस फैट के इस्तेमाल से सेहत को नुकसान पहुंच रहा है और कैसे स्वस्थ विकल्पों के जरिए इसके सेवन से बचा जा सकता है।
सीईओ अग्रवाल के मुताबिक इस साल मई में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया से औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट को खत्म करने के लिए 2023 का लक्ष्य रखा है। साथ ही, एक रोडमैप सुझाया कि कैसे देश कई चरणों के तहत फूड सप्लाई से ट्रांस फैट को खत्म कर सकते हैं।
वाइटल स्ट्रेटेजीज की डॉ. नंदिता मुरुकुटला की मुताबिक वैज्ञानिक शोधों में अभी तक ट्रांस फैट के फायदों का पता नहीं चला है। लेकिन इससे हृदय रोग और दूसरी बीमारियां पैदा होने का खतरा जरूर पैदा होता है। उन्होंने बताया कि ट्रांस फैट हृदय की धमनियों में जमकर उन्हें ब्लॉक कर देता है। उन्होंने बताया कि बिना भोजन का स्वाद बदले और उसी कीमत में दूसरे स्वास्थ्य विकल्पों को अपनाया जा सकता है।