भूख से लड़कर जान दे रहे मुसहर जाति के लोग, जिंदा रहने के लिए खा रहे चूहा
कुशीनगर : उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में सोनवा देवी के दो बेटे भूख और बीमारी के बाद बीते 14 सितंबर को चल बसे। उनसे कुछ किलोमीटर दूर रकबा डुल्मा पट्टी गांव में वीरेंद्र मुसहर की पत्नी, उनका 6 साल का बेटा श्याम और कुछ दिन बाद ही उनकी दो महीने की बेटी भी मौत हो गई। इसी साल सितंबर में कथित रूप से भूख से अब तक यूपी में 5 लोगों की मौत हो चुकी है, हालांकि अधिकारी इन मौतों के पीछे की वजह भूख नहीं मान रहे हैं।
माना जा रहा है कि ये मौतें भूख के कारण हुईं और उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया। ये लोग मुसहर जाति के हैं जो एक महादलित समुदाय है और लंबे समय से चूहे खाकर अपने पेट भरते चले आ रहे हैं। वे आज भी चूहे ही खाते हैं, कभी-कभी घोंघा भी। उधर, सरकारी अधिकारियों का कहना है कि ये मौतें भूख की वजह से नहीं, बीमारी की वजह से हुई हैं। हालांकि, कुछ अधिकारी दबी-छिपी जुबान में बताते हैं कि इन मौतों के पीछे कोई बीमारी नहीं पाई गई। सोनवा देवी के दो बेटों की मौत के बाद प्रशासन की ओर से उन्हें खाना पहुंचाया गया। कुशीनगर के जंगल खिरकिया गांव की मुसहर बस्ती में ईंट से बने मकान में जब प्रशासन ने अनाज पहुंचाया तो उसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई थी। कुछ आपस में कानाफूसी करते रहे कि सोनवा देवी कितनी किस्मतवाली हैं। यह समुदाय हमेशा भूख से त्रस्त रहा है। डुल्मा पट्टी के वीरेंद्र बताते हैं कि वे लोग खाने लायक किसी भी चीज को खाकर गुजारा करते हैं। उन्होंने अपने परिवार को खाना दिलाने के लिए कुछ दिन पहले अपनी हाथगाड़ी बेच दी। उसके बाद से दिहाड़ी मजदूर करने वाले वीरेंद्र को काम मिलना मुश्किल हो गया है। उनकी पत्नी संगीता का नाम 2017 में मनरेगा में रजिस्टर किया गया था, लेकिन उन्हें कोई काम नहीं मिला। वीरेंद्र बताते हैं कि उनके घर पर भी अधिकरी उनके परिवार की मौत के बाद अनाज दे गए लेकिन वह हमेशा के लिए तो चलेगा नहीं। कुछ साल पहले उनके 10 साल के बेटे की मौत भी ऐसे ही हो गई थी। उन्होंने कहा कि खाने के पैकेट्स और पैसों से मौत को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। सरकारी रेकॉर्ड्स का कहना है कि संगीता और उनके बच्चों की मौत डायरिया से हुई। अधिकारियों का कहना है कि इन मौतों का भूख से कोई लेना-देना नहीं है। कुशीनगर के चीफ मेडिकल ऑफिसर हरिचरण सिंह के मुताबिक सोनवा देवी के बेटों की मौत टीबी की वजह से हुई। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी घटना के कुछ दिन बाद कहा था कि यह पता लगाने के लिए जांच की जाएगी कि उनका टीबी का इलाज हुआ था या नहीं। सरकार ने मुसहरों को नौकरियां, राशन कार्ड और घर दिए हैं। इस परिवार के पास भी राशन कार्ड था। हालांकि, पडरौना ब्लॉक के टीबी ऑफिसर राकेश कुमार ने इससे उलट जानकारी दी है। उनका कहना है कि उन्होंने जो टेस्ट किए हैं, उनमें ऐसा कुछ नहीं पाया गया। उन्होंने यहां तक बताया है कि सीनियर अधिकारियों उन्हें सच न बोलने की चेतावनी रहे हैं। सोनवा ने भी इस दावे को गलत बताया है। उन्होंने बताया, ‘सरकारी डॉक्टर हमसे कहते रहे कि मेरे बच्चे ठीक हैं। स्टाफ ने हमसे उन्हें भर्ती कराने के लिए पैसे मांगे। भर्ती करने के कुछ ही घंटों बाद वे मर गए, बिना खाना या दवाई के।’ उन्होंने बताया, ‘हमें सिर्फ तभी खाना मिलता है जब हम काम करते हैं। मेरे बेटे बीमार थे तो जीना मुश्किल हो गया। मुझे मनरेगा के तहत कोई काम नहीं मिला। हमें राशन कार्ड नहीं मिला है लेकिन एक नंबर है जिसे पीडीएस की दुकान पर बताकर जो जितने वह दे देता है, वही लेना होता है। अधिकारी उनके घर पर अनाज रख गए हैं और टॉइलट बनाने का वादा करके गए हैं। वह कहती हैं कि जहां बैठने की जगह नहीं है, वहां टॉइलट कहां बनेगा। सेमारा हार्दो गांव के मुसहर बच्चे स्कूल नहीं जा रहे। उनका पूरा दिन चूहे खोजने में निकल जाता है। जैसे ही उन्हें चूहे मिलते हैं, वे उन्हें भूनकर खा लेते हैं। जिस दिन उन्हें ज्यादा मिलते हैं, वे घर भी ले जाते हैं। उसे वे रात में और फिर अगले दिन सुबह खाते हैं। अर्जुन की मां ऊषा बताती हैं कि वे लोग चूहे और घोंघे खाकर रहते हैं। उनमें से ज्यादातर लोग दिहाड़ी पर जिंदा रहते हैं। उन्हें पीडीएस की दुकानों से केवल चावल या गेहूं मिलता है। उन्होंने बताया, हमें नहीं पता कि कितना मिलता है लेकिन काफी कम होता है। जब कुछ और खरीदना होता है तो अनाज शहर के लोगों को बेच देते हैं। हम या तो खाना खा सकते हैं या दवा। जब हम बीमार पड़ते हैं, तो हम बस मर जाते हैं।