मुंबई : एक जमाना था जब हॉरर फिल्मों की मेकिंग में रामसे ब्रदर्स का दबदबा था। उसके बाद रामगोपाल वर्मा ने भी भूतों से हाथ मिलाया और दर्शकों में खौफ पैदा करने लगे, लेकिन धीरे-धीरे उनकी हॉरर फिल्में मकसद से भटक गई और हॉरर के नाम पर सेक्स और रोमांस परोसा जमाने लगा। दर्शक हॉरर फिल्मों से दूर होते चले गए या कहें कि हॉरर फिल्में बनाने वालों के हौसले पस्त हो गए। ऐसा नहीं है कि हॉरर फिल्मों का आज कोई क्रेज नहीं हो। हॉरर फिल्में आज भी देखी जाती हैं, लेकिन दर्शक इसके लिए हॉलीवुड सिनेमा में हॉरर को तलाशते हैं क्योंकि बॉलीवुड में हॉरर सही रूप में नहीं दिखाया जा रहा। अब इंतजार खत्म समझो। हॉरर अपने सही रूप में सामने आ रहा है जो नजर आएगा फिल्म ‘दि पास्ट’ में। इसे हिंदी की पहली ऐसी हॉरर फिल्म बताया जा रहा है, जो रीयल हॉन्टेड प्लेस पर फिल्माई गई है। मुंबई के पालघर इलाके में एक ऐसा बंगला है, जहां बुरी शक्तियों का वास है। निर्माता जसपाल सिंह और नीतेश कुमार कहते हैं कि हमें ऐसा बंगला चाहिए था, जहां बेसमेंट हो। यह वीरान बंगला हॉरर फिल्म की शूटिंग के लिए सही लगा इसलिए 27 दिन का टारगेट रखते हुए यहां शूटिंग शुरू कर दी। कुछ दिन सही चलता रहा, लेकिन अचानक तस्वीर बदलने लगी। जिस तरह हॉरर फिल्म में बुरी शक्तियों का खौफ नजर आता रहता है, उसी तरह इस भूत बंगले में भी अचानक बदलाव दिखने लगा। नकारात्मक शक्ति यानी नेगेटिविटी का असर दिखने लगा। दीवारों पर लगे बल्ब टूटने लगे। कैमरों के शीशों में भी दरार आने लगी। आमतौर पर शूटिंग के दौरान निर्देशक तेज आवाज में चिल्लाता है जिससे कई बार उसका गला बैठ जाता है। निर्देशक गगन का भी उन दिनों गला बैठ गया था। तब उनकी जगह उनका एसोसिएट या असिस्टेंट डायरेक्टर ही तेज आवाज में सबको सूचित करता था, लेकिन हैरानी तो तब होने लगी जब आवाज न देने के बावजूद क्रू मेंबर्स को लगने लगा कि डायरेक्टर की तरफ से तेज आवाज आई है, जबकि सच्चाई यह थी कि उनकी तरफ से कोई आवाज नहीं दी जाती थी।
निर्माता जसपाल कहते हैं कि बार-बार शीशा टूटने पर जब हम नया शीशा खरीदने के लिए मार्केट जाते, तो दुकानदार पूछते थे कि इतने शीशे कहां जा रहे हैं। उन्हीं से पता चला कि हम भूत बंगले में शूटिंग कर रहे हैं जिसकी वजह से ऐसा हो रहा है। भूत बंगला होने की जानकारी टीम के कुछ सदस्यों को हो चुकी थी इसलिए कोशिश यही की गई कि स्टारकास्ट को इस बात की भनक न लगने दी जाए ताकि शूटिंग में रूकावट न आए। हां, इतना जरूर हुआ कि अब शूटिंग तेज गति से की जाने लगी और 27 दिन के काम को 22 दिन में निपटा दिया ताकि किसी को नुकसान न हो। निर्देशक गगन बताते हैं कि शूटिंग के दौरान ही अभिनेत्री सोनिया अलबज़ूरी को अहसास हो गया था कि इस बंगले में कुछ अनहोनी घटित हो रही है। चूंकि उसने इस मामले में काफी रिसर्च कर रखी है इसलिए उसे पता था कि इस तरह की नेगेटिविटी पर कैसे काबू पाया जा सकता है। निर्देशक गगन बताते हैं कि सोनिया ने अपनी तरफ से ही उपाय शुरू कर दिए जिसका असर नजर आने लगा, लेकिन रात होते ही दोबारा अदृश्य ताकत हावी होने लगती थी। हमने चार स्पॉट बॉय और 14 लाइटमैन्स को ठहराने की व्यवस्था इसी बंगले में की थी लेकिन उन्होंने रात को ठहरने से मना कर दिया तो उनके लिए होटल लेना पड़ा। जब हमें इस बंगले की सच्चाई का पता चला, तो बहुत देर हो चुकी थी। हमारी प्रोडक्शन की टीम बंगले को कलर करवा चुकी थी और आर्ट डायरेक्टर ने प्रोपर्टी भी रखवा दी थी इसलिए शूटिंग रोकने काफी महंगा पड़ सकता था इसलिए हमने यहीं पर शूटिंग जारी रखने का फैसला किया। हां, हमने रात को शूटिंग बंद करवा दी और शाम तक काम कंपलीट कर लेते थे।
‘द पास्ट’ दूसरी हॉरर फिल्मों से क्यों अलग है? इस सवाल पर गगन कहते हैं कि हमारी फिल्म का ट्रीटमेंट अलग है। कुछ हॉरर फिल्में लोअर ऑडियंस को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं जिनमें अफेयर्स भी दिखाने पड़ते हैं लेकिन हमारी फिल्म में रोमांस तो है लेकिन उसपर पूरी तरह फोकस नहीं किया गया है। कहानी पर ही फोकस किया गया है। दर्शकों को डराने के लिए हमने इसमें फालतू का म्यूज़िक नहीं दिया। निर्देेशक का कहना है कि अगर आपने पास्ट यानी अतीत में कुछ गलत किया है तो वर्तमान में उसका खामियाजा भुगतना होगा इसलिए पास्ट को अच्छा रखना चाहिए ताकि प्रेजेंट खराब न हो इसलिए हमने फिल्म को नाम दिया ‘दि पास्ट’, जो मई में प्रदर्शित होगी।