दस्तक-विशेष

मंत्री जी से अंतरंग बातचीत

ज्ञानेन्द्र शर्मा

अब जबकि नए मंत्री जी थोड़े से पुराने पड़ गए हैं तो हमने सोचा कि उनसे बात कर हालचाल ले लें। बिना हीलाहवाली उन्होंने ज्ञानेन्द्र शर्मा से जो बात की, प्रस्तुत हैं, उसके कुछ चुनिंदा अंश:
थोड़ी देर हो गई है, लेकिन आपको मंत्री बनने की बधाई।
क्यों मजाक करते हैं? आज और कोई नहीं मिला?
इसमें मजाक क्या है? बधाई यानी बधाई।
अब देखिए, जिंदाबाद, वंदनवार, जय जयकार, ‘हमारा मंत्री कैसा हो ़.़.’। ये सब नारे अब बंद हो गए हैं। अब हम धरातल पर आ गए हैं।
धरातल से मतलब?
सब जानते हैं, फिर भी पूछ रहे हैं? अब देखिए न मंत्री पद की कोई इंपौर्टेन्स रह गई है?
मंत्री बनने के लिए तो लोग जान लगाए पड़े रहते हैं।
यह किसी और जमाने की बात है। अब कुछ समय बाद तो मंत्री बनने के लिए कोई मिलेगा नहीं।
क्यों, क्यों?
अब तो भाई जी मंत्री की कोई वकत ही नहीं रह गई। गाड़ी पर लाल बत्ती लगा नहीं सकते। हूटर बजा नहीं सकते। मुख्यमंत्री जी हैं सो हर दिन 18 घंटे काम करने की बात कर रहे हैं।
पर मंत्री आखिर मंत्री होता है, उसका रुतबा तो होता ही है।…
भैया, डीएम के साथ पगड़ी वाला दरबान न हो तो उसे कोई पहचानेगा नहीं। अब तो हम भी खड़े रहेंगे सड़क की लाल बत्ती पर। अब फुर्र से तो निकल नहीं पाएंगे। सारी अकड़ धरी की धरी रह जाएगी।
लेकिन फिर भी—
अब तो उस कवि की कविता याद आ रही है: ‘वंदनवार, फूलों के हार, जय जयकार, मैंने थके थकाए संतरी से पूछा- क्या मंत्री गुजरने वाले हैं। बोला-जल्दी गुजर आते तो अच्छा था’। …..हंसी़…
यानी मंत्री के ऊपर निगरानी?
जी हां यही हो रहा है। यहां से लेकर दिल्ली तक निगरानी।
तो भी मंत्री तो मंत्री होता है।
अजी काहे का मंत्री। जब आपको कुछ करने की आजादी ही नहीं है, हर काम में डर है तो फिर हम करेंगे क्या।
पर आप पूरी मुस्तैदी से काम करेंगे तो आपकी वाहवाही भी तो होगी।
वाहवाही का करेंगे क्या? मुख्यमंत्री थोड़े न बना दिए जाएंगे।
कहते हैं मुख्यमंत्री जी पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं और ऐसी ही अपेक्षा मंत्रियों से कर रहे हैं।
अब ईमानदारी से तो काम करना ही पड़ेगा, और चारा ही क्या है?
मुख्यमंत्री जी तो खुश हैं न आपके काम से?
पता नहीं आरएसएस वाले क्या रिपोर्ट भेजते हैं।
आपने कुछ विभागों में पौने दस बजे सुबह छापा मारा था। उससे कामकाज में सुधार आया?
आया तो है लेकिन अब कोई रोज रोज छापा तो मार नहीं सकता। हम रोज रोज नौ बजे तैयार होकर थोड़े निकल सकते हैं।
आपने अपराधियों, गुंडा तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की है?
करेंगे, करेंगे। किसी को बख्शा नहीं जाएगा।
लेकिन आपने तो इन लोगों की चुनाव में मदद ली थी। अब उन्हीं के खिलाफ़—
अब बहुतेरे अपने आप चुनाव में साथ जुड़ जाते हैं। उनकी शक्ल पर थोड़े कुछ लिखा होता है।
चुनाव में तो आपका बहुत खर्च हो गया होगा, वह कैसे निकालिएगा?
अब कोई उपाय खोजेंगे। खर्चा तो बहुत हुआ ही है़–

मंत्री जी, मालपानी तो अपनी जगह रहेगा ही ना़—
कुछ नहीं रहेगा। हर मंत्री के यहां आरएसएस के तीन तीन लोग स्टाफ के तौर पर बिठाल दिए गए हैं, वे सब निगरानी रखेंगे। हम किस काम की किससे सिफारिश करते हैं, किस किससे मिलते हैें, कहां कहां जाते हैं।
आप खुश हैं?
अब देखिए, दिक्कत यह है कि काम बहुत लाद दिया गया है। मुख्यमंत्री जी कहते हैं अपने विभाग के काम का नक्शा तैयार करो। अब कर रहे हैं। वे देर सबेर बुला लेते हैं, सो दिक्कत तो होती ही है ना।
अपने विभाग में भ्रष्टाचार कैसे खत्म करेंगे। क्या आप खुद इसके लिए तैयार हैं?
अभी तो हम अपनी पसंद के अफसर भी नहीं रख पा रहे हैं। पिछली सरकार के लोग जमे हुए हैं जगह जगह। पिछली सरकार में तो जाति देखकर तैनाती होती थी। वे हमारे लोगों से दोस्ताना व्यवहार नहीं कर रहे हैं।
एक विशलेषण से पता लगा है कि बहुत से पुराने विधायकों की पांच साल में सम्पत्ति दुगुनी से भी ज्यादा हो गई। आपकी भी हो गई होगी। यह करिश्मा कैसे होता है?
हमारे पास तो सबका हिसाब है। एकएक पाई कमाई है। अब पहले विधायक थे तो उसके दौरान बहुत से वेतन-भत्ते मिलते थे, सो इनकम तो होती ही थी ना?
यह आरोप है कि आपके विधायक रहते हुए अपने बहुत से चहेतों को सरकारी ठेके दिलाए। उनकी कमाई में आपका कितना हिस्सा होता था?
झूठ है यह। लोग खुद अपने प्रयासों से ठेके लेते हैं, हां, कभी कभार हम भी सिफारिश कर देते थे। ये लोग बहुत काम आते हैं। बहुत सारे इधर-उधर के खर्चे ये उठा लेते हैं। उससे बहुत मदद मिलती है।
लेकिन अब?
अब मुश्किल काम है। अब मंत्री हैं और निगरानी में हैं।
आपके ऊपर कोई डेढ़ दर्जन मुकदमे दर्ज हैंं। वे वापस हो जाएंगे?
होने चाहिए। सब फर्जी हैं, राजनीतिक विद्वेष से दूसरी सरकारों ने लिखाए हैंं।
जो तेजी सरकार ने शुुरुआती दिनों में दिखाई है, वह जारी रह पाएगी?
यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हमें कितनी आजादी काम करने की मिलती है।
हमारे एक मित्र मजाक में कहा करते थे कि जब उनका नम्बर मंत्री बनने का आएगा जब तक भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा। क्या यह बात सच साबित हो रही है?
ऐसा ही लगता है, अब भ्रष्टाचार, घूसखारी चलने वाली नहीं है। लेकिन एक बड़ी दिक्कत है। यह जो बाबू क्लास है ना, यह बहुत भ्रष्ट है। यह हवा के झोंकों से नोट कमा लेते हैं। इनसे निपटने में समय लगेगा।
कहते हैं भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे आता है। मंत्री, बड़े अफसर घूस नहीं लेंगे तो नीचे वाले भी नहीं लेंगे।
अब ऐसा नहीं है। ईमानदार अफसरों के बाबू भी धीरे से अपना काम फिट कर लेते हैं। अभी बिना घूस के फाइल का आगे बढ़ना बहुत मुश्किल रहा है। अब देखते हैं इससे कैसे निपट पाएंगे।
कहा जाता है कि घूस से सब काम बहुत आसान हो जाता है। घूस वास्तव में काम के जल्दी निपटारे में बहुत मदद करती है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता?
अब एक सिस्टम बन गया है। यह हकीकत भी है। घूस दो तो जल्दी काम होगा। इस सिस्टम को खत्म करना आसान नहीं है।
उत्तर प्रदेश में तबादला बहुत बड़ा उद्योग रहा है। यह खत्म होगा?
अब देखिए न विधायक, सांसद, अपने लोग सिफारिशें लेकर आते हैं। उनकी सिफारिशें तो माननी ही पड़ेंगी। अब इसे आप मीडिया वाले जो चाहें नाम दे दें।
लोग कहते हैं कि हर विभाग में घूस की दरें तय हो जाएं और घूस को कानूनी रूप दे दिया जाय तो सिस्टम सुधर सकता है।
आप तो मुझे मरवा देंगे। माफ करो भैया बहुत हो गया। ठीक ठीक से लिखना। ख्याल रखना।

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